धार भोजशाला की मूल संरचना छिपाई गई, ASI के पत्र से खुलासा, HC से सर्वे के लिए और 8 सप्ताह और मांगे

एएसआई ने पत्र में अभी 8 सप्ताह का समय भर मांगा है और रिपोर्ट नहीं दी है, लेकिन पत्र में लिखी कुछ लाइन से यह संभावना तेज हो गई है कि यहां की मूल संरचना को छिपाया गया है। 

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Pratibha ranaa
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धार भोजशाला

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संजय गुप्ता, INDORE. धार भोजशाला ( Dhar Bhojshala ) मामले में हाईकोर्ट इंदौर ने 11 मार्च को आदेश जारी कर 6 सप्ताह में में सर्वे ( Dhar Bhojshala survey ) करने के आदेश दिए थे। इस मामले में अब ASI यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने हाईकोर्ट को एक प्रार्थना लगाई है, जिसमें इस सर्वे में समय लगने की बात कहते हुए 8 सप्ताह का समय मांगा है। हाईकोर्ट में 29 अप्रैल को सुनवाई नियत है। 

ASI ने पत्र में बताया परिसर की मूल संरचना छिपी हुई

एएसआई ने भले ही पत्र में अभी 8 सप्ताह का समय भर मांगा है और रिपोर्ट नहीं दी है। लेकिन पत्र में लिखी कुछ लाइन से यह संभावना तेज हो गई है कि यहां की मूल संरचना को छिपाया गया है। पत्र में एक प्वाइंट में लिखा है कि- स्मारक की बारीक जांच करने पर यह देखा गया है कि प्रवेश द्वार बरामदे में भराव, संरचना की मूल विशेषताओं को छिपा रहा है। इस काम को बहुत सावधानी से करने की की जरूरत है। मूल संरचना को कोई नुकसान नहीं पहुंचे, जो धीमी गति से होता है और समय लगने वाली प्रक्रिया है ( Dhar Bhojshala controversy )। 

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यह भी लिखा गया पत्र में

भोजशाला सह कमल मौला मस्जिद के परिसर की सीमा से गोलाकार 50 मीटर के रिंग को बनाकर काम किया जा रहा है। 22 मार्च से सर्वे का काम शुरू किया गया है। वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग कर काम किया जा रहा है। पूरे स्मारक का विस्तृत दस्तावेजीकरण हो राह है। उत्खनन एक व्यवस्थित और धीमी प्रक्रिया है। संरनचाओं को समझने में समय की जरूरत है। इसलिए कृपया आठ सप्ताह का समय और दिया जाए। 

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हाईकोर्ट ने यह कहा था आदेश में

हाईकोर्ट ने अपने आदेश के प्वाइंट 29 में कहा था कि पूरे भोजशाला व कमाल मौलाना मस्जिद परिसर का सर्वे, उत्खनन नई वैज्ञानिक पद्धित से किया जाए। इसमें जीपीएस, जीपीआर तकनीक के साथ कार्बन डेटिंग व अन्य नई तकनीक से पूरा सर्वे किया जाए। परिसर की बाउंड्रीवाल से 50 मीटर दूरी तक की सर्वे किया जाए। इस सर्वे के लिए एएसआई के कम से कम सीनियर अधिकारी की कमेटी होना चाहिए। सर्वे काम का पूरा वीडियोग्राफी हो। परिसर के हर बंद पड़े कमरे, खुले परिसर, खंबे सहित सभी की पूरी तरह से विस्तार सर्वे किया जाए। हिंद पक्ष के अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन व विनय जोशी ने कहा कि हमारी याचिका स्वीकर हो गई है। बाकी मुद्दे पर हाईकोर्ट रिपोर्ट आने पर फैसला करेगा।

हाईकोर्ट याचिका में यह है पक्षकार

हाईकोर्ट में दायर याचिका में हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट, रंजना अग्निहोत्री, आशीष गोयल, आशीष जनक, मोहित गर्ग, जितेंद्र बिसने, सुनील सास्वत ने याचिका दायर की है। इसमें केंद्र सरकार, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई), आर्कियोलॉजिकल ऑफिसर, मप्र सरकार, डिला कलेक्टर, एसपी, मौलाना कमालुद्दीन थू इट्स प्रेसीडेंट अब्दुल समद खान, श्री महाराजा भोजशाला संस्थान समिति को पार्टी बनाया गया है।

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क्या है भोजशाला का रिकार्ड

मुस्लिम पक्ष के अनुसार

इस वर्ग का मानना है कि यहां कमाल मौलाना की दरगाह है। यह मस्जिद ही है और 1985 के वक्फ बोर्ड बनने पर उनके आर्डर में इसे जामा मस्जिद कहा गया है। इसलिए यह हमारा धर्मस्थल है। अलाउद्दीन खिलजी के समय 1307 से ही यह हमारा स्थल है, उन्हीं के समय से मस्जिद बनी हुई है। रिकार्ड में भोजशाला के साथ कमाल मौला की मस्जिद लिखा हुआ है। यह पूरा स्थल हमारा है।

हिंदू संगठन का पक्ष

-    हिंदू संगठनों का कहना है कि यह परमार वंश के राजा भोज द्वारा बनवाया गया विश्वस्तरीय स्कूल था। जहां पर इंजीनियरिंग, म्यूजिक, आर्कियोलॉजी व अन्य विषय की श्रेठ पढाई होती थी और इसकी प्रसिद्धी का स्तर नालंदा, तक्षशिला जैसा ही था।
-    यह साल एक हजार में स्थापित हुआ था। यहां मां वाग्देवी की प्रतिमा थी। साथ ही यहां पर हिंदू स्ट्रक्चर के पूरे साक्ष्य मौजूद है। खंबों पर हिंदू संस्कृति की नक्काशी है, संस्कत व प्राकूत भाषा में शब्द लिखे हुए हैं। 
-    यहां कभी भी मस्जिद नहीं रही है। पुराने रिकॉर्ड में भी हमेशा भोजशाल शब्द का उपयोग हुआ है।
-    इसलिए यह स्थल हमारी उपासना का केंद्र है, यह पूरी तरह हमे मिलना चाहिए। हिंदू पक्ष का यह भी तर्क है कि जिन कमाल मौलान की यहां मजार बताई जाती है, वह तो धार में कभी दफनाए ही नहीं गए। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने पहले यहां खुदाई भी की थी जब हिंदू स्थल के सबूत मिले थे लेकिन फिर रोक दी गई। इसलिए यह खुदाई यहां की और दरगाह स्थल की भी होना चाहिए, इससे सब साफ हो जाएगा। 
-    यह भी तथ्य कहा जाता है कि अलाउद्दानी खिलजी ने 1300 में अटैक किया था और फिर 1540 में मोहम्मद खिलजी …

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