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भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ा जहरीले कचरे का मामला एक बार फिर हाईकोर्ट में गूंजा। बुधवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में राज्य सरकार ने रिपोर्ट पेश की। यह रिपोर्ट यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के विनिष्टीकरण से निकली राख की सीलबंद टेस्टिंग समीक्षा पर थी। खंडपीठ में जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल शामिल थे।
अदालत को यह भी अवगत कराया गया कि राख की आगे और जांच कराई जानी बाकी है। इसलिए अतिरिक्त समय मांगा गया। अदालत ने इस पर सहमति जताते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख 8 अक्टूबर तय कर दी।
साल 2004 से चल रही कानूनी लड़ाई
इस मामले की जड़ें 2004 तक जाती हैं, जब सामाजिक कार्यकर्ता आलोक प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के निपटान की मांग की थी।
उनका तर्क था कि यह कचरा न केवल पर्यावरण बल्कि भोपाल और आसपास की जनता के स्वास्थ्य के लिए भी घातक है। याचिकाकर्ता की मृत्यु के बाद अदालत ने इसे संज्ञान याचिका के रूप में आगे बढ़ाया और नियमित सुनवाई जारी रखी।
रेडियोएक्टिव है कचरे की राख
मध्यप्रदेश सरकार ने पूर्व में हुई सुनवाई में बताया था कि यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को पीथमपुर स्थित सुविधा केंद्र में वैज्ञानिक तरीके से नष्ट कर दिया गया है। इस प्रक्रिया के बाद करीब 850 मीट्रिक टन राख और अवशेष तैयार हुए, जिन्हें एमपीपीसीबी से सीटीओ (कंसेंट टू ऑपरेट) मिलने के बाद अलग लैंडफिल सेल में सुरक्षित रूप से डंप किया जाएगा।
इस बीच एक नई जनहित याचिका भी दायर की गई, जिसमें दावा किया गया कि इस राख में रेडियो एक्टिव पदार्थ और मरकरी (पारा) मौजूद हैं। यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि मरकरी को निष्क्रिय करने की तकनीक सिर्फ जर्मनी और जापान जैसे देशों के पास है। अदालत ने इस गंभीर पहलू को ध्यान में रखते हुए इस याचिका को भी मुख्य मामले के साथ जोड़कर सुनवाई करने का आदेश दिया था।
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रेडियोएक्टिव राख भी हो सकती है खतरनाक
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ और अधिवक्ता खालिद नूर फखरुद्दीन ने पैरवी की। उन्होंने अदालत के सामने इस मुद्दे की गंभीरता रखते हुए कहा कि यदि राख में वास्तव में रेडियो एक्टिव तत्व या मरकरी मौजूद है, तो यह भविष्य में बड़ी आपदा का कारण बन सकता है। दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश अधिकारियों ने अदालत से समय मांगा ताकि आगे की टेस्टिंग पूरी की जा सके और रिपोर्ट विस्तृत रूप से प्रस्तुत की जा सके।
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हजारों पीड़ित परिवारों से जुड़ा मामला
भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित हजारों परिवार आज भी न्याय और सुरक्षित जीवन की उम्मीद लगाए बैठे हैं। त्रासदी को 40 साल होने को हैं, लेकिन जहरीले कचरे का मुद्दा अब भी अदालतों में अटका है। पीड़ित परिवारों का कहना है कि जब तक इस कचरे और उसके अवशेषों का पूरी तरह से सुरक्षित निपटारा नहीं हो जाता, तब तक भोपाल और आसपास के इलाके में पर्यावरण और स्वास्थ्य पर खतरा बना रहेगा।
अब सबकी नजरें 8 अक्टूबर पर
अदालत ने साफ कर दिया है कि वैज्ञानिक जांच और पारदर्शिता के बिना इस मामले में कोई ढील नहीं बरती जाएगी। अब सबकी निगाहें 8 अक्टूबर की सुनवाई पर टिकी हैं, जब राज्य सरकार को यह बताना होगा कि राख की आगे की टेस्टिंग में क्या निष्कर्ष निकले और उसके निपटारे के लिए क्या ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।