भोपाल गैस त्रासदी:मेडिकल रिकॉर्ड डिजिटाइजेशन में देरी पर हाइकोर्ट सख्त

हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के मेडिकल रिकॉर्ड को डिजिटल करने में हो रही देरी पर चिंता जताई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट का कहना है कि इस देरी की वजह से पीड़ितों को स्वास्थ्य सेवाओं में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

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Neel Tiwari
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Bhopal gas tragedy: High court strict on medical record digitisation delay

Bhopal gas tragedy: High court strict on medical record digitisation delay Photograph: (the sootr)

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के चिकित्सा रिकॉर्ड को डिजिटाइज करने की प्रक्रिया में हो रही देरी पर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मुद्दे पर जवाब तलब किया है और स्पष्ट किया है कि इस देरी के कारण गैस त्रासदी से प्रभावित हजारों पीड़ितों को स्वास्थ्य सेवाओं में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यह मामला 1984 में हुई उस औद्योगिक दुर्घटना से जुड़ा है जिसने लाखों लोगों की जिंदगी को प्रभावित किया।

हाईकोर्ट ने जताई चिंता

भोपाल गैस त्रासदी को चार दशक बीत चुके हैं, लेकिन इसके पीड़ित आज भी स्वास्थ्य सेवाओं और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कहा कि चिकित्सा रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन बहुत पहले हो जाना चाहिए था। हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया पीड़ितों को स्वास्थ्य सुविधाओं तक त्वरित और सुलभ पहुंच प्रदान कर सकती है। यह प्रक्रिया पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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डिजिटाइजेशन की स्थिति पर सवाल

कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पूछा कि इतने वर्षों में चिकित्सा रिकॉर्ड को डिजिटल फॉर्मेट में परिवर्तित करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। रिकॉर्ड्स अब भी मैनुअल फॉर्मेट में हैं, जिससे पीड़ितों के इलाज और मुआवजा वितरण में देरी हो रही है। कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि इतनी महत्वपूर्ण प्रक्रिया को प्राथमिकता क्यों नहीं दी गई। डिजिटाइजेशन से पीड़ितों के चिकित्सा डेटा को संरक्षित करने के साथ-साथ उनके इलाज और राहत कार्यों की निगरानी भी आसान हो जाती।

मैन्युअल रिकॉर्ड बन रहे हैं पीड़ितों के लिए परेशानी का सबब

याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष यह तर्क रखा कि वर्तमान मैनुअल रिकॉर्ड सिस्टम पीड़ितों के लिए बड़ी बाधा बन रहा है। उन्होंने कहा कि गैस त्रासदी के कारण लाखों लोग गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं, लेकिन उनके चिकित्सा रिकॉर्ड बिखरे हुए और असंगठित हैं। इससे इलाज में न केवल देरी हो रही है, बल्कि मुआवजा वितरण में भी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि डिजिटाइजेशन से पीड़ितों के इलाज को व्यवस्थित किया जा सकता है और उनके कानूनी अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

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डिजिटलाइजेशन के लिए लगेंगे 550 दिन

राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि हमने अपने हलफनामे में उल्लेख किया है कि जो रिकॉर्ड डिजिटल किए जाने हैं, वे मूल रूप से 2014 से पहले के हैं और बहुत पुराने हैं। इसलिए इन पन्नों को बहुत सावधानी से स्कैन किया जाना चाहिए और प्रतिदिन केवल 3000 पन्नों को ही स्कैन किया जा सकता है। अब ये रिकॉर्ड 3,33,840 मरीजों के हैं। और ये पन्ने 17 लाख से ज़्यादा हैं। हमारे पास हर दिन 3000 पन्नों को स्कैन करने की क्षमता है। हम बहुत सम्मानपूर्वक यह कहना चाहते हैं कि हमें पूरे रिकॉर्ड को डिजिटल करने में लगभग 550 दिन लगेंगे। टेंडर जारी हो चुका है और काम बहुत जल्द शुरू हो जाएगा।" हालांकि, कोर्ट ने सरकार के प्रयासों को अपर्याप्त माना और इस प्रक्रिया में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर की। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने यह बात भी आई की याचिकाकर्ताओं की ओर से साल 1998 में याचिका दायर की गई थी जिसमें 14 साल बाद सुप्रीम कोर्ट के विशेष दिशा निर्देश आए थे। लेकिन इसके बाद भी इन रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन संभव था। लेकिन सरकार के सुस्त रवैये के चलते 40 साल बाद भी हालात जस के तस हैं। हाईकोर्ट ने साफ किया कि पीड़ितों के स्वास्थ्य और न्याय से जुड़े इस महत्वपूर्ण मामले में कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

भोपाल गैस त्रासदी: आज भी जीवंत है दर्द

भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस के रिसाव ने हजारों लोगों की जान ले ली थी और लाखों लोग आज भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। पीड़ितों का दर्द सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक भी है। मुआवजे और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव ने इस पीड़ा को और बढ़ा दिया है। डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया पीड़ितों को न्याय दिलाने और उनकी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।

अगली सुनवाई में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश

चीफजस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच में हुई इस मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि डिजिटाइजेशन प्रक्रिया की वर्तमान स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ितों के चिकित्सा रिकॉर्ड को डिजिटल करने में हो रही देरी के लिए जिम्मेदार विभागों की जवाबदेही तय की जाएगी। यह मामला न केवल न्याय की प्रक्रिया को तेज करने का एक अवसर है, बल्कि उन लाखों पीड़ितों के जीवन में सुधार का वादा भी करता है, जो पिछले चार दशकों से राहत और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जूझ रहे हैं।

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