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आज के दौर में आयुष्मान भारत योजना को देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सुरक्षा ढाल माना जाता है। सरकार दावा करती है कि ये गरीबों के लिए वरदान है। कड़वी सच्चाई ये है कि गंभीर बीमारियों के सामने ये घुटने टेक रही है। सरकारी अस्पतालों में भी कैंसर, न्यूरो और हार्ट ट्रांसप्लांट जैसी बीमारियों का खर्च 10 लाख रुपए के पार जा रहा है।
राजस्थान, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों ने अपने नागरिकों के लिए लिमिट बढ़ा दी है। इन राज्यों ने अपने नागरिकों के लिए आयुष्मान की 5 लाख वाली लिमिट को पहले ही बढ़ा दिया है। तो ऐसे में सवाल उठता है कि तो मध्यप्रदेश में ये फैसला कब होगा।
भोपाल में ही हर महीने करीब 500 ऐसे केस आते हैं जहां इलाज के बीच में ही आयुष्मान कार्ड का पैसा खत्म हो जाता है। इसके बाद मरीज के परिवार को या तो कर्ज लेना पड़ता है या इलाज छोड़ना पड़ता है। अगर सरकार इस लिमिट को बढ़ाकर 10 लाख कर दे, तो 80% मरीजों को दर-दर नहीं भटकना पड़ेगा।
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सरकारी अस्पतालों में खर्च 10 लाख के पार
हैरानी की बात ये है कि केवल प्राइवेट ही नहीं, बल्कि सरकारी अस्पतालों में भी इलाज महंगा है। एम्स जैसे संस्थानों में भी गंभीर ऑपरेशन का खर्च आयुष्मान की लिमिट से बाहर जा रहा है। आइए समझते हैं कि किन बीमारियों में जेब खाली हो रही है:
कैंसर का इलाज: कीमोथैरेपी और दवाओं का भारी बोझ
कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज लंबा चलता है। शुरुआती जांच और भर्ती का खर्च भले ही कम हो, लेकिन कीमोथैरेपी और रेडिएशन के साथ कुल खर्च 5 से 10 लाख रुपए तक पहुंच जाता है। 5 लाख की लिमिट अक्सर आधे रास्ते में ही खत्म हो जाती है।
हार्ट और ऑर्गन ट्रांसप्लांट: लाखों की फंडिंग की जरूरत
हार्ट ट्रांसप्लांट जैसे मामलों में खर्च लगभग 10 लाख रुपए आता है। एम्स भोपाल में हाल ही में हुए चार हार्ट ट्रांसप्लांट में से दो में आयुष्मान का पैसा कम पड़ गया था। तब डॉक्टरों को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान से अतिरिक्त 5 लाख रुपए की व्यवस्था करनी पड़ी।
न्यूरो सर्जरी और गामा नाइफ टेक्नोलॉजी
दिमाग से जुड़ी गंभीर बीमारियों के लिए गामा नाइफ सर्जरी की जरूरत होती है। इस आधुनिक तकनीक का खर्च ही 10 लाख से ऊपर चला जाता है। आयुष्मान पैकेज में फिलहाल ये चीजें पूरी तरह कवर नहीं हो पा रही हैं।
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क्या एमपी में भी बढ़ेगी लिमिट
भारत के कुछ राज्य जैसे राजस्थान, दिल्ली और गुजरात पहले ही अपने नागरिकों के लिए इलाज की आयुष्मान योजना सीमा बढ़ा चुके हैं। मध्यप्रदेश में भी अब ये मांग जोर पकड़ रही है।
भोपाल में हर महीने करीब 500 ऐसे मरीज आते हैं जिन्हें 5 लाख रुपए से ज्यादा के इलाज की जरूरत होती है। एम्स भोपाल के सीनियर यूरोलॉजिस्ट डॉ. केतन मेहरा के मुताबिक, असली दिक्कत फंडिंग की है। अंगदान के मामलों में मरीज को आईसीयू में रखने और ट्रांसप्लांट करने का खर्च बहुत ज्यादा है।
अगर आयुष्मान की सीमा 10 लाख रुपए कर दी जाए, तो 80% मरीजों की समस्या का समाधान हो सकता है। राजस्थान, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों ने अपने स्तर पर इस कवर को बढ़ा दिया है।
अब मध्य प्रदेश में भी इसकी मांग तेज हो गई है। जानकारी के मुताबिक, मध्य प्रदेश के डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने आश्वासन दिया है कि सरकार दूसरे राज्यों के मॉडल को देख रही है। जल्द ही इस पर (Ayushman Bharat Scheme) कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। भोपाल एम्स न्यूज
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