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BHOPAL. भोपाल का बरकतउल्ला विश्वविद्यालय हर महीने पीने के पानी पर 50 लाख रुपए खर्च कर रहा है। यह स्थिति तब है जबकि विश्वविद्यालय में नर्मदा जल का कनेक्शन और विभागों में वॉटर कूलर सहित प्यूरीफायर भी लगे हैं। विश्वविद्यालय नर्मदा जल की आपूर्ति के लिए हर महीने करीब एक लाख और ट्यूबवेल के बिल पर 50 हजार रुपए खर्च करता है। ऐसे में पेय जल के नाम पर वॉटर बॉटल की खरीदी पर सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं इन सवालों के जवाब में विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जानी-पहचानी दलीलों के सहारे सफाई दे रहा है। प्रबंधन पानी की उपलब्धता की कमी बताकर भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने की कवायद के लिए जमीन तलाश रहा है।
राजधानी के सबसे पुराने विश्वविद्यालय की फिजूलखर्ची जब-तब चर्चा का विषय बनी रहती है। इनदिनों विश्वविद्यालय में पानी के नाम पर हो रहे खर्च की चर्चा जोरों पर है। वो इसलिए क्योंकि विश्वविद्यालय प्रबंधन हर महीने केवल पेयजल पर ही 50 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर रहा है। छात्र संगठन पानी के नाम दर्शाए जा रहे खर्च में हेराफेरी के आरोप लगा रहे हैं। बताया जा रहा है कि विश्वविद्यालय में हर महीने बोतलबंद पानी खरीदा जा रहा है। इस पर करीब 50 लाख का खर्च हो रहा है। इतनी भारी भरकम राशि तब खर्च हो रही है जबकि विश्वविद्यालय के पास नर्मदा जल का कनेक्शन भी है। इससे नियमित पानी पहुंचता है। विश्वविद्यालय के स्टाफ, छात्र और यहां आने वाले लोगों के लिए कार्यालय और विभागों में वॉटर कूलर, प्यूरीफायर भी रखे हैं। वहीं ट्यूबवेल के कनेक्शन पर हर महीने करीब 50 हजार का बिजली बिल भी जमा किया जा रहा है और जरूरत पड़ने पर टैंकर से भी जलापूर्ति कराई जा रही है।
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बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में 27 विभाग संचालित हैं जिनमें आवासीय और बाहरी छात्र अध्ययनरत हैं। जब कि अधिकारी-कर्मचारियों के 75 आवास भी हैं। प्रशासनिक भवन जहां प्रतिदिन पानी मंगाया जा रहा है। छात्र संगठनों का कहना है कि प्रशासनिक भवन में अधिकारी और कर्मचारियों के अलावा बाहरी व्यक्तियों और छात्रों को तो पानी भी नहीं मिलता। उनके लिए नर्मदाजल की पाइप से आने वाला पानी उपलब्ध होता है। ज्यादातर लोगों को तो बाहर से या कैंटीन से पानी की बोतल खरीदनी पड़ती है। विश्वविद्यालय प्रबंधन जितना बोतलबंद पानी खरीदने का दावा कर भुगतान दिखा रहा है असलियत में इतना पानी उपयोग नहीं हो रहा है। पेय जल के नाम पर जितना खर्च दिखाया जा रहा है उतना तो प्रदेश की छोटी नगर पंचायत की आबादी पर भी नहीं हो रहा है।
छात्र संगठनों के अनुसार विश्वविद्यालय में 27 विभाग हैं। जहां प्रत्येक में औसतन पांच बोतल पानी आता है। एक बोतल पर 40 रुपए खर्च आता है तो सभी विभागों में एक महीने में 1.40 लाख से दो लाख तक खर्च हो सकता है। इसके अलावा प्रशासनिक भवन और आवासों में जलापूर्ति का खर्च इसमें मिला लें तो भी यह राशि 5 लाख से ज्यादा नहीं हो सकती। ऐसे में विश्वविद्यालय गर्मी में पेय जल के नाम पर बोतलबंद पानी के बहाने जितना खर्च बता रहा है उसके हिसाब में हेराफेरी का अंदेशा है। पानी के हिसाब की बारीकी से जांच कराई जाए तो इसमें भी लाखों का खेल सामने आ जाएगा।
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पेय जल के नाम पर बोतलबंद पानी पर लाखों खर्च करने का मामला चर्चा में आते ही विश्वविद्यालय प्रबंधन को भूमिगत जलस्तर की सुध आ गई है। प्रबंधन का कहना है विश्वविद्यालय परिसर में काली मिट्टी के कारण यह क्षेत्र सूखा रहता है और पानी जमीन में समाने की जगह बह जाता है। इस वजह से भूमिगत जल स्तर बहुत नीचे गिर गया है। जलस्तर में वृद्धि हो इसके लिए विश्वविद्यालय आसपास तालाब तैयार करने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए संस्कृत संस्थान के पीछे जमीन की तलाश भी की जा रही है। विश्वविद्यालय ये दलील लाखों के खर्च के सवाल पर है, हांलाकि भूमिगत जल का पेयजल की आपूर्ति से कोई सरोकार नहीं है। पेयजल की आपूर्ति तो नर्मदा जल के कनेक्शन से होती है।
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