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Photograph: (THESOOTR)
BHOPAL. मध्यप्रदेश में सरकारी विभागों में नियुक्तियों में फर्जीवाड़े के विवाद एक के बाद एक सामने आ रहे हैं। प्रदेश में न केवल अच्छी सैलरी वाले पदों के लिए बल्कि मामूली वेतन के लिए भी फर्जी दस्तावेज और विभागीय अधिकारी- कर्मचारियों की मिलीभगत से हेराफेरी जारी है।
विभागों में नौकरी हथियाने के फर्जीवाड़े में महिला एवं बाल विकास दूसरे विभागों से भी आगे निकल गया है। शिवपुरी जिले में आंगनबाड़ी केंद्र स्वीकृत हुए बिना ही कार्यकर्ता की नियुक्ति ने विभागीय धांधली उजागर कर दी है। इसके साथ ही दो दशक में हुई भर्तियों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
विभाग में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका की नियुक्ति में फर्जीवाड़े का यह इकलौता मामला नहीं है इससे पहले भी बेहिसाब मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से अधिकांश मामलों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाओं को बर्खास्त कर केस दर्ज कराए गए हैं लेकिन नियुक्ति में फर्जीवाड़ा करने वाले विभागीय अधिकारी-कर्मचारी हर बार बचकर निकल जाते हैं।
एक जैसी कार्रवाई सामने आई
महिला एवं बाल विकास विभाग की नियुक्तियों में धांधली के मामलों की लंबी फेहरिस्त है। इनमें से द सूत्र ने कुछ मामलों की पड़ताल की तो लगभग हर केस में एक जैसी कार्रवाई सामने आई है।
हर मामले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका ही कार्रवाई की जद में आए हैं। फर्जी दस्तावेज के आधार पर नियुक्ति करने वाले किसी अधिकारी पर जिम्मेदारी तय नहीं की गई।
फर्जीवाड़े के सहारे हुई नियुक्ति हासिल करने वाली कार्यकर्ता या सहायिकाओं पर केस भी दर्ज किए गए हैं लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया में चूक के लिए अधिकारियों पर कार्रवाई करना विभाग भूल गया। जबकि नियुक्ति के लिए दस्तावेजों का सत्यापन अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है।
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चयन समिति की भूमिका पर संदेह
महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा साल 2009 में शिवपुरी के पोहरी ब्लॉक में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका की नियुक्ति की थी। कुछ साल बाद इसकी शिकायत विभाग मुख्यालय और जिला प्रशासन तक पहुंची।
शिकायत पर कलेक्टर द्वारा जांच बैठाई गई तो पता चला कि 2009 से 2011 के बीच अमरपुरा में आंगनबाड़ी केंद्र स्वीकृत ही नहीं था। जांच में विभागीय स्तर पर भी नियुक्ति अवैध पाई गई। विभाग और जिला प्रशासन की जांच सालों तक चली। नवम्बर 2025 में नियुक्ति को रद्द कर दिया गया।
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जांच में बच जाते हैं नियुक्ति देने वाले
आंगनबाड़ी नियुक्ति में फर्जीवाड़ा मामले में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नीतू जादौन को हटा दिया गया है, लेकिन उसकी अवैध नियुक्ति करने वाले अधिकारियों पर जिम्मेदारी ही तय नहीं की गई। आंगनबाड़ी केंद्र न होने के बावजूद उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कैसे हुई। नीतू के आवेदन को निरस्त क्यों नहीं किया गया।
तत्कालीन विकासखंड और जिला परियोजना अधिकारी कौन थे और अवैध नियुक्ति के बावजूद विभाग से वेतन कैसे जारी होती रही। इन सवालों के जवाब न अधिकारी दे पा रहे हैं और न ही जांच टीम की रिपोर्ट के बाद किसी और पर कार्रवाई हुई है।
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फर्जीवाड़े में सिर्फ कार्यकर्ता-सहायिका दोषी...
1. दतिया में जून 2025 में आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए 42 कार्यकर्ता और 228 सहायिकाओं की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसके माध्यम से दतिया, इंदरगढ़, भांडेर और सेवढ़ा विकासखंडों में नियुक्ति की गई। नियुक्तियों के लिए बनाई गई चयन समिति द्वारा दस्तावेजों की पड़ताल के बाद नियुक्ति पत्र जारी कर दिए।
इन नियुक्तियों के बाद शिकायतों का दौर शुरू हुआ तो चयन समिति ही संदेह के दायरे में आ गई। फर्जी बीपीएल कार्ड और अविवाहित को विवाहित बताकर अंक दिए गए थे। इस मामले में कलेक्टर स्वप्निल वानखेड़े के आदेश पर जांच टीम बनाई गई है। जांच से पहले ही आवेदक महिलाओं को दोषी ठहराया जा है लेकिन चयन समिति की जिम्मेदारी को अनदेखा किया जा रहा है।
2. खरगोन जिले में नवम्बर 2024 में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति संदेह के दायरे में आई थी। गोगांवा के आंगनबाड़ी केंद्र पर कार्यकर्ता की नियुक्ति पर दर्ज आपत्ति के बाद जांच में आवेदन महिला की अंकसूची फर्जी पाई गई थी। जिसके बाद विभाग के परियोजना अधिकारी की शिकायत पर गोगांवा पुलिस थाने में अपराध भी दर्ज कराया गया था।
साल 2019 में महिला ने नियुक्ति के लिए जो अंकसूची लगाई थी वह फर्जी पाई गई थी। इस केस में भी महिला एवं बाल विकास विभाग की चयन समिति और नियुक्ति देने वाले अधिकारियों को संदेह से बाहर रखा गया है। पूरे फर्जीवाड़े में महिला पर जिम्मेदारी डालकर पल्ला झाड़ लिया गया लेकिन अंकसूची की जांच में लापरवाही बरतने वालों को क्लीन चिट दे दी गई।
3. मुरैना में साल 2021 में जौरा विकासखंड में आंगनबाड़ी केंद्रों पर कार्यकर्ता और सहायिका की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हुई थी। जिसके चंद दिनों बाद ही नियुक्तियों के संबंध में जिला प्रशासन और विभाग को शिकायतें की गईं। अपात्र अभ्यर्थी को कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति देने पर शिकायतकर्ताओं ने सवाल उठाए थे।
शिकायतों की जांच में कार्यकर्ता का नाम जिले में दो स्थानों पर मतदाता सूची, समग्र आईडी में दर्ज पाया गया था। इस मामले में तीन साल तक जांच जारी रही। निर्णय से पहले ही महिला को आंगनबाड़ी केंद्र मुदावली पर कार्यकर्ता की नियुक्ति दे दी गई। इस मामले में अब भी जांच पूरी नहीं हो पाई है।
4. सीहोर जिले में 2021 में आंगनबाड़ी केंद्रों पर कार्यकर्ता- सहायिकाओं की नियुक्ति विवादों में घिरी रही है। किसी केंद्र पर फर्जी बीपीएल कार्ड के आधार पर तो कहीं अंकसूची और दूसरे दसतावेजों का सहारा लिया गया था। आंगनबाड़ी केंद्र नीनौर पर कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति के लिए महिला द्वारा बीपीएल कार्ड पेश किया गया थ।
यह आवेदक न तो नीनौर गांव की स्थानीय निवासी थी और न उसके विवाह का पंजीयन हो पाया था। उसके परिवार के पास 10 एकड़ से ज्यादा जमीन, पक्का घर और वाहन भी उपलब्ध थे। वह गरीबी रेखा के नीचे नहीं आती थी। इस नियुक्ति पर सवाल उठने के बाद जांच में पाया गया कि पंचायत से जो बीपीएल कार्ड जारी किया गया था वह रातों रात तैयार कराया गया था। दस्तावेजों की पड़ताल में फर्जीवाड़े की अनदेखी करने वाली चयन समित इस मामले में भी बच निकली।
5. विदिशा जिले के गंजबासौदा विकासखंड में आंगनबाड़ी केंद्र पर फर्जीवाड़े के सहारे कार्यकर्ता की नियुक्ति का मामला सामने आ चुका है। भर्ती आने पर सियारी केंद्र पर कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति पाने वाली महिला द्वारा फर्जी दस्तावेजों का उपयोग किया गया था। इसकी शिकायत विभाग और जिले के अधिकारियों के साथ ही सीएम हेल्पलाइन पर भी की गई थी।
जांच में शिकायत की पुष्टि के बाद दिसम्बर 2016 में महिला को पद से हटाते हुए नियुक्ति रद्द करने के आदेश दिए गए थे लेकिन प्रशासन कार्रवाई करना ही भूल गया। इस मामले में भी विभाग की चयन समिति में शामिल अधिकारी- कर्मचारी साफ बच निकले।
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