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आज भोपाल की भोर कुछ अलग है। सड़कें चमचमा रही हैं। झीलें झालरों से सजी हैं। पूरी राजधानी बैनर-पोस्टर्स से पटी है। ये चमक, ये धमक, सब कुछ सरकार से है। पंत प्रधानमंत्री आज शाम राजधानी में होंगे। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए सरकार ने राजधानी को दुल्हन की तरह सजा दिया है।
इन सबके बीच मध्यप्रदेश में चर्चा मामा की भी है। 18 बरस तक सत्ता की कुर्सी पर बैठने के बाद अब समिट से ऐन पहले उन्होंने विमान की टूटी कुर्सी को लेकर जो गुस्सा दिखाया है, वह क्या किसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है? उनके जलने वाले तो ऐसी ही उल्टी सीधी बातें कर रहे हैं।
उधर, सत्तारूढ़ दल के एक भाईसाहब की सक्रियता की चर्चा भी जोरों पर है। जमीन से ज्यादा वे सोशल मीडिया पर नजर आते हैं। पार्टी के लोग ही अब इस पर सवाल खड़े करने लगे हैं। खैर, देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
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मोदी जी से चल रहा भाईसाहब का मुकाबला
बीजेपी वाले एक भाईसाहब इन दिनों पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के 'निशाने' पर आ गए हैं। पार्टी के ही लोगों का कहना है कि भाईसाहब का मुकाबला सीधे पीएम मोदी से चल रहा है। ऐसा लगा रहा है कि भाईसाहब संगठन छोड़कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। जमीन पर भले सक्रियता कम हो, लेकिन सोशल मीडिया पर पोस्ट-पोस्ट खेलना भाईसाहब को अच्छी तरह आता है। दरअसल, भाईसाहब ने अपना भौकाल ऐसा कर रखा है कि वे न तो मीडिया के नुमांइदों के फोन उठाते हैं और न ही नेता-कार्यकर्ताओं के। उनके घर सुरक्षा भी तगड़ी रहती है। आपको बता दें कि इससे पहले विपक्षी नेता इन भाईसाहब के हर सरकारी कार्यक्रम में जाने को लेकर सवाल खड़े कर चुके हैं।
मामा को टूटी सीट नेहरू जी की वजह से मिली!
नरम और सरल स्वभाव के लिए पहचान रखने वाले मामा इन दिनों चर्चाओं में हैं और इसकी वजह है उनकी गुस्से से भरी एक सोशल मीडिया पोस्ट। दरअसल, मामा को भोपाल से दिल्ली जाते वक्त विमान में टूटी सीट मिली तो वे भड़क उठे। तत्काल सोशल मीडिया पर पोस्ट कर डाली। एयर इंडिया हरकत में आई और मामा से माफी मांगी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। मामा के भांजे-भांजियों ने सोशल मीडिया पर जमकर मजे लिए। किसी ने कहा, कांग्रेस को दोष क्यों नहीं देते? किसी ने लिखा, ये तो नेहरू जी ने किया है। दिनभर सोशल मीडिया में यही चलता रहा। इधर, मामा को जानने वाले उनकी इस पोस्ट से हैरान हैं। वे कहते हैं, मामा बिना रणनीति के कुछ नहीं करते। पूरे राजनीतिक करियर में उन्होंने ऐसा बर्ताव कभी नहीं किया। इसके पीछे भी कोई राजनीतिक वजह जरूर होगी? अब असल मामला क्या है, ये तो मामा ही बता सकेंगे।
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एसपी साहब को हुआ लवेरिया
महाकौशल के एक जिले में पदस्थ एसपी साहब की लव स्टोरी के चर्चे गूंज रहे हैं। साहब का चार्मिंग स्टाइल पहले ही उनके चाहने वालों की फेहरिस्त लंबी कर चुका था, लेकिन जब वह पीएचक्यू में थे, तब एक सुंदरी उनकी स्टाइल पर इस तरह फिदा हुई कि मामला सीधे दिल तक पहुंच गया। उधर सुंदरी की मोहक अदाओं ने साहब के दिल की बैटरी फुल चार्ज कर दी और प्यार का यह सरकारी आदेश बिना किसी नोटिफिकेशन के लागू हो गया। फिर साहब को महाकौशल के एक जिले में एसपी बना दिया गया। जिम्मेदारियों का भार बढ़ा, मगर दिल के तारों में कोई ढील नहीं आई। दूरियां बढ़ीं तो साहब ने इसका भी तरीका खोज लिया। अब स्थिति ऐसी है कि ड्यूटी के नाम पर साहब कितने भी व्यस्त हों, सुंदरी को भोपाल से अपने पास बुलाने की व्यवस्था कर ही लेते हैं। और फिर...
बड़े साहब का वरदहस्त और पीएस की कमबैक स्टोरी
एक प्रमुख सचिव साहब की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं लगती, जहां हीरो थोड़ी देर के लिए शांत रहता है, फिर अचानक पुराने तेवरों के साथ एंट्री लेता है। दरअसल, पहले साहब पर विवादों की परतें मोटी होने लगीं थीं। उनका महिला आईएएस से टकराव हुआ। कुछ दिन पहले जीएडी में रहते हुए प्रमोटी आईएएस से भिड़ गए। जब उन्हें समझ आया कि गड़बड़ हो रही है तो उन्होंने संयम का मुखौटा पहन लिया। अब जैसे ही बड़े साहब का वरदहस्त सिर पर आया तो ये साहब एक्शन मोड में आ गए हैं। अब बैठकों में उनका पुराना रंग लौट आया है। न कोई लिहाज, न कोई संकोच, बस धड़ाधड़ फटकार लगा रहे हैं। उनका टॉर्चर अभियान चल रहा है।
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कप्तान साहब का काफिला!
कहने को तो साहब देहात क्षेत्र के पुलिस कप्तान हैं, लेकिन उनके शौक बड़े लक्जरी हैं। अब देखिए न, शहरी कप्तान एक-दो लक्जरी वाहनों को लेकर खुश हो जाते हैं, पर यहां तो साहब की सेवा में 7-7 गाड़ियों का काफिला लगा है। साहब तक तो मामला ठीक है, इंदौर में मैडम भी सरकारी वाहन की सेवा ले रही हैं। ऐसे में सालों पुराने कंडम वाहनों में घूमने वाले बेचारे सीएसपी और टीआई का दिल दुखना तो बनता ही है न। हमें लगता है कि पुलिस महकमे के सरल-सहज और ईमानदार मुखिया को कप्तान साहब के लक्जरी शौक की खबर नहीं है, वरना अब तक इनका काम लग जाता।
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चलो विदेश घूमकर आते हैं...
मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षा सुधार के नाम पर एक ऐसा स्टडी टूर प्लान किया, जिसमें सीखने से ज्यादा सैर-सपाटे पर जोर था। असल में, इसमें जाना था शिक्षकों को, लेकिन अफसरों ने मौका ऐसा लपका कि खुद ही विदेश निकल पड़े। टूर पर जाने के लिए नियम बनाए गए थे, लेकिन ये नियम अफसरों के लिए वैसे ही थे, जैसे बच्चे होमवर्क के लिए बहाने बनाते हैं। नियम बनाने वाले अफसर खुद नियमों के सबसे बड़े तोड़ू निकले। उम्र सीमा तय करने वाले महानुभाव खुद उम्र की सीमा पार कर चुके थे, लेकिन फिर भी शैक्षणिक ज्ञान लेने सिंगापुर पहुंच गए। कुछ अफसरों ने तो कमाल ही कर दिया, कल तक कंप्यूटर प्रोग्रामर थे, विदेश यात्रा के लिए वे प्रिंसिपल बन गए। अब सवाल ये है कि जब पहले दक्षिण कोरिया घूमने के बाद कोई सुधार नहीं हुआ तो सिंगापुर जाकर कौन-सा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा?
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