BJP इंदौर नगराध्यक्ष मंत्री गुट के करीबी सुमित, ग्रामीण में भी उनके करीबी श्रवण चावड़ा

इंदौर नगर और इंदौर ग्रामीण जिले के नए जिला अध्यक्षों की घोषणा कर दी गई है। इंदौर नगर की जिम्मेदारी सुमित मिश्रा को सौंपी गई है, जबकि इंदौर ग्रामीण जिले का नेतृत्व श्रवण सिंह चावड़ा को दिया गया है।

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Sanjay Gupta
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जीतू यादव कांड के बाद बैकफुट पर आए मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला गुट ने फिर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाई है। बीजेपी इंदौर नगराध्यक्ष के लिए सुमित मिश्रा की घोषणा हुई। वहीं ग्रामीण जिलाध्यक्ष इंदौर के लिए ना चिंटू वर्मा, ना अंतर दयाल बल्कि चौंकाने वाला नाम श्रवण सिंह चावड़ा का आया है। लेकिन यह चावड़ा भी मंत्री गुट से ही जुड़े हैं। हालांकि उनके करीबी चिंटू वर्मा का सभी ग्रामीण विधायकों के चलते पत्ता कट गया लेकिन उन्होंने चुपचाप दूसरे करीबी चावड़ा को कुर्सी दिलवा दी।

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चली तो मंत्री गुट की ही इस तरह

मंत्री गुट के प्रभाव के कारण सुमित मिश्रा इंदौर एक, दो और तीन से रायशुमारी में सबसे आगे थे। दूसरा नाम दीपक टीनू जैन का था। विधायक रमेश मेंदोला रायशुमारी के दौरान बीजेपी दफ्तर में सभी को सुमित का नाम देने के लिए बोल रहे थे। आखिरकार वह अपना नगराध्यक्ष बनाकर ले आए।

  • उधर ग्रामीण में मंत्री गुट की पसंद चिंटू वर्मा ही थे, लेकिन दूसरे मंत्री तुलसीराम सिलावट, अंतर दयाल पर आ गए। उधर ग्रामीण के सभी विधायक उषा ठाकुर, मनोज पटेल के साथ ही सांसद शंकर लालवानी भी चिंटू के खिलाफ थे। ऐसे में मंत्री के एकदम करीबी चिंटू का पत्ता कट गया। लेकिन दूसरा नाम भी मंत्री गुट से लिया गया और उन्होंने इसके लिए श्रवण सिंह चावड़ा को आगे कर दिया। इस तरह मंत्री गुट को चिंटू के लिए तो मात मिली लेकिन वह दूसरा नाम भी अपना ही लेकर आए। चावड़ा जब युवा मोर्चा के ग्रामीण जिलाध्यक्ष बने थे तब भी इसमें मंत्री विजयवर्गीय और विधायक मेंदोला की भूमिका थी।
  • चावड़ा पहले ग्रामीण में युवा मोर्चा अध्यक्ष रह चुके हैं और पालाखेड़ी देपालपुर के रहने वाले हैं। वह बहुत ज्यादा करीबी तो नहीं लेकिन मंत्री विजयवर्गीय गुट से ही जुड़े हुए हैं। 
  • कुल मिलाकर अगले विधानसभा चुनाव के लिए अब देपालपुर विधायक मनोज पटेल को दोहरा खतरा है, एक तो चिंटू वर्मा दावेदार रहेंगे ही और अब श्रवण सिंह चावड़ा भी दौड़ में रहेंगे। 

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दीपक टीनू जैन डील के खेल में पिट गए

इस पद के लिए सबसे अधिक संभावना दीपक टीनु जैन के नाम की थी। लेकिन मंत्री गुट में ही प्राथमिकता रमेश मेंदोला की सुमित थे, हालांकि कैलाश विजयवर्गीय, उनके पुत्र व पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय की मंशा टीनू जैन की थी, और सुमित भी करीबी ही थे, उनके नाम पर भी कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन ग्रामीण जिलाध्यक्ष के पद पर राजनीतिक डील के चक्कर में टीनू का खेल बिगड़ गया, कुल मिलाकर चिंटू वर्मा के चलते टीनू भी पिट गए।

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जीतू कांड के बाद यह सिंधिया और दूसरे गुट को झटका

जीतू कांड के बाद मंत्री गुट बैकफुट पर था, क्योंकि जीतू उन्हीं के करीबी रहे हैं। ऐसे में इंदौर के संगठन के दोनों अहम पदों पर अपने वालों को लेकर आना बताता है कि मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की राजनीतिक ताकत में इंदौर में अभी कोई कमी नहीं आई है और अहम फैसले उनसे बात करते ही होते हैं। इसके लिए मंत्री ने नई दिल्ली से अपनी ताकत दिखाई है। इस फैसले से निश्चित ही विधायक मालिनी गौड़, मनोज पटेल, उषा ठाकुर को राजनीतिक झटका लगा है। वहीं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे मंत्री सिलावट ग्रामीण में अपने समर्थक अंदर दयाल को लाना चाह रहे थे। लेकिन इस फैसले से पार्टी ने हर क्षेत्र के बड़े नेता के मान को रखने वाली लाइन ही दिखाई है, जहां सिंधिया के क्षेत्र में उनकी सुनी गई तो वहीं इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय का मान रखा गया।

चावड़ा की ऐसे बन गई बात

चिंटू वर्मा और अंतर दयाल के नाम पर विवाद होने के बाद तीसरे नाम की संभावना तलाशी गई। इस दौरान संगठन में पहले काम कर चुके श्रवण चावड़ा का नाम उभरा। इसी दौरान श्रवण ने नाराज विधायकों से मिलना शुरू कर दिया और वह मनोज, उषा और तुलसी तीनों से मिल लिए। कैलाश और रमेश को चिंटू के विकल्प में उनके नाम पर कोई दिक्कत नहीं थी। ठाकुर लॉबी जयपाल सिंह चावड़ा तो पहले संगठन मंत्री रह चुके हैं। उनका भी समर्थन चावड़ा को मिल गया। वहीं चावड़ा संघ से भी जुड़े रहे हैं। ऐसे में सभी के सामंजस्य से चावड़ा आगे निकल गए। 

ब्राह्रमण और ठाकुर दोनों साधे 

उधर नगराध्यक्ष पर ब्राह्मण कार्ड भी खूब चला है। विधायक गोलू शुक्ला और विधायक रमेश मेंदोला के साथ ही प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा का भी साथ मिल गया। पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय को जरूर सुमित मिश्रा खटकते हैं, लेकिन रमेश और गोलू के चलते मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने टीनू के नाम पर एक राय नहीं बनने पर सुमित को सपोर्ट किया। इंदौर में एक पद ब्राह्मण को और दूसरा पद ठाकुर वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए दे दिया गया। लेकिन कुल मिलाकर इसमें विरोधी गुट खाली हाथ ही रहा।

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