भोपाल में स्कूल बस का तांडव... यहां बस के ब्रेक फेल नहीं हुए, सड़ चुका सिस्टम फेल है!

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आईपीएस स्कूल की जर्जर बस ने मौत का तांडव मचाया। आठ वाहनों को रौंदते हुए इस कातिल बस ने एक ट्रेनी महिला डॉक्टर की जिंदगी छीन ली। छह लोगों को लहूलुहान कर दिया। 

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Jitendra Shrivastava
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bhopal-school-bus-tandav Photograph: (thesootr)

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मध्यप्रदेश में स्कूल बसें मानो काल बनकर दौड़ रही हैं। पीले रंग के इन डब्बों में पीछे भले तमाम नंबर्स और नियमावली लिखी होती हैं, लेकिन ये किसी काल से कम नहीं होतीं। 

अब देखिए न, राजधानी भोपाल के बाणगंगा चौराहे पर आईपीएस स्कूल की जर्जर बस ने मौत का तांडव मचाया। आठ वाहनों को रौंदते हुए इस कातिल बस ने एक ट्रेनी महिला डॉक्टर की जिंदगी छीन ली। छह लोगों को लहूलुहान कर दिया, जिनमें दो जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। 
कहा जा रहा है कि बस के ब्रेक फेल हुए? नहीं...यह हादसा नहीं, स्कूल संचालकों की शर्मनाक, आपराधिक लापरवाही का नमूना है। इस हादसे का वीडियो भी सामने है, जो हर उस पेरेंट्स के लिए डरा देने वाला है, जिनके बच्चे बसों से स्कूल जाते हैं। 

कबाड़ी बस, परमिट खत्म, फिर सड़क पर क्यों?

यह बस नवंबर 2024 से अनफिट थी, मतलब फिटनेस परमिट खत्म हो गया था। फिर भी यह सड़कों पर दौड़ रही थी। भोपाल आरटीओ जितेंद्र शर्मा का कहना है कि बस आईपीएस स्कूल में रजिस्टर्ड थी, नोटिस देकर पूछताछ होगी। 

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नोटिस? सचमुच? छह महीने से यह कबाड़ सड़कों पर दौड़ रहा था और अब नोटिस की बात? अशोक नंदा, इस स्कूल के मालिक हैं, नंदा जी आपकी कोई जवाबदेही नहीं बनती है कि नहीं? क्या आपकी नींद नहीं टूटती, जब मासूमों की जान खतरे में पड़ती है? या फिर पैसों की खनक के आगे सब फीका है?

2018 में इंदौर में डीपीएस स्कूल बस से हादसा...

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2018 में इंदौर डीपीएस स्कूल की बस भीषण हादसा हुआ था। इस हादसे में चालक
सहित चार बच्चों की मौत हुई थी।

बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़

जरा एक पल सोचिए, यदि इस बस में स्कूली बच्चे सवार होते तो? दर्जनों मासूमों की चीखें, बिखरे स्कूल बैग, और टूटे परिवारों का मंजर, यही सब होता... वो तो शुक्र है कि बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं। आईपीएस स्कूल के कर्ताधर्ताओं, क्या आपकी रूह नहीं कांपती? 
पूरे प्रदेश में इस तरह के स्कूल बस हादसों के बाद ढोंग होता है। नेता शोक जताते हैं, अफसर गाइडलाइंस की रट लगाते हैं और फिर थोड़े दिन बाद सब पुराने ढर्रे पर चला जाता है। क्या किसी की जिंदगी की कीमत इतनी सस्ती है? क्या मासूमों का खून इतना सस्ता है कि आप बार-बार नियमों को कुचलकर मुनाफा कमाते रहें?

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पहले भी बिछीं लाशें, फिर भी सन्नाटा

यह कोई नई कहानी नहीं। मध्यप्रदेश में स्कूल बसों के हादसे आए दिन होते हैं और हर बार सिस्टम की गंदी साजिश का सच उजागर होता है...

  1. इंदौर, 10 जनवरी 2025: नशे में धुत ड्राइवर ने स्कूल बस से दो राहगीरों को कुचल डाला। एक की मौत, और बस में बच्चे सवार थे। क्या उस ड्राइवर को रोकने वाला कोई नहीं था?

  2. जनवरी 2018, इंदौर: दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) की बस डिवाइडर फांदकर ट्रक से टकराई। चार मासूम बच्चों और ड्राइवर की मौत। उन माता-पिताओं का दर्द कौन समझेगा, जिनके बच्चे कभी घर नहीं लौटे?

  3. 16 फरवरी 2021, महू: निजी स्कूल बस पलट गई, 12 छात्र घायल। क्या बदला इसके बाद?

  4. 1 अक्टूबर 2023, महू: फिर वही कहानी, इस हादसे में 12 बच्चे जख्मी हुए। 

कुल मिलाकर हर हादसे के बाद वही खोखले वादे, वही कागजी कार्रवाई। आरटीओ, ट्रैफिक पुलिस और स्कूल शिक्षा विभाग...सब सोए पड़े हैं। क्या इनके लिए मासूमों की चीखें सिर्फ आंकड़े हैं?

स्कूल बसों की सुरक्षा सवालों में

भोपाल में हुए स्कूल बस हादसे के बाद बच्चों की सुरक्षा को लेकर फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इसी साल के शुरुआत में इंदौर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्कूल बसों को लेकर सरकार और प्रशासन को सख्त निर्देश दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए मध्यप्रदेश मोटर व्हीकल एक्ट-1994 में विशेष प्रावधान किए जाएं।

यह आदेश इंदौर के डीपीएस बस हादसे के बाद आया था, जिसमें चार मासूम बच्चों और बस ड्राइवर की मौत हो गई थी। हादसे के बाद कई जनहित याचिकाएं दाखिल हुईं, जिनकी सुनवाई के बाद जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस विनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

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स्कूल बसों के लिए हाईकोर्ट के निर्देश...

  1. 12 वर्ष से ज्यादा पुरानी बसें स्कूल परिवहन में शामिल नहीं की जा सकेंगी।
  2. बस का रंग पीला अनिवार्य होगा और उस पर स्कूल बस स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए।
  3. खिड़कियों पर ग्रिल लगाना जरूरी है। पर्दे या काली फिल्म का प्रयोग वर्जित होगा।
  4. ड्राइवर के पास कम से कम पांच साल का अनुभव होना चाहिए और वह वैध परमानेंट लाइसेंसधारी हो।
  5. यदि ड्राइवर ने पिछले एक वर्ष में दो या अधिक बार ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन किया है, तो उसे नियुक्त नहीं किया जा सकता।
  6. ओवरस्पीडिंग या शराब पीकर गाड़ी चलाने जैसे मामलों में ड्राइवर एक से अधिक बार पकड़ा गया हो तो उसे स्कूल बस संचालन की अनुमति नहीं मिलेगी।
  7. बस में दाईं ओर इमरजेंसी डोर हो, सीटों के नीचे बैग रखने की व्यवस्था हो और प्रेशर हॉर्न नहीं होना चाहिए।
  8. अनुबंधित बसों के पास फिटनेस सर्टिफिकेट, बीमा, परमिट, पीयूसी और टैक्स रसीद मौजूद होनी चाहिए।

ऑटो में भी सुरक्षा के सख्त नियम लागू

कोर्ट ने ऑटो चालकों पर भी सख्ती करते हुए निर्देश दिए थे कि किसी भी ऑटो में तीन से अधिक स्कूली बच्चे नहीं बैठाए जा सकते। ड्राइवर सहित अधिकतम चार सवारी ही हों। जब तक मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन नहीं होता, तब तक यह गाइडलाइन प्रभावी रहेगी और इसके पालन की जिम्मेदारी संबंधित जिले के आरटीओ, ट्रैफिक डीएसपी/सीएसपी, कलेक्टर और एसपी पर होगी।

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स्कूल प्रशासन की जवाबदेही तय

कोर्ट ने साफ निर्देश दिए हैं कि प्रत्येक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल और निजी स्कूलों में ऑनर, प्रिंसिपल या प्रबंधक को प्रत्येक बस के लिए एक व्हीकल इंचार्ज नियुक्त करना होगा। यह व्यक्ति बस के परमिट, फिटनेस, ड्राइवर के आपराधिक रिकॉर्ड, लाइसेंस आदि की निगरानी करेगा। किसी भी लापरवाही की स्थिति में वही जिम्मेदार माना जाएगा।

 निगरानी के लिए एडवांस तकनीक के निर्देश... 

  1. हर स्कूल बस में सीसीटीवी कैमरा और जीपीएस सिस्टम अनिवार्य किया गया है।
  2. पेरेंट्स एक मोबाइल ऐप के जरिए बस की लाइव लोकेशन देख सकेंगे।
  3. हर बस में एक मेल या फीमेल टीचर की उपस्थिति अनिवार्य होगी, जो बच्चों की आवाजाही पर नजर रखेगा।
  4. ड्राइवर का नियमित मेडिकल चेकअप कराना भी स्कूल प्रशासन की जिम्मेदारी होगी।

आदेशों का पालन अब भी अधूरा

ये आदेश छह महीने पहले दिए गए थे, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका पालन अब तक अधूरा नजर आता है। भोपाल स्कूल बस हादसा इसका जीता जागता उदाहरण है।

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