कहते हैं, सरकारी सिस्टम में हर खिलाड़ी अपनी भूमिका निभाने में माहिर होता है। मगर, कुछ सितारे ऐसे भी हैं, जो नियमों की किताब में 'क्रिएटिव फ्रीडम' जोड़कर अपनी अलग राह बना लेते हैं। जैसे अब जैन साहब को ही देख लीजिए। इन्होंने चंबल की मिट्टी में वित्तीय रणनीतियों का ऐसा बीज बोया कि बड़े- बड़े अफसरों को चूना लगा दिया। उधर, जूनियर आईएएस साहब सोशल मीडिया के हीरो बने बैठे थे, मगर कमिश्नर साहब ने सारी हीरोगिरी निकाल दी।
चलिए अब मंत्रालय चलें... हां, भैया यहां के तो क्या ही कहने। हमारे एक बड़े साहब यहां 'दरवाजा नीति' लागू कर चुके हैं। उनका यह इनोवेशन काफी चर्चा में है। वहीं, विभीषण बनकर बीजेपी में गए पंडितजी कांग्रेस की रणनीतियों की पोल खोलने में व्यस्त हैं। बुंदेलखंड वाले भोले मंत्रीजी भी सुर्खियों में बने हुए हैं।
खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
जैन साहब लगा गए चूना
ग्वालियर-चंबल की मिट्टी में वैसे तो वीरों और बीहड़ों के किस्से गूंजते हैं, लेकिन हाल ही में एक अलग ही 'वित्तीय वीरता' की गाथा सामने आई है। इस कहानी के नायक हैं- जैन साहब, जो जिला पंचायत के सीईओ पद पर रहते हुए अपने 'निवेश' के जाल में बड़े-बड़े अफसरों को फंसा गए। अंचल के कई कलेक्टर और अधिकारी जैन साहब के 'दिल्ली वाले रिश्तेदार के चमचमाते कारोबार' के जाल में ऐसे उलझे कि करोड़ों की काली कमाई लगा दी।
जैन साहब ने भी अफसरों को यह यकीन दिलाया था कि उनका रिश्तेदार 'बिजनेस का बादशाह' है। बस, फिर क्या था, अफसरों ने अपनी काली कमाई को दोगुना-चौगुना करने की उम्मीद में करोड़ों का निवेश कर दिया। शुरुआत में जैन साहब ने थोड़े-बहुत मुनाफे का झांसा भी दिया। अब मसला यह है कि भोपाल तबादला होते ही जैन साहब की शैली बदल गई है। जब अफसरों ने पैसे वापस मांगे तो जवाब मिला कि रिश्तेदार का कारोबार डूब गया है। अब क्या करूं? अब ये अफसर चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे। मामला काली कमाई का जो ठहरा… उपसंहार यह है, जैन साहब ने सिखा दिया कि काली कमाई को भी सोच-समझकर निवेश करना चाहिए।
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साहब की हीरोगिरी पर लग गया ब्रेक
नगर निगम में जूनियर आईएएस साहब का जलवा कुछ ऐसा था कि उनकी सेल्फी, फोटोशूट और सोशल मीडिया पोस्ट्स पर जनता फिदा थी। हर काम के बाद तस्वीरें खिंचवाना और मीडिया में सुर्खियां बनना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था, लेकिन कमिश्नर साहब को यह लोकप्रियता बिल्कुल रास नहीं आई। दरअसल, वजह भी ऐसी थी कि साहब ही सारा क्रेडिट ले जा रहे थे। अब बड़े साहब के रहते जब आखिरकार सारे क्रेडिट जूनियर साहब ही ले जाएंगे तो उनका क्या? बस फिर क्या था, कमिश्नर साहब ने बुलाकर सख्त लहजे में समझा दिया, भाई, थोड़ा कम हीरो बनो। अब हालात ये हैं कि जूनियर आईएएस के साथ बाकी अपर आयुक्तों ने भी मीडिया और कैमरों से दूरी बना ली है।
गलती की गुंजाइश नहीं छोड़ते साहब
मंत्रालय में एक बड़े विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे एक प्रमुख सचिव का फंडा है कि महिलाओं से जरा संभलकर रहना चाहिए। उन्हें लगता है कि सावधानी हटी तो प्रतिष्ठा घटी। साहब का नियम बड़ा दिलचस्प है, जैसे ही कोई महिला अफसर अंदर आती है, कैबिन के दरवाजे तुरंत खोल दिए जाते हैं और तब तक खुले रहते हैं, जब तक वह बाहर न चली जाए। इतना ही नहीं साहब अपने विभाग की डिप्टी सेक्रेटरी स्तर की महिला अधिकारियोंं के साथ मीटिंग भी पारदर्शिता के साथ करते हैं। मतलब, जब तक मीटिंग नहीं होती, दरवाजे खुले रहते हैं। साहब के इस अनोखे एहतियात से सहकर्मी चकित हैं। कई बार तो फुसफुसाहट होती है कि ये साहब, गलती की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते।
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विभीषण बने पंडितजी
कांग्रेस में लंबे समय तक पॉवर एन्जॉय करने के बाद बुढ़ापे में बीजेपी में जाने वाले पंडितजी इन दिनों खासे चर्चा में हैं। दरअसल, पंडितजी इन दिनों विभीषण का रोल अदा कर रहे हैं। उन्होंने उपचुनाव में भी कांग्रेस के बुदनी प्रत्याशी को लेकर कई ऐसी बातें बीजेपी नेताओं को बताईं, जो अब तक गोपनीय थीं। इतना ही नहीं, कांग्रेस की हर रणनीति पर पंडितजी के पास तोड़ रहता ही है। बीजेपी नेता इस बात से खुश हैं कि पंडितजी वोट के काम भले ही नहीं आए, चोट देने के काम में जरूर आ रहे हैं। उधर, कांग्रेस वाले इससे परेशान हैं। जलने वाले तो यह कह रहे हैं कि ऐसे पंडितजी हर शहर में, हर पार्टी में होने चाहिए।
दिल्ली की बैठक और ठाकुर साहब!
ग्वालियर वाले ठाकुर साहब आए दिन अपने अतरंगी कामों की वजह से सुर्खियों में रहते हैं। अब उनकी चर्चा भोपाल से दिल्ली तक है। दरअसल, हुआ यूं कि दिल्ली में सभी मंत्रियों की बैठक बुलाई गई। मंत्रीजी भी दिल्ली रवाना हुए, लेकिन वे बैठक में नहीं पहुंचे। दिल्ली में वे अपने 'आका' से मिलकर लौट आए। वहीं, उनके पीएस मीटिंग में शामिल हुए। दिल्ली से इस बात पर गहरी नाराजगी जताई गई है। इधर, कयास लगाए जा रहे हैं कि मंत्रीजी इसलिए नाराज हैं, क्योंकि उनके पीएस का तबादला कर दिया गया, जबकि उन्हें सूचना ही नहीं दी गई। अब देखना होगा, दिल्ली दरबार क्या करता है।
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मंत्रीजी का भोलापन...
बताइए, क्या गजब चल रहा है सरकार में। अधिकारी टेंडर निकाल देते हैं और मीडिया जब मंत्रीजी से पूछती है तो वे कहते हैं कि मुझे पता नहीं है। जी हां, सही पढ़ा आपने। बुंदेलखंड से आने वाले एक मंत्रीजी इन दिनों चर्चा में हैं। दरअसल, हुआ यूं है कि साहब लोगों ने उन्हें बिना बताए ही सड़ा गेहूं बेचने के लिए टेंडर निकाल दिया। जब खबर मीडिया को लगी तो मंत्रीजी से सवाल किया गया। इसके जवाब में मंत्रीजी बोले- मुझे पता ही नहीं है। जानकारी लेता हूं। अब मंत्रीजी के समर्थक कह रहे हैं कि वे 'भोले' हैं और विपक्षी कह रहे हैं कि अफसर मंत्रियों को भी कुछ नहीं समझते हैं। अब क्या वाकई मंत्रीजी को कोई खबर नहीं थी या यह कोई रणनीति है, ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
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