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मध्यप्रदेश में बीजेपी ने सोमवार रात को 18 जिलों के नए जिला अध्यक्षों के नामों की घोषणा की है। इन जिलों में नए अध्यक्षों को नियुक्त करने की घोषणा के साथ बीजेपी ने पार्टी स्तर पर अपने नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए हैं। इस घोषणा में कुछ खास बातें भी सामने आई हैं, खासकर शिवपुरी जिले में से, जहां बीजेपी ने अपने संविधान के खिलाफ जाते हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी जसमंत जाटव को जिले की कमान सौंप दी है।
बीजेपी के संविधान का उल्लंघन
बीजेपी ने शिवपुरी जिले में जसमंत जाटव को जिला अध्यक्ष बनाया है। जो मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा के संविधान के अनुसार, एक कार्यकर्ता को जिला अध्यक्ष बनने के लिए कम से कम 6 साल पार्टी का सदस्य होना चाहिए। लेकिन जसमंत को अध्यक्ष बनाने के मामले में पार्टी ने इस नियम का उल्लंघन किया है। यह कदम केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी होने की वजह से उठाया गया है।
बीजेपी विधायक ने किया था विरोध
बता दें कि शिवपुरी के करेरा विधानसभा से बीजेपी विधायक रमेश खटीक ने कहा कि जसवंत के नाम को लेकर मैंने आपत्ति जताई थी। कहा था कि कोई ऐसा व्यक्ति जिला अध्यक्ष बने जिसकी छवि साफ हो और वह सबको साथ लेकर चले। जसवंत जाटव ने चुनाव के समय खुलकर विरोध किया है। इसका प्रमाण मेरे पास है।
कांग्रेस ने उठाए सवाल
शिवपुरी जिलाध्यक्ष की नियुक्ति पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं कि पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि बीजेपी में कोई संविधान नहीं है। यहां पर एक ही संविधान है वह नेता....नेताओं के चहेते अध्यक्ष बने हैं।
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जसवंत जाटव कौन हैं?
जसवंत जाटव, ज्योतिरादित्य सिंधिया से जुड़े उन विधायकों में से हैं, जिन्होंने कांग्रेस की सरकार पलटने में सिंधिया के साथ विधायकी से इस्तीफा दिया था। बहरहाल वह चुनाव लड़ने के बाद दोबारा विधायक नहीं बन सके थे। लेकिन उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्ज किया गया था। अब भले ही बीजेपी की गाइडलाइन के अनुसार, उनको पार्टी में 6 साल नहीं हुए थे। लेकिन सिंधिया के करीबी होने की वजह से बीजेपी ने जिला अध्यक्ष का पद दे दिया है।
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बीजेपी की क्या है गाइडलाइन
बीजेपी जिला अध्यक्ष के लिए 6 साल से पार्टी का एक्टिव मेंबर होना जरूरी है। जसमंत जाटव मार्च 2020 में पार्टी से जुड़े थे। इस हिसाब से उनको पार्टी में 4 साल से ज्यादा का वक्त हुआ है। ऐसा कहा जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी होने की वजह से पार्टी ने उन्हें जिलाध्यक्ष का पद दे दिया गया है। अब सियासी गलियारों में ये चर्चा हो रही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए पार्टी के संविधान को कमजोर कर दिया गया है।
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