महिला पर्यवेक्षक भर्ती में धांधली का आरोप, पूरी भर्ती HC के अंतिम फैसले के अधीन

99.02% अंक प्राप्त करने के बावजूद अभ्यर्थी को महिला पर्यवेक्षक भर्ती से बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट ने विभाग को नोटिस जारी किया और भर्ती प्रक्रिया को कोर्ट के आदेश के अधीन कर दिया।

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Neel Tiwari
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Photograph: (thesootr)

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महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत हुई महिला पर्यवेक्षक भर्ती अब कानूनी विवाद में उलझ गई है। हाईकोर्ट ने इस भर्ती प्रक्रिया को याचिका के अंतिम निर्णय तक अधीन रखते हुए बड़ा आदेश दिया है। जबलपुर निवासी एक अभ्यर्थी ने आरोप लगाया है कि पूरे चयन में भारी अनियमितताएं की गई हैं। दरअसल 99.02% अंक प्राप्त करने के बाद भी अभ्यर्थी को महिला पर्यवेक्षक भर्ती से बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट ने विभाग को नोटिस जारी करते हुए भर्ती प्रक्रिया को कोर्ट के आदेश के अधीन कर दिया।

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मेरिट में टॉप करने वाली अभ्यर्थी भी चयन से बाहर

इस भर्ती परीक्षा में जबलपुर की रहने वाली याचिकाकर्ता के एम वैशाली ने 172.92 अंक (99.02%) हासिल किए। इतनी शानदार परफॉर्मेंस के बावजूद उसका नाम न तो चयन सूची (Selection List) में आया और न ही प्रतीक्षा सूची (Waiting List) में।

वैशाली का आरोप है कि कई अभ्यर्थियों को, जिनके अंक उससे काफी कम थे, मनमाने ढंग से बोनस अंक (Bonus Marks) देकर चयनित कर लिया गया।

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800 से अधिक पदों के निकली थी भर्ती 

महिला पर्यवेक्षक भर्ती का विज्ञापन 9 जनवरी 2025 को कर्मचारी चयन मंडल, भोपाल द्वारा जारी किया गया था। महिला एवं बाल विकास विभाग, मध्यप्रदेश विकास मंत्रालय के अधीन 800 से अधिक पदों की भर्ती निकाली गई थी, जिसकी परीक्षा तिथि 28 फरवरी 2025 थी।

इस भर्ती की फाइनल मेरिट लिस्ट 19 जून 2025 को जारी हुई। फाइनल लिस्ट सामने आते ही कई अभ्यर्थियों ने सवाल उठाए। कहा गया कि जिनके अंक बेहद कम हैं, उन्हें भी नियम विरुद्ध तरीकों से चयनित कर लिया गया, जबकि अधिक अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को सूची से बाहर कर दिया गया।

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हाईकोर्ट की शरण में गई अभ्यर्थी

भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए वैशाली ने आर.पी.एस. लॉ एसोसिएशन के माध्यम से याचिका क्रमांक 30619/2025 हाईकोर्ट में दाखिल की। याचिका में न केवल ESB (कर्मचारी चयन मंडल) को पक्षकार बनाया गया, बल्कि उन अभ्यर्थियों को भी शामिल किया गया है, जिन्हें कथित रूप से कम अंक होने के बावजूद चयन सूची में जगह मिल गई।

कर्मचारी चयन मंडल सहित अन्य को नोटिस

जस्टिस एम.एस. भट्टी की सिंगल बेंच ने सुनवाई के दौरान भर्ती प्रक्रिया में उठाए गए सवालों को गंभीर माना और इस पर सख्त रुख अपनाया। हाईकोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए और साफ कर दिया कि यह पूरी भर्ती प्रक्रिया अब याचिका के अंतिम फैसले के अधीन रहेगी। यानी जब तक कोर्ट इस मामले पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता, तब तक चयन प्रक्रिया पर तलवार लटकी रहेगी।

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चयन प्रक्रिया पर खड़े हुए सवाल

याचिकाकर्ता के एम वैशाली की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट रामेश्वर सिंह ठाकुर, अधिवक्ता हितेंद्र गोल्हानी और अभिलाषा सिंह लोधी ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई है। बोनस अंक देने के नियमों का गलत इस्तेमाल हुआ है और कम अंक वाले अभ्यर्थियों को नियम तोड़कर लाभ पहुंचाया गया जिससे योग्य अभ्यर्थियों का हक छीना गया।

भर्ती प्रक्रिया पर सवालों की लंबी फेहरिस्त

यह मामला सिर्फ एक या दो अभ्यर्थियों का नहीं है। याचिका में यह भी कहा गया है कि मेरिट लिस्ट में कई स्थानों पर गंभीर विसंगतियां हैं। याचिका में आरोप लगाए गए कि अलग-अलग अभ्यर्थियों को अलग मानदंड अपनाकर बोनस अंक दिए गए। इंटरव्यू और मूल्यांकन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाते हुए यह आरोप लगे कि नियमों का पालन न कर मनमानी तरीके से लिस्ट तैयार की गई है।

भर्ती का भविष्य हाईकोर्ट पर निर्भर

अब यह पूरी भर्ती प्रक्रिया जबलपुर हाईकोर्ट के अंतिम आदेश पर टिकी हुई है। यदि कोर्ट को अनियमितताएं साबित होती हैं, नई मेरिट लिस्ट जारी किए जाने का आदेश भी आ सकता है। वहीं, अगर ESB और विभाग अपना पक्ष मजबूत तरीके से रखते हैं, तो चयन प्रक्रिया बहाल रह सकती है।

कई भर्तियां हो चुकी हैं हाईकोर्ट के आदेश के अधीन

यह मामला केवल महिला पर्यवेक्षक भर्ती का नहीं है। प्रतियोगी परीक्षाओं और भर्तियों की पारदर्शिता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। यदि हाईकोर्ट इस मामले में सख्त आदेश देता है, तो आने वाली कई भर्तियों के लिए यह नजीर बन सकता है। कुल मिलाकर, महिला पर्यवेक्षक भर्ती पर अभी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। अभ्यर्थियों की उम्मीदें अब पूरी तरह से हाईकोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं।

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