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BHOPAL. भोपाल और इंदौर के आईटी पार्कों की जमीन को लेकर हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट ने आईटी पार्कों की 13.57 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण को उजागर किया है। इन पार्कों को कॉल सेंटर जैसे उच्च तकनीकी संस्थानों के लिए विकसित किया जाना था। वहीं अब इन जगहों पर अतिक्रमण हो गया है। ऐसे में एमपी सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है।
सरकार को 2.28 करोड़ रुपए का हुआ नुकसान
CAG की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि भोपाल और इंदौर के आईटी पार्कों में 13.57 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण हुआ है। इससे सरकार को 2.28 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हुआ है। इसके अलावा, इन जमीनों को विकसित करने में सरकार ने 3.62 करोड़ रुपए खर्च किए थे, जो अब बेकार हो गए हैं।
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कॉल सेंटर की जगह नर्सिंग कॉलेज!
मध्य प्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम लिमिटेड (MPSEDC) ने आईटी पार्कों में संस्थाओं को जमीन दी थी। इन संस्थाओं को यह जमीन कॉल सेंटर चलाने के लिए दी गई थी। वहीं, अब उन पर कॉल सेंटर की जगह कुछ और ही शुरू हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, यहाँ पर कॉल सेंटर की जगह नर्सिंग कॉलेज चलाए जाने का मामला सामने आया है।
5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला
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रोजगार सृजन में विफल हुई सरकार
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार आईटी पार्कों से रोजगार सृजन में नाकाम रही है। सरकार ने इन पार्कों में कुल 15 हजार लोगों को रोजगार मिलने का लक्ष्य तय किया था, वहीं अब तक सिर्फ 576 लोगों को ही रोजगार मिला है। यह लक्ष्य का महज 3.96 प्रतिशत है।
भूमि आवंटन में गड़बड़ी से आई समस्या
सीएजी (CAG) रिपोर्ट में बताया गया कि कई भूखंडों का आवंटन विवादों के कारण रद्द किया गया था। जून 2022 में 11 भूखंडों के पट्टे समझौते रद्द कर दिए गए थे। इसके कारण व्यावसायिक गतिविधियां शुरू नहीं हो पाईं और रोजगार सृजन में बड़ी समस्याएँ आईं।
गैर-आईटी कंपनियों को दी गई जमीन
आईटी पार्कों के लिए आईटी कंपनियों को भूमि दी जानी थी। वहीं, रिपोर्ट में पाया गया कि भोपाल, इंदौर और जबलपुर के 20 आईटी पार्कों में से 11 यूनिट्स आईटी सेक्टर की नहीं हैं। इन कंपनियों को आईटी पार्कों में भूखंड दिए गए हैं। वहीं, इन्हें करोड़ों की सब्सिडी भी मिली थी।
भूमि शुल्क की वसूली में लापरवाही
कैग ने बताया कि रीवा सोलर पार्क के लिए भूमि उपयोग शुल्क की वसूली में लापरवाही हुई है। निगम ने समय पर भुगतान नहीं लिया और न ही भुगतान में देरी पर ब्याज लिया है। इसके कारण भी मध्यप्रदेश सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है।
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