'लज्जा' के मंचन के बीच बांग्लादेश के हालात पर तस्लीमा नसरीन ने उठाए सवाल

बांग्लादेश की प्रसिद्ध और निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन जबलपुर पहुंचीं, जहां उन्होंने बंग भाषी समुदाय की प्रतिष्ठित संस्था सिद्धि बाला बोस के शताब्दी वर्ष समारोह में भाग लिया।

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Neel Tiwari
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बांग्लादेश की चर्चित और निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन जबलपुर पहुंचीं, जहां उन्होंने बंग भाषियों की प्रतिष्ठित संस्था सिद्धि बाला बोस के शताब्दी वर्ष समारोह में भाग लिया। यह संस्था बंगाली संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने के लिए समर्पित है और इसके शताब्दी वर्ष का आयोजन साहित्य, नाटक और संवाद के माध्यम से बंगाली विरासत को सम्मानित करने के लिए किया जा रहा है। इस खास मौके पर जबलपुर के शहीद स्मारक में तस्लीमा नसरीन के चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ का मंचन भी किया गया। यह उपन्यास 1993 में प्रकाशित हुआ था और इसमें बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचारों को दर्शाया गया है। मंचन की खास बात यह रही कि इसे दिल्ली की प्रसिद्ध नवपल्ली नाट्य संस्था द्वारा बंगला भाषा में प्रस्तुत किया गया। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए, जिन्होंने इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए शहीद स्मारक का रुख किया।

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बांग्लादेश में बढ़ती कट्टरता पर तस्लीमा की चिंता

तस्लीमा नसरीन ने कार्यक्रम के दौरान बांग्लादेश के मौजूदा हालात को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि "बांग्लादेश का वास्तविक इतिहास नष्ट किया जा रहा है। कट्टरपंथी ताकतें वहां हावी हो चुकी हैं और उन्होंने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की जड़ों को कमजोर कर दिया है।" तस्लीमा ने खास तौर पर जमाते इस्लामी संगठन पर हमला बोलते हुए कहा कि यह संगठन बांग्लादेश में धार्मिक उन्माद फैलाने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काने का काम कर रहा है। उनके अनुसार, "जमाते इस्लामी के जिहादियों ने पूरे बांग्लादेश को अपने नियंत्रण में ले लिया है और वे इसे एक कट्टर इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं।"

तस्लीमा ने यह भी कहा कि यह संगठन केवल हिंदू, बौद्ध और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और उनके परिवारों को भी खत्म करने की साजिश रच रहा है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "जमाते इस्लामी को तुरंत बैन किया जाना चाहिए, क्योंकि यह संगठन बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के खिलाफ एक गंभीर खतरा बन चुका है।"

शेख मुजीबुर्रहमान की विरासत को मिटाने की साजिश

तस्लीमा नसरीन ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान समर्थित जमाते इस्लामी बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की विचारधारा, उनके परिवार और उनकी विरासत को मिटाने में जुटी हुई है। उन्होंने कहा कि कट्टरपंथी ताकतें उन मूल्यों को खत्म करना चाहती हैं, जिन पर आधुनिक बांग्लादेश की नींव रखी गई थी। उनके अनुसार, "जमाते इस्लामी के लोग सिर्फ मुजीबुर्रहमान के परिवार को खत्म करने की कोशिश नहीं कर रहे, बल्कि उनकी विचारधारा, उनकी स्मृतियों और उनके द्वारा निर्मित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की पहचान को भी मिटाने में लगे हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी ध्यान देना चाहिए और सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि वह इस बढ़ते धार्मिक उन्माद पर लगाम लगाए।

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‘बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनाव जरूरी’

तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में निष्पक्ष चुनाव कराने की मांग करते हुए कहा कि देश की मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि "जहां लोकतंत्र नहीं होता, वहां विचारों की स्वतंत्रता भी नहीं होती।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी देश में अगर लोकतंत्र कमजोर हो जाता है, तो वहां सबसे पहले महिलाओं और अल्पसंख्यकों को दमन का शिकार होना पड़ता है। उन्होंने धर्म आधारित राजनीति को "खतरनाक" करार देते हुए कहा कि "राजनीति का आधार धर्म नहीं होना चाहिए, बल्कि लोगों के अधिकार, उनकी आज़ादी और न्याय होना चाहिए।" उनके अनुसार, एक स्वस्थ लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने और अपने विचार व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक बांग्लादेश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव नहीं होंगे, तब तक वहां की जनता को असली लोकतंत्र नहीं मिल पाएगा।

‘लज्जा’ ने बदली जिंदगी, निर्वासन झेलना पड़ा

तस्लीमा नसरीन ने अपने उपन्यास ‘लज्जा’ को लेकर हुई परेशानियों का जिक्र करते हुए कहा कि इस उपन्यास के कारण उन्हें कट्टरपंथियों के गुस्से का शिकार बनना पड़ा। यह उपन्यास बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को उजागर करता है, जिसके कारण कट्टरपंथी संगठनों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने कहा कि "मुझ पर आरोप लगाया गया कि मैंने इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाया है।" इसके बाद कई कट्टर मौलवियों ने उनके खिलाफ 'सजा-ए-मौत' का फतवा जारी कर दिया। यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि बांग्लादेश की सरकार ने उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उन्हें पहले स्वीडन और फिर भारत में शरण लेनी पड़ी, लेकिन यहां भी उन्हें कई बार विरोध और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि "मैंने सिर्फ सच लिखा, लेकिन सच लिखने की सजा मुझे अपने देश से निर्वासित होकर चुकानी पड़ी।"

महाकुंभ पर तस्लीमा की राय

जब तस्लीमा नसरीन से हाल ही में आयोजित महाकुंभ को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि "महाकुंभ धार्मिक आस्था और समरसता का प्रतीक है।" उन्होंने इस बात पर विशेष रूप से ध्यान दिया कि "महाकुंभ में हर समुदाय, हर वर्ग और हर जाति के लोगों ने आकर स्नान किया, यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति सबको साथ लेकर चलती है।" तस्लीमा ने आगे कहा कि "धर्म और आध्यात्मिकता व्यक्तिगत विषय होते हैं और इन्हें किसी एक समूह की बपौती नहीं बनाया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि किसी भी समाज की खूबसूरती इसी में होती है कि वहां हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीने और अपनी आस्था को व्यक्त करने की स्वतंत्रता हो।

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जबलपुर में तस्लीमा नसरीन ने की कई मुद्दों पर चर्चा 

तस्लीमा नसरीन का जबलपुर दौरा केवल एक साहित्यिक आयोजन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इस दौरान उन्होंने बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति, लोकतंत्र, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और महिलाओं की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर भी बेबाकी से अपनी राय रखी। ‘लज्जा’ के मंचन ने जहां साहित्य प्रेमियों को एक ऐतिहासिक अवसर दिया, वहीं तस्लीमा के विचारों ने लोगों को बांग्लादेश के राजनीतिक और सामाजिक हालात पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। उनके विचारों से यह साफ हो गया कि वे अब भी अपने मूल्यों और विचारधारा पर अडिग हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपना देश छोड़कर निर्वासित जीवन क्यों न बिताना पड़ा हो।

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