आयुष्मान में अरबों की बारिश,भोपाल में चिरायु को मिले 360 करोड़, इंदौर के अरबिंदो को 335 करोड़ रु.

मध्य प्रदेश में आयुष्मान योजना निजी अस्पतालों की कमाई का जरिया बन गई। ऐसे में संघ प्रमुख की यह चिंता जायज है कि शिक्षा व स्वास्थ्य बिलियन डॉलर का बिजनेस बन गए हैं।

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Ravi Awasthi
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रवि अवस्थी,भोपाल.

आयुष्मान भारत निरामय योजना के नाम पर मध्यप्रदेश में मानो खेल चल रहा है। ये हम नहीं कह रहे, खुद आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। गरीबों के मुफ्त इलाज के बहाने अस्पतालों के मालिक आयुष्मान योजना को सोने की खान बना चुके हैं। ​आप गोलमाल का अंदाजा इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दो महीने पहले भोपाल, सीहोर और ग्वालियर के जिन आठ अस्पतालों को योजना से बाहर कर दिया गया था, उन्हें भी 31 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ है। 

सरकार का दावा है कि योजना की शुरुआत से अब तक सूबे के 70 लाख मरीजों को पांच लाख तक का मुफ्त इलाज मिला है। सात बरसों में योजना पर कुल 7 हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। सवाल यही है कि ये पैसा कहां गया? गरीबों तक इलाज पहुंचा या अस्पताल संचालकों की जेब में घुस गया?

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आधा दर्जन अस्पतालों को 1 अरब मिले 

मध्यप्रदेश में आयुष्मान भारत निरामय योजना में 1 हजार 184 अस्पताल लिस्टेड हैं, जिनमें से 687 निजी हॉस्पिटल हैं। आंकड़े बताते हैं कि आधा दर्जन अस्पताल ऐसे हैं, जिन्हें एक अरब से ऊपर की रकम मिली है। सबसे खास यह है कि सिर्फ सात अस्पतालों को ही 1 हजार 151 करोड़ रुपए दिए गए हैं, यानी कुल रकम का 17 फीसदी हिस्सा इन्हीं को दे दिया गया।

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भोपाल में चिरायु, इंदौर में श्री अरबिंदो ने अरबों पीटे

योजना में इलाज के नाम पर सरकार से धन पाने के मामले में भोपाल का चिरायु मेडिकल कॉलेज टॉप पर है। इसे आयुष्मान योजना में अब तक करीब 360 करोड़ रुपए मिले हैं। दूसरा स्थान इंदौर के अरविंदो अस्पताल का है। इसे 335 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया।

अरबपतियों की इस श्रेणी में तीसरा चौंकाने वाला नाम देवास के अमलतास अस्पताल का है। इसे 121 करोड़ का भुगतान किया गया। वहीं, भोपाल के जेके हॉस्पिटल को 113 करोड़, कैंसर अस्पताल को 101 करोड़, पीपुल्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल को 69 करोड़, भोपाल की ही एलबीएस अस्पताल को 52 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है।

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सरकारी अस्पताल उपेक्षा का शिकार

योजना में कहने को 497 सरकारी अस्पतालों को भी लिस्टेड किया गया है, लेकिन सिर्फ एम्स भोपाल को छोड़कर दूसरा कोई भी अस्पताल योजना में 100 करोड़ रुपए का आंकड़ा नहीं छू सका। एम्स को योजना में अब तक 109 करोड़ रुपए का भुगतान हुआ है। वहीं, गैस पीड़ितों के इलाज वाली बीएमएचआरसी को 14 करोड़ और इछावर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को 3 करोड़ 9 लाख रुपए का भुगतान हुआ है।

इन तीन अस्तपालों को छोड़कर बाकी सरकारी अस्पताल योजना में बुरी तरह उपेक्षित रहे हैं। कुछ तो ऐसे हैं, जिनके हजार रुपए का बिल भी नहीं बना। मुरैना जिले का बानमौर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे ही अस्पतालों में शामिल है, जिसने योजना में सिर्फ 945 रुपए के इलाज का लाभ मरीज को पहुंचाया।

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भुगतान पाने में भी निजी अस्पताल आगे

मालवा-निमाड़ में 596 करोड़ रुपए का भुगतान हो चुका है। इसका मतलब साफ है कि इस योजना ने कैसे कई अस्पताल मालिकों को अरबपति बना दिया। वहीं, समग्र तौर पर देखा जाए तो निजी अस्पतालों को योजना में जहां 5100 करोड़ का भुगतान अब तक किया गया। वहीं, सरकारी अस्पतालों के दावे करीब 11 सौ करोड़ के रहे।

इनमें भी करीब 69 हजार दावों के 48 करोड़ रुपए का भुगतान इन अस्पतालों को नहीं मिल सका। इनमें भोपाल का जवाहर लाल नेहरू गैस राहत अस्पताल भी शामिल है। दूसरी तरफ निजी अस्पतालों के सिर्फ 40 करोड़ के 41 हजार 770 दावे ही विभाग में भुगतान के लिए पेंडिंग हैं। इससे साफ है कि किस तरह प्राइवेट अस्पतालों को फायदा पहुंचाया जा रहा है। 

कभी सुना ऐसे अस्पताल का नाम ?

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने विधानसभा में योजना से जुड़े कई निजी अस्पतालों के नाम तो बताए, पर उनके स्थान छिपा लिए। इस सूची में ऐसे अस्पतालों के नाम भी हैं, जो न तो गूगल पर मिलते हैं और न ही कहीं लोकल स्तर पर जाने जाते हैं।

उदाहरण के लिए, "ए 62366026535 विसेन्ना मल्टीस्पिश्येलिटी हास्पिटल" का नाम है, जिसे 71 लाख रुपए से अधिक का भुगतान किया गया। यह नाम सुनकर ही कोई दंग रह जाएगा कि आखिर ऐसा अस्पताल है कहां? ऐसे गुमनाम अस्पतालों को करोड़ों रुपए कैसे और किस प्रक्रिया से दिए गए, यह बड़ा सवाल है।

 जिनकी मान्यता खत्म, उन्हें 31 करोड़ का भुगतान

योजना में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से गत मई-जून में जांच अभियान चलाया गया। इसमें उसे भोपाल के पांच,सीहोर व ग्वालियर में एक-एक ऐसे अस्पताल मिले, जहां लोगों को जबरिया अस्पताल में भर्ती कर उन्हें योजना का हितग्राही बना दिया गया। खास बात यह कि मान्यता खत्म होने से पहले सरकार की ओर से आठों ही अस्पतालों को करीब 31 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। 

जिला       अस्पताल            भुगतान राशि

भोपाल     मेट्रो सिटी              5.10 करोड़
भोपाल      सूर्यांश                 2.46 करोड़
भोपाल       साईं हास्पिटल      9.78 करोड़
भोपाल    भगवती नर्सिंग होम  2.01करोड़
भोपाल    एमडीसी हास्पिटल   2.24 करोड़
भोपाल   प्रभु प्रेम नेत्रालय      5.63 करोड़
सीहोर    सानिया हास्पिटल    1.70 करोड़
ग्वालियर   सर्वधर्म मल्टी स्पे.  52.62 लाख

करोड़ों में भुगतान पर, इनका ठिकाना अज्ञात

सदन में दी गई जानकारी अनुसार, ऐसे अस्पतालों की भी लंबी फेहरिस्त है, जिन्हें योजना के तहत करोड़ों रुपए का भुगतान तो किया गया, लेकिन उनका ठिकाना स्वास्थ्य विभाग भी नहीं जानता। इसी अज्ञानता के चलते विभाग की ओर से सदन में पेश जानकारी में बताया गया...

हॉस्पिटल       भुगतान किया 

एबीएम             43.20 करोड़
अजय भंडारी     25.68 करोड़
आल इज वेल     60.57करोड़
अनंत हार्ट         22.11 करोड़
आनंद              08.00  करोड़
अनंतश्री           18.53 करोड़
चिराग चिल्ड्रन   48.50 करोड़
बीआइएमआर   67.00 करोड़
चोइथराम        49.52  करोड़

(विधानसभा में सरकार की ओर से दी गई जानकारी पर आधारित)

संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत की चिंता जायज

RSS चीफ मोहन भागवत का बयान है कि शिक्षा और चिकित्सा आमजन की जरूरत है,ले​किन ये बिलियन डॉलर के बिजनेस बन गए हैं तो वे गलत नहीं हैं। सदन में पेश ये आंकड़े साफ कहते हैं कि आयुष्मान योजना गरीबों के लिए कम, प्राइवेट अस्पतालों के मुनाफे के लिए ज़्यादा काम आई। जिन अस्पतालों की मान्यता रद्द हो गई, उन्हें भी करोड़ों का भुगतान हो गया, और कई ऐसे अस्पताल हैं जिनका ठिकाना तक अज्ञात है। सवाल यही है-क्या योजना का असली लाभ मरीजों तक पहुंचा, या फिर यह भी सरकारी तंत्र में जड़ें जमा चुके स्वास्थ्य उद्योग का एक और सुनहरा सौदा बन गई? 

मध्यप्रदेश भोपाल RSS चीफ मोहन भागवत का बयान मालवा