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New Delhi: 27 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों की ओर से दायर अवमानना याचिका पर निर्देश जारी किए हैं। याचिका में आरोप लगाया गया था कि केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार उस आदेश का सही तरीके से पालन नहीं कर रही हैं, जिसे उच्चतम न्यायालय ने 2012 में पीड़ितों की चिकित्सा देखभाल और स्वास्थ्य रिकॉर्ड के कंप्यूटरीकरण से संबंधित निर्बाध दिशा-निर्देशों के रूप में जारी किया था।
SC सहित HC के आदेशों की भी हुई अवहेलना
दायर की गई अवमानना याचिका में बताया गया है कि 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ितों के लिए आदेश दिए थे, जिनमें उनके चिकित्सा रिकॉर्ड्स का कंप्यूटरीकरण और समुचित चिकित्सा सुविधाओं की सुनिश्चितता शामिल थी। इन आदेशों को लागू कराने की जिम्मेदारी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर को सौंपी गई थी।
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मॉनिटरिंग कमेटी ने भी जताई थी चिंता
2004 में गठित की गई मॉनिटरिंग कमेटी को 2013 में पुनर्गठित किया गया था, इस कमेटी ने अब तक 21 रिपोर्ट्स प्रस्तुत की हैं, लेकिन अधिकांश निर्देशों का अनुपालन नहीं हो पाया। मेडिकल स्टाफ की कमी, पद रिक्तियों, और रिकॉर्ड सिस्टम के किसी रूप में उपयोगी न होने की चिंताएं समिति ने जताई हैं।
जबलपुर हाईकोर्ट ने दिया था यह आदेश
हाईकोर्ट ने 7 सितंबर 2016 को केंद्र को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था और यदि वह संतोषजनक न हो तो coercive action लेने की चेतावनी दी थी। 2017 में हाईकोर्ट ने यह कहा कि केंद्र जान-बूझकर देरी कर रहा है। जनवरी 2025 में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उदासीनता पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि स्पष्ट हो रहा है कि अधिकारियों ने कार्य को गंभीरता से नहीं लिया है।
MP सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय के सचिव सहित मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने संघ स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के महानिदेशक, मध्यप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के प्रधान सचिव को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंद्रकर की डिविजनल बेंच में 14 नवंबर 2025 के लिए तय की है।
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सैकड़ों पीड़ित परिवारों से जुड़ा हुआ संवेदनशील मुद्दा
यह मामला सिर्फ कानूनी तकनीक तक सीमित नहीं है। यह उन सैकड़ों पीड़ितों की जान से जुड़ा है, जो दशकों से स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं और बीमारियों के बीच जी रहे हैं। सरकारों को दिए गए सुप्रीम के आदेशों को लागू न करना एक संवेदनशील मुद्दा है जो न्यायव्यवस्था और सामाजिक न्याय दोनों की परीक्षा है।
Monitoring Committee की रिपोर्टों के अनुसार अधिकारी दस्तावेजों में कंप्यूटरीकरण पूरा लिखते हैं फिर भी उनका उपयोग मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री के तौर पर नहीं हो पाता। यह रिकॉर्ड उन लोगों के लिए जीवन रेखा हो सकती थी, लेकिन सरकार और अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण वह व्यवस्था आज तक प्रभावी नहीं दिखी है।