झीलों के शहर में इस समय रंगीन किस्सों का चटखारा लिया जा रहा है। एक ओर विवादित मैडम के कलेक्टर बनने का ख्वाब है, जिसे एक साहब ने 'मिशन कलेक्टरी' बना रखा है। दूसरी ओर, खाकी वर्दी वाले बड़े साहब हैं, जो अपने रिटायरमेंट से पहले अस्पताल के शिलालेख पर अपने नाम की चमक देखना चाहते हैं।
कांग्रेस के गलियारों में गोलू-मोलू की जोड़ी का तालमेल भी कुछ कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। राजधानी में चर्चा में है 'असरदार और गोयल' की दमदार जोड़ी, जो किसी भी सरकार और प्रशासनिक मुखिया के रहते हमेशा चमकती है। इधर, दो पतियों वाली मैडम का जलवा जगजाहिर हो गया है। 46 दिन की जद्दोजहद और खामोशी के बाद आखिरकार उनकी पटकथा पूरी हो गई। मंत्रीजी को झुकना पड़ा। यूं तो देश प्रदेश में खबरें और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए...
विवादित मैडम का कलेक्टरी का सपना- कौन करेगा मंजूर?
झीलों के शहर में इन दिनों एक नई खिचड़ी पक रही है और वो है एक विवादित महिला आईएएस को कलेक्टर बनाने की सिफारिश। एक बड़े साहब ने मानो 'कसम' खा रखी है कि मैडम को कलेक्टरी की कुर्सी मिलनी ही चाहिए। अब भले ही मैडम का अतीत विवादों की किताब हो। फिलवक्त तो साहब का कहना है कि उनमें बहुत सुधार हुआ है और 'दंड' पर्याप्त मिल चुका। साहब दार्शनिक अंदाज में कहते हैं कि अरे भई, मैडम से तीन बैच जूनियर तक कलेक्टर बन गए। अब तो इन्हें भी कलेक्टरी का स्वप्न साकार करने का अवसर मिलना ही चाहिए, लेकिन साहब के इस सिद्धांत से बाकी अफसर बिरादरी सहमत नहीं दिख रही। उनका तर्क है कि अगर मैडम को कलेक्टर बना दिया तो क्या पता पूरा जिला भी विवादों के दरिया में बह जाए। आपको बता दें कि चुनाव आयोग ने फिलहाल वोटर लिस्ट के काम के चलते कलेक्टरों के तबादले पर रोक लगा रखी है, इसलिए अब देखना दिलचस्प होगा कि मैडम की किस्मत क्या रंग दिखाती है? वे कुर्सी पर विराजेंगी या फिर अगले चांस का इंतजार करेंगी।
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रिटायरमेंट से पहले नाम शिलालेख पर!
अब बात करते हैं खाकी वाले बड़े साहब की...। दरअसल, साहब की इच्छा है कि उनके रिटायरमेंट से पहले 50 बेड के पुलिस अस्पताल का उद्घाटन हो जाए। बड़े साहब पूरी शिद्दत से काम में जुटे हुए हैं। ऐसा लग रहा, मानो उन्होंने ठान लिया है कि अस्पताल के बाहर लगने वाले शिलालेख पर मुख्यमंत्री के साथ उनका नाम जरूर चमकना चाहिए। अब भले ही अस्पताल की बिल्डिंग अधूरी हो, डॉक्टर्स और लैब टेक्नीशियन स्टाफ का अभी दूर-दूर तक अता-पता न हो, पर शिलालेख पर नाम के लिए तो जल्दबाजी जारी है। पुलिस महकमे के लोग चुटकी लेते हुए कहते हैं कि यदि साहब इतनी जल्दी डॉक्टर्स की नियुक्ति में भी दिखाते तो अस्पताल चालू हो जाता। अब देखना होगा कि 20 दिन में साहब का ये ख्वाब पूरा होता है या अस्पताल के उद्घाटन का सपना यहीं रह जाता है।
कौन जाएगा आईजी-डीजी कॉन्फ्रेंस में
हमने पिछली बार बताया था कि हर कोई जानना चाहता है मध्यप्रदेश का अगला डीजीपी कौन होगा? लेकिन अभी तक ये राज ही बना हुआ है। अब नया सवाल पुलिस अफसरों में घूम रहा है कि ओडिशा में 26 से 28 नवंबर के बीच होने वाली आईजी- डीजी कॉन्फ्रेंस में मध्यप्रदेश से कौन जाएगा। क्योंकि वर्तमान डीजीपी साहब जाते हैं तो इससे प्रदेश को फायदा नहीं होगा। साथ में केन्द्र भी नाराज होगा, क्योंकि वहां जो निर्णय होंगे, उन पर अमल करने के लिए वर्तमान साहब तो रहेंगे नहीं। वे 30 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। फिर कोई नया अफसर जाएगा तो उसे कम से कम 5 दिन पहले ओएसडी बनाना होगा, जिससे वो प्रदेश की कानून व्यवस्था और सुधार के लिए चल रहे प्रयासों को समझकर कॉन्फ्रेंस में रख सके। ऐसे में 19 नवंबर को ही साफ हो पाएगा कि सरकार किसे ओएसडी बनाती है या फिर मुख्य सचिव की तरह ऐन वक्त पर डीजीपी के आदेश जारी होंगे।
गोलू-मोलू की जोड़ी में बेमेल सुर
कांग्रेस के गलियारों में इस समय गोलू-मोलू की जोड़ी की खूब चर्चा है। जय-वीरू के जाने के बाद इनकी जोड़ी पावर में आई जरूर, पर चार दिन भी साथ नहीं निभा पाई। अब बंद कमरा बैठकों से लेकर खुले मंच पर भी इनके बेमेल सुर गूंजने लगे हैं। समझाने वाले कहते हैं कि ईगो छोड़ो, मिलकर विपक्ष की भूमिका निभाओ, जनता के मुद्दे उठाओ, जनता का भला करो और अपनी पार्टी का भी। पर मसला ये है कि गोलू-मोलू को समझाए कौन? दोनों ही अपनी समझदारी में इतने परिपक्व हैं कि कोई समझाने जाए तो उसकी आफत तय है।
असरदार और गोयल की जोड़ी का जलवा
राजधानी में दलालों का भी अपना रुतबा है। समय के साथ कई दलाल गुम हो जाते हैं, लेकिन असरदार और गोयल की जोड़ी ऐसी है कि इनकी दलाली का रथ किसी भी सरकार और प्रशासनिक मुखिया के रहते हुए कभी रुकता नहीं। बिट्टन मार्केट इनका स्थायी अड्डा है, जहां दोनों ने अपने विभाग बांट रखे हैं। बात करने वाले मजे में कहते हैं कि अगर फलां विभाग का काम है तो असरदार जी से मिलिए और ढिकां विभाग का है तो गोयल जी के दरबार में हाजिरी लगाइए। अब कौन लोग इनके संरक्षक हैं और इनकी ताकत का राज क्या है, ये भी हम आपको जल्दी ही बताएंगे।
मैडम की तबादला गाथा
तो जनाब, सियासत के रंगमंच पर एक नई फिल्म का मंचन हुआ और इस बार मुख्य भूमिका में थीं एक 'खास' महिला अफसर और उनके तबादले को लेकर खींचतान में उलझे दो मंत्रीजी। मानो पूरा मामला किसी हाई-प्रोफाइल फिल्म की पटकथा हो, जिसमें नायक, नायिका और नखरे तीनों हों। कहानी की शुरुआत में कनिष्ठ मंत्रीजी ने बिना कोई भूमिका बांधे, बिना कोई डायलॉग बोले, एक ही झटके में महिला अफसर को कार्यमुक्त कर दिया। ठीक तभी कहानी में ट्विस्ट आया और पर्दे पर उतरे वरिष्ठ मंत्रीजी। उन्हें अपने कनिष्ठ मंत्री का ये 'सुपरफास्ट' फैसला हजम नहीं हुआ। वे भड़क गए। 46 दिन की जद्दोजहद खामोशी के बाद आखिरकार फिल्म का क्लाइमैक्स आ ही गया। कई बार नोटशीट पलटी गई, टेबल थपथपाई गई, मगर सीनियर मंत्रीजी का दबाव कुछ कम नहीं हुआ। अंततः मंत्रीजी को 'विनम्रतापूर्वक' झुकना पड़ा। आदेश रद्द कर दिया गया। मैडम को वापस बुला लिया गया। आपको बता दें कि ये महिला अफसर अपने दो पतियों को लेकर चर्चा में आई थीं।
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