बिना कोर्ट आदेश के कब्जा दिलवाना पड़ा भारी, हाईकोर्ट ने भोपाल कलेक्टर और तहसीलदार को लगाई फटकार

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्रवाई को लेकर सख्ती दिखाई है। भोपाल कलेक्टर और तहसीलदार द्वारा बिना न्यायिक आदेश के संपत्ति का कब्जा सौंपने के मामले में कोर्ट ने एक हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया।

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Neel Tiwari
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bhopal collector tehsildar high court order clarification occupation case

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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DRAT कोर्ट के आदेश के बाद भी बैंक के एक कर्जदार को कब्जा दिलाना, भोपाल कलेक्टर और तहसीलदार को भारी पड़ता हुआ नजर आ रहा है, मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए यह कहा है प्रशासनिक अधिकारियों को न्यायिक आदेशों की अनदेखी कर मनमानी नहीं करने दी जाएगी।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक बेहद अहम आदेश में भोपाल जिले के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों कलेक्टर और तहसीलदार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे एक सप्ताह के भीतर शपथ-पत्र (हलफनामा) के माध्यम से यह बताएं कि उन्होंने किस अधिकार के तहत, बिना किसी न्यायालयीन आदेश के, एक संपत्ति का कब्जा छीनकर उसे उधारकर्ता को वापस सौंप दिया। कोर्ट ने इस गंभीर मामले को न्यायिक व्यवस्था की गरिमा से जोड़ते हुए स्पष्ट किया कि कानून के शासन में प्रशासनिक मनमानी की कोई जगह नहीं हो सकती।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जुड़े भोपाल कलेक्टर, कोर्ट ने लगाई फटकार

सुनवाई के दौरान, भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े। कोर्ट ने कलेक्टर को केवल इस बार के लिए व्यक्तिगत उपस्थिति से तो छूट दे दी, लेकिन जब बिना किसी आदेश के उनके द्वारा की गई कार्यवाही पर कोर्ट ने सवाल किया तो भोपाल कलेक्टर ने कोर्ट से माफी मांगते हुए यह बताया की आवेदनकर्ता के द्वारा उनके सामने लगाई गई गुहार को देखते हुए मानवता के तौर पर यह एक्शन लिया गया था। जिस पर कोर्ट ने भोपाल कलेक्टर सहित तहसीलदार को भी फटकार लगाई और इस कार्रवाई को सीधी-सीधी मनमानी बताया। साथ ही, कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में, अधिकारियों की जवाबदेही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है और वह न्यायालय बनने की कोशिश ना करें। अब भोपाल कलेक्टर को एक हफ्ते के बीच अपना जवाब हलफनामे में कोर्ट के सामने पेश करना होगा।

प्रभारी तहसीलदार अतुल शर्मा हुए उपस्थिति, कोर्ट ने मांगा स्पष्टीकरण

कोर्ट में प्रभारी तहसीलदार अतुल शर्मा व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और सीमित उत्तर प्रस्तुत किए। लेकिन हाईकोर्ट इससे संतुष्ट नहीं हुआ। कोर्ट ने निर्देश दिया कि तहसीलदार को भी एक सप्ताह के भीतर विस्तृत हलफनामा दाखिल करना होगा, जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि किन परिस्थितियों में और किस प्राधिकारी के निर्देश पर कब्जा वापस किया गया। कोर्ट ने यह संकेत भी दिया कि यदि स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं पाया गया तो अनुशासनात्मक या न्यायालयीन कार्रवाई की जा सकती है।

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DRAT कोर्ट में चल रही थी सुनवाई, कलेक्टर ने पहले ही दिला दिया कब्जा

12 सितंबर 2024 को ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) ने बैंक द्वारा की गई कब्जा कार्रवाई को अवैध करार देते हुए संपत्ति को उधारकर्ता को लौटाने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद बैंक ने 23 सितंबर को DRAT (ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण) में अपील दायर कर दी थी और मामला 24 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इसी बीच, बिना DRAT के किसी स्पष्ट आदेश के, भोपाल के प्रशासनिक अधिकारियों कलेक्टर और तहसीलदार ने खुद से कब्जा वापसी की कार्रवाई प्रारंभ कर दी। हाईकोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि “प्रशासनिक अधिकारी स्वयं न्यायालय नहीं हो सकते।”

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कलेक्टर और तहसीलदार ने की मनमानी, कोर्ट ने जताई नाराजगी 

बैंक की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि प्रशासन द्वारा की गई यह कार्रवाई पूरी तरह से एकतरफा और न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करने वाली है। उनका कहना था कि जब DRAT के समक्ष मामला लंबित था और यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया गया था, तब कलेक्टर व तहसीलदार द्वारा की गई कार्रवाई न केवल अतिक्रमण है, बल्कि अदालत की अवमानना के दायरे में आती है। 

इस मामले में भोपाल के कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह ने कोर्ट से माफी भी मांगी और उन्होंने बताया कि बैंक से उधार लेने वाले पक्ष की और सी की गई प्रार्थना पर यह कार्यवाही की गई थी लेकिन कोर्ट ने इसे सिरे से गलत ठहराते हुए मनमानी बताया। कोर्ट ने इसे गंभीर टिप्पणी के साथ दर्ज किया और स्पष्ट किया कि न्यायिक निर्देशों का पालन न करना, प्रशासनिक सत्ता का दुरुपयोग माना जाएगा।

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कोर्ट के आदेशों की अवहेलना नहीं होगी बर्दाश्त

जबलपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस संजीव सचदेवा कर रहे थे, उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि प्रशासन इस तरह से कोर्ट के आदेशों को नजरअंदाज करता रहा, तो यह न केवल विधिक प्रणाली में अराजकता को जन्म देगा, बल्कि आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन भी करेगा। कोर्ट ने इस आदेश के माध्यम से पूरे प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि न्यायालय सर्वोच्च संस्था है और उसके आदेशों की अवहेलना किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

कलेक्टर और तहसीलदार कोर्ट में पेश करेंगे हलफनामा

हाईकोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 24 अप्रैल 2025 निर्धारित की है। तब तक सभी पक्षों कलेक्टर, तहसीलदार, उधारकर्ता और बैंक को विस्तृत हलफनामे दाखिल करने होंगे। यदि स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं पाया गया तो हाईकोर्ट भविष्य में अवमानना कार्रवाई की ओर भी बढ़ सकता है, जो प्रशासनिक अधिकारियों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। यह मामला केवल एक कब्जे का नहीं, बल्कि न्यायिक प्रणाली की प्रतिष्ठा का है। जबलपुर हाईकोर्ट का यह रुख भविष्य में प्रशासन और न्यायपालिका के बीच सीमाओं को परिभाषित करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला 

✅ भोपाल कलेक्टर और तहसीलदार को हाईकोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।

✅   बिना न्यायिक आदेश के संपत्ति का कब्जा सौंपने के मामले में हाईकोर्ट ने भोपाल कलेक्टर और तहसीलदार को कड़ी फटकार लगाई है।

✅  कोर्ट ने कलेक्टर और तहसीलदार से स्पष्टीकरण मांगा और इसे प्रशासनिक मनमानी बताया।

✅  न्यायिक आदेशों की अवहेलना को लेकर हाईकोर्ट ने प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए और चेतावनी दी।

✅  मामले की अगली सुनवाई 24 अप्रैल 2025 को होगी, और सभी पक्षों को हलफनामे दाखिल करने होंगे।

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