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सर्द मौसम में सूबे की सियासत और अफसरशाही से रोचक किस्से सामने आ रहे हैं। विजयपुर की हार ने एक तो बीजेपी के माथे पर बल ला दिया है। इस पर महाराज के बयान ने गरमा- गरम चाय की प्याली में तूफान सा ला दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि उन्हें विजयपुर बुलाया ही नहीं गया। इसके जवाब में दूसरे नेताजी कह रहे हैं कि उन्हें बुलाया गया था। अब सच-झूठ तो भगवान जाने, पर विपक्षी खेमे ने इस बयानबाजी को लपक लिया है।
उधर, अफसरशाही में नए साहब का 9:40 वाला मुहूर्त चर्चाओं में है। एक कलेक्टर साहब की रंगीन मिजाजी की इंटेलिजेंस को खबर ही नहीं है। लालाजी की विदाई के किस्से तो तमाम हैं। ठाकुर साहब ने जो बम फोड़ा था, उससे साफ है कि दूरियां दुश्मनी में बदल गई थीं। खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए…
9:40 बजे का वो खास मुहूर्त
खाकी अब मुस्तैद है नए साहब के साथ कदमताल करने के लिए। इसकी तैयारियां हो गई हैं। साहब ने अफसरों के साथ मीटिंग के लिए खास समय तय किया है। जी हां, सही पढ़ा आपने। पीएचक्यू में नए साहब के साथ अफसरों की पहली बड़ी मीटिंग के लिए उन्हें सोमवार को सुबह 9 बजकर 40 मिनट का बुलावा भेजा गया है। तेजतर्रार कार्यशैली और ईमानदारी के लिए पहचाने जाने वाले बड़े साहब का यह आदेश चर्चा में है। इसके पीछे की दो वजह सामने आई हैं। एक तो साहब स्वयं समय के पाबंद हैं, वे नहीं चाहते कि 10 बजे से शुरू होने वाली मीटिंग में कोई देरी से आए, लिहाजा... सभी को 20 मिनट पहले का समय दिया गया है। दूसरा, कहा जा रहा है कि 9:40 का शुभ मुहूर्त है। इस तरह एक पंथ, दो काज हो रहे हैं। वैसे भी जब साहब के नाम का ऐलान हुआ था तो कई अफसरों के मुहूर्त धरे के धरे रह गए हैं। अब हमारी भी साहब को ढेरों शुभकामनाएं हैं... खूब काम कीजिए और अपराधियों को नेस्तनाबूत कर दीजिए।
बोल हरि बोल : कलेक्टर साहब की वो खास छुट्टी और दलालों का झगड़ा
कलेक्टर साहब की रंगमिजाजी
इंदौर से सटे एक बड़े जिले के कलेक्टर साहब इन दिनों जिले की रौनक बने हुए हैं। साहब का शौक इतना आला दर्जे का है कि उन्होंने पीडब्ल्यूडी के सरकारी गेस्ट हाउस को अपनी पर्सनल पार्टी विला बना डाला है। ठेकेदारों की मेहनत और 'सामाजिक सहयोग' से यह चार कमरों वाला रेस्ट हाउस अब ऐसा बन गया है कि देखने वाला कह उठे- 'सरकारी सुविधा का ऐसा निजीकरण तो पहली बार देखा है!' जी हां, यह गेस्ट हाउस अब शानदार कैंप हाउस में तब्दील हो गया है, जहां कलेक्टर साहब और उनकी मैडम अपनी पार्टियों का जलवा बिखेरते हैं। वहीं साहब की 'लखनऊ वाली मंडली' एकाएक नए-नए आयोजनों का लुत्फ उठाती है। पॉवर लॉबी में साहब के इस रंगीन मिजाज का मजा हर कोई ले रहा है, मगर मजेदार बात ये है कि डॉक्टर साहब की इंटेलिजेंस टीम को साहब की इस रंगीन मिजाजी की मानो खबर ही नहीं है।
अफसरों की कुंडलियों का मिलान
डॉक्टर साहब विदेश यात्रा से लौटकर प्रदेश में सुशासन की मशाल जलाने को तैयार हैं। अब उनके एजेंडे में कलेक्टरों की कुंडली खंगालने का अभियान है। जिन कलेक्टरों की 'कामकाजी ग्रह दशा' सही नहीं है या जिनकी स्थानीय नेताओं के साथ पटरी नहीं बैठ रही, वे जल्द ही मंत्रालय की बाबूगिरी में दिख सकते हैं। अफसरों की कुंडलियां ऐसी बारीकी से देखी जा रही हैं, जैसे वर-वधू की कुंडली मिलाई जाती है। पक्की खबर है कि जिन कलेक्टरों ने अपने जिले में काम के बजाय नेताजी की नाराजगी कमाने का रिकॉर्ड बनाया है वे डिप्टी सेक्रेटरी बनकर मंत्रालय में फाइलों की धूल झाड़ते दिखेंगे। प्रदेश के आला अफसरों के बीच इस समय सबसे बड़ी चर्चा यह है कि कौन-कौन सा कलेक्टर अब मंत्रालय में बाबू की कुर्सी पर काबिज होगा? अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुप में गूंज है कि भैया, 5 जनवरी तक सबका भविष्य तय होगा, तब तक अपना बैग तैयार रखना।
ठाकुर साहब ने लालाजी से ले लिया बड़ा पंंगा
लालाजी जब तक खाकी वाली हॉट सीट पर थे, तब तक ठाकुर साहब सर- सर करते थे, लेकिन जैसे ही लालाजी के रिटायरमेंट का दिन आया... ठाकुर साहब ने ठंडे बस्ते से धूल झाड़कर एक पुराना आदेश निकालकर उनकी विदाई में खलल डालने का भरपूर प्रयास किया। हालांकि लालाजी के चाहने वालों ने इस आदेश को हवा में उड़ाते हुए उनकी बिटिया से सलामी दिलवाकर यादगार विदाई कर दी। इन सबके बीच रिटायरमेंट से पहले ठाकुर साहब ने पंगा लेकर बता दिया कि उनके मन में कितनी नफरत इनके खिलाफ भरी थी। वहीं उनका ये आदेश देशभर के न्यूज चैनल्स और मीडिया में चर्चा का विषय बना।
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संदेशे आते हैं, संदेशे जाते हैं
मैंने कह दिया, मतलब साहब ने कह दिया... कुछ ऐसा ही जुमला गूंजता था पीएचक्यू में लंबे समय से। साहब का जलवा कुछ कम नहीं था। इनके 'संदेश' हलचल मचा देते थे। अब जब लालाजी विदा हो रहे थे, तो इन साहब ने उनके सामने स्टडी लीव की फाइल बढ़ा दी। मसला कुछ यूं है कि साहब के कारनामों की लंबी फेहरिस्त है। कहा जाता है कि ये वसूली भी करते थे। इसके बाद इनके खिलाफ कुछ बड़े अफसरों ने पहले शिकायत भी की थी, लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ। अब लालाजी का वरदस्त हट गया है और वो अफसर इनके अल्टीमेट बॉस हैं, जिन्हे करप्शन के C से भी चिढ़ है। बस यही 'संदेश' इनके दिमाग में बैठ गया है। सो इन्हें उलटा- पुलटा होने का डर है। यही वजह है कि इन्होंने एक बार फिर स्टडी लीव की फाइल आगे बढ़ाई है। ये पहले भी ऐसा संदेश दे चुके थे।
वंदे भारत की रफ्तार से दौड़ी फाइलें
लालाजी की विदाई से जुड़ी खबरों का तो मानो भंडार निकलकर सामने आया है। साहब जाते- जाते सब 'सेट' कर गए हैं। उनके जाने से पहले एडमिन ने चीते की चाल से काम किया है। सालों से बंद फाइलों से धूल झाड़ी गई। आनन- फानन में जो हो सका, वो सब कर दिया गया। फाइलें मानो वंदे भारत की रफ्तार से दौड़ रही थीं। इसी में एक रोचक तथ्य यह सामने आया कि जो 144 क्वार्टर राजपत्रित अधिकारी यानी डीएसपी स्तर के अधिकारियों को आवंटित किए जाने थे, वे 'चहेते बाबुओं' तक को बांट दिए गए हैं। अब इसे लेकर विरोध के सुर फूट रहे हैं। देखना होगा कि नए साहब इस मामले में क्या करते हैं?
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उद्घाटन से पहले कैसे भर्ती हुआ मरीज
खाकी वाले महकमे के बड़े साहब अब सेवानिवृत्त हो गए, पर उनके कार्यकाल के किस्से पीएचक्यू से लेकर मंत्रालय तक चटखारे लेकर कहे और सुने जा रहे हैं। अब एक बेहद रोचक किस्सा सामने आया है। हुआ यूं कि पिछले दिनों राजधानी में खाकी वालों के लिए अस्पताल का शुभारंभ होना था। डॉक्टर साहब इसका उद्घाटन करने वाले थे। उससे चंद घंटे पहले कुछ अफसर अस्पताल पहुंचे तो वहां बेड पर एक व्यक्ति कंबल ओढ़े हुए सो रहा था। यह देख अफसरों के हाथ पांव फूल गए। हो भी क्यों न! उद्घाटन से पहले कोई भर्ती कैसे हो सकता था। पूछताछ हुई तो पता चला कि वह तो दो दिन से भर्ती है। आनन फानन में बड़े साहब को खबर की गई, उनके आदेश पर तत्काल एंबुलेंस पहुंची और मरीज को नए अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर किया गया, तब जाकर साहब की जान में जान आई।
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