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केंद्र सरकार की नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप (NOS) के तहत विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। 18 दिसंबर 2025 को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में बताया गया कि मध्यप्रदेश का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। पिछले दस सालों में केवल दो आदिवासी छात्रों को इस योजना का लाभ मिला है। ऐसे में एमपी का यह आंकड़ा बहुत ही कम है।
मध्यप्रदेश में आदिवासी छात्रों को विदेशों में अवसर कम
केंद्र सरकार की इस योजना में मध्यप्रदेश से केवल दो छात्रों का चयन हुआ है। मध्यप्रदेश सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाले राज्यों में शामिल है। फिर भी विदेशों में अध्ययन के लिए राज्य के छात्रों का चयन बहुत कम है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी वजह जानकारी की कमी, मार्गदर्शन का अभाव और संस्थागत सहयोग का कमजोर होना हो सकता है।
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दक्षिण भारत ने दिखाई परफॉर्मेंस में श्रेष्ठता
दक्षिण भारत के राज्य जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इस योजना में शीर्ष पर हैं। इन राज्यों से अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों की बड़ी संख्या विदेशों में मास्टर्स और पीएचडी के लिए चयनित हुई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इन राज्यों में योजना का बेहतर लाभ लिया जा रहा है।
नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप की खबर पर एक नजर...
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तमिलनाडु सबसे आगे
लोकसभा के जवाब के मुताबिक, तमिलनाडु इस योजना में सबसे ऊपर है। इसके बाद कर्नाटक और केरल का नाम आता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके मुकाबले महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य मध्यप्रदेश से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
जानें नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप क्या है?
NOS योजना केंद्र सरकार की एक महत्वपूर्ण योजना है। इसके तहत ST छात्रों को विदेशों में मास्टर्स और पीएचडी की पढ़ाई के लिए मदद मिलती है। योजना में शिक्षा शुल्क, रहने का खर्च, हवाई यात्रा, वीजा और बीमा जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
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कितने छात्रों को मिलती है छात्रवृत्ति?
विदेशी छात्रवृत्ति योजना के तहत हर साल 125 छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। इनमें से 115 छात्रवृत्तियां SC छात्रों के लिए होती हैं। 6 छात्रवृत्तियां विमुक्त/घुमंतू/अर्ध-घुमंतू जनजातियों के लिए होती हैं। 4 छात्रवृत्तियां भूमिहीन कृषि मजदूर और पारंपरिक कारीगरों के लिए आरक्षित होती हैं। हालांकि, यह संख्या फंड्स और चयन प्रक्रिया के आधार पर बदल सकती है।
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