शादी का झांसा देकर होटल में किया दुष्कर्म, फिर कोर्ट में पीड़िता को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश

जबलपुर की जिला अदालत ने आरोपी भाजयुमो नेता की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की। पहले किया था इंस्टाग्राम से संपर्क और फिर प्रेम-शादी के झूठे वादे कर बनाए थे शारीरिक संबंध। 

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Neel Tiwari
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Photograph: (the sootr)

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MP News Hindi: JABALPUR. पहले इंस्टाग्राम के जरिये युवती से संपर्क करना, फिर प्रेम और शादी के झूठे वादे करना। इसके बाद होटल में दुष्कर्म और उसके बाद बात बंद करना। ये सारे घटनाक्रम उस समय चर्चा का विषय बन गए जब भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के पूर्व नगर उपाध्यक्ष लिविश पटेल ने इन गंभीर आरोपों के बावजूद अग्रिम जमानत की अर्जी जिला अदालत में दाखिल की। लेकिन, इससे भी ज्यादा चिंता का विषय यह बना कि अदालत में आरोपी की ओर से सुनवाई के दौरान पूरी कोशिश की गई कि पीड़िता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाए। हालांकि, जबलपुर की जिला अदालत ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह स्पष्ट संदेश दिया कि महिलाओं की गरिमा, न्याय और सामाजिक जिम्मेदारी के मानदंडों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

सोशल मीडिया से पहचान और फिर शारीरिक शोषण

मूल रूप से मंडला जिले के बम्हनी बंजर क्षेत्र की निवासी 25 वर्षीय पीड़िता की लिविश पटेल से जनवरी 2025 की शुरुआत में इंस्टाग्राम के माध्यम से पहचान हुई थी। ऑनलाइन बातचीत धीरे-धीरे बढ़ती चली गई और कुछ ही दिनों में आरोपी ने युवती को यह कहते हुए जबलपुर बुला लिया कि वह उससे विवाह करना चाहता है और अपनी मां से मिलवाना चाहता है। दिनांक 15 जनवरी 2025 को पीड़िता जबलपुर पहुंची, तो लिविश ने उसे दीनदयाल बस स्टैंड से रिसीव किया और यादव कॉलोनी स्थित ‘सुकून होटल’ ले गया। वहीं, शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। यही घटनाक्रम दोहराया गया 5 फरवरी को, जब लिविश ने दोबारा उसे बुलाया और पुनः संबंध बनाए। इसके बाद आरोपी ने पीड़िता से सभी प्रकार का संवाद समाप्त कर दिया। थक-हारकर पीड़िता ने लार्डगंज थाने में मामला दर्ज कराया। पुलिस ने धारा 69, भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत प्राथमिकी दर्ज कर विवेचना प्रारंभ की।

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पीड़िता को ही कटघरे में खड़े करने की हुई कोशिश

जांच शुरू होते ही आरोपी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की अर्जी जिला अदालत में लगाई। सुनवाई प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश अभिलाषा एन. मावर की अदालत में हुई। लिविश के वकील ने यह दावा करते हुए जमानत की मांग की कि यह मामला ‘ब्लैकमेलिंग’ का है, जिसमें युवती ने जानबूझकर झूठा आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी कहा कि “आजकल ऐसी कई घटनाएं होती हैं, जहाँ युवतियाँ युवकों को प्रेम के नाम पर फँसाकर कानूनी शिकंजे में जकड़ देती हैं।” आरोप यह भी लगाया गया कि पीड़िता के खिलाफ आरोपी द्वारा शिकायत की गई थी, जो स्वयं ही संदिग्ध व्यवहार को दर्शाती है।

पीड़िता के वकील का पलटवार: ‘क्या अब हर पीड़िता को ही दोषी माना जाएगा?’

पीड़िता की ओर से अधिवक्ता विवेक तिवारी ने अदालत में जमानत का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है कि जब भी कोई महिला साहस कर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराती है, आरोपी पक्ष उसे बदनाम करने का प्रयास करता है। उन्होंने कोर्ट से सवाल किया कि अगर वाकई आरोपी ने पीड़िता द्वारा ब्लैकमेलिंग की शिकायत की थी, तो उस शिकायत पर अब तक कोई वैधानिक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? अधिवक्ता ने यह भी कहा कि लिविश पटेल भाजपा युवा मोर्चा से जुड़ा है और नगर उपाध्यक्ष रह चुका है, जिससे यह शंका और भी मजबूत होती है कि वह जमानत मिलने पर साक्ष्यों को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, पीड़िता मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव में जी रही है, और ऐसे में अगर आरोपी को जमानत दी जाती है, तो वह न्याय प्रक्रिया में प्रतिकूल असर डाल सकता है।

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कोर्ट ने माना मामला गंभीर, समाज में संदेश भी बना मुद्दा

सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि आरोपी ने सोशल मीडिया के जरिए विश्वास जीतने की प्रक्रिया अपनाई और फिर शादी का झूठा वादा करके युवती के साथ दुष्कर्म किया। अदालत ने यह भी माना कि इस तरह के मामलों में न्यायिक सख्ती आवश्यक है ताकि समाज में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के प्रति भरोसा बना रहे। कोर्ट ने टिप्पणी की कि "ऐसे मामलों में पीड़िता की गरिमा और सुरक्षा सर्वोपरि है, न कि आरोपी के तर्कों का प्रचार।" अदालत ने लिविश पटेल की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।

सूचना मिलते ही फूट-फूट कर रोई पीड़िता

इस मामले में पीड़िता के अधिवक्ता विवेक तिवारी ने बताया कि जब पीड़िता को इस बारे में सूचना दी गई कि आरोपी की जमानत कोर्ट से खारिज हो गई है तो इंसाफ की आस में वह इतनी भावुक हो गई कि कुछ बात भी नहीं कर पाई और फूट-फूट कर रोने लगी। पीड़िता के आंसू इस बात की गवाही दे रहे थे कि हिम्मत कर ऐसे मामलों में शिकायत के लिए सामने आने का उसका फैसला और न्यायपालिका पर विश्वास दोनों सही साबित हुए है।

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ऐसे मामलों में न्यायपालिका की सख्ती बनी समय की मांग

यह मामला एक बार फिर सामने लाता है कि किस प्रकार सोशल मीडिया का उपयोग कर युवा महिलाएं झूठे प्रेम और विवाह के भ्रमजाल में फंसाई जाती हैं। एनसीआरबी के ताजातरीन आंकड़े भी दर्शाते हैं कि प्रेम संबंधों के नाम पर ठगी और दुष्कर्म की घटनाओं में भारी इजाफा हुआ है। ऐसे में यदि न्यायपालिका सख्ती न बरते, तो यह प्रवृत्ति न सिर्फ पीड़िताओं के मनोबल को तोड़ेगी बल्कि समाज में एक भयावह वातावरण पैदा करेगी जहां कानून पर भरोसा कमजोर होता चला जाएगा।

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