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पॉवर में रहो तो सब अपने होते हैं, पर कुर्सी से उतरते ही पहचानने वाले भी नजरें फेर लेते हैं। मामा के साथ ऐसा ही हो गया है। उधर, एक मंत्रीजी को सच्चाई हजम नहीं हो रही। इंजीनियरों ने उनके सामने हकीकत बयां कर दी है। मंत्रालय में ड्राइवर न रखने वाले डिप्टी सेक्रेटरी साहब चर्चा में हैं। सरकारी गाड़ी है, पर खुद ही चलाते हैं। बसंत के इस मौसम में साहिबान और अफसरान के खूब चर्चे हैं। आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
कुर्सी से क्या उतरे, अपने भी पराए हो गए!
पॉवर बड़ी अजीब चीज है, जब तक रहती है, सब अपना-अपना कहते हैं और जैसे ही आप कुर्सी से उतरते हैं, पहचानने वाले भी नजर फेर लेते हैं। अब देखिए न, एक वक्त था जब मामा जहां भी देखते थे, सबेरा सा हो जाता था। आज वो दिन हैं कि वे अपने ही गृह क्षेत्र में पसंदीदा अफसर की नियुक्ति नहीं करवा पाए हैं। उनकी सिफारिश को बड़े साहब ने दरकिनार किया या सूबे के मुखिया ने, यह तो पता नहीं, लेकिन मंत्रालय के अफसर जरूर कह रहे हैं कि पॉवर जाते ही अपने पराए हो जाते हैं। वैसे, मामा दिल्ली में तो पॉवरफुल हैं। खैर, राजनीति में दोस्त और दुश्मन स्थायी नहीं होते, बस कुर्सी तय करती है कि कौन अपनों में है और कौन परायों में!
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जवाब पढ़कर मंत्रीजी को पता चल गई हकीकत
सूबे के एक मंत्री महोदय को इन दिनों अपनी छवि की बहुत चिंता है। ऐसा भी नहीं कि सिर्फ शीशे के सामने खड़े होकर बाल संवार रहे हों, बल्कि विभाग की छवि को सुधारने के लिए भी जोर-शोर से लगे हैं। इसी क्रम में उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाया। प्रदेशभर के इंजीनियरों से 57 सवालों के जवाब ऑनलाइन भरवा लिए। मंत्रीजी को उम्मीद थी कि जवाब कुछ इस तरह आएंगे कि सर, आपकी दूरदर्शिता कमाल की है या फिर आपके नेतृत्व में सड़कें चिकनी हो गईं और पुल मजबूत, लेकिन असली जवाब देखे तो मंत्रीजी के माथे पर पसीना आ गया। कुछ ईमानदार इंजीनियरों ने साफ-साफ लिख दिया कि मंत्रीजी जब तक ऊपर से नीचे तक कमीशन रूपी भ्रष्टाचार की नदियां बह रही हैं, तब तक गड्ढे ही नजर आएंगे। मंत्रीजी ने एक- एक जवाब पढ़ा, फिर चुपचाप फाइल बंद कर दी। आखिर जवाब में दम था और मंत्रीजी के पास समाधान नहीं था।
बेटे ने कराई साहब की किरकिरी
केंद्र सरकार में पदस्थ मध्यप्रदेश केडर के एक आईएएस अफसर के बेटे ने उनकी किरकिरी करवा दी। दरअसल, मामला ऐसा है कि साहब का बेटा दिल्ली में इंजीनियरिंग कर रहा है। देर रात वह झगड़े में पुलिस के हत्थे चढ़ गया। घर तक मामला ना पहुंचे, इसलिए शुरुआत में उसने अपनी पहचान छिपाई। बस फिर क्या था, पुलिस जैसे किसी आम अपराधी की खातिरदारी करती है, उसी अंदाज में साहब के शहजादे और उसके दोस्तों की मेहमान नवाजी कर दी। आखिरकार शहजादे से जब सहन नहीं हुआ तो उसने अपने साहब पिता का नाम बताया। साहब ऊंचे ओहदे पर हैं, तो पुलिस वाले भी डर गए। रात को ही साहब को फोन लगाया। खबर मिलते ही साहब रात को थाने दौड़े, मामला दबाने और बेटे के भविष्य को बचाने पॉवर का भी इस्तेमाल किया, लेकिन बात बाहर आ ही गई।
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साहब ड्राइवर क्यों नहीं रखते?
मंत्रालय के एक डिप्टी सेक्रेटरी साहब इन दिनों खूब चर्चा में हैं। चर्चा उनकी कार्यशैली को लेकर नहीं, बल्कि इस बात पर हो रही है कि साहब ड्राइवर क्यों नहीं रखते? दरअसल, सरकार ने साहब को ट्रेवल्स की गाड़ी तो दे दी, लेकिन उन्होंने ड्राइवर लेने से साफ इनकार कर दिया। अब भला ड्राइवर रखने में क्या परेशानी? ट्रेवल्स वाला भी उलझन में है, क्योंकि साहब आए दिन गाड़ी ठोक देते हैं। आखिरकार उसने विभाग के बड़े अफसरों से शिकायत कर दी कि साहब को समझाओ, ड्राइवर से ही गाड़ी चलवाएं, वरना हमारी गाड़ियां कबाड़ हो जाएंगी, लेकिन साहब टस से मस नहीं हो रहे। फिर किसी ने साहब के ड्राइवर न रखने के पीछे का असली रहस्य खोज निकाला। दरअसल, साहब दो घर चला रहे हैं। दिन में लंच एक घर में होता है, तो रात का डिनर दूसरे में। अब अगर ड्राइवर रख लिया तो ये राज ज्यादा दिन राज नहीं रहेगा। मेम साहब तक बात पहुंचने का खतरा जो है, इसीलिए साहब खुद स्टेयरिंग संभालते हैं, ताकि गाड़ी के साथ-साथ मोहब्बत की सच्चाई भी कंट्रोल में रहे।
साहब ने आखिर परिचय क्यों दिया?
अफसरों के बड़े साहब ने हाल ही में कलेक्टर-कमिश्नर की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग बुलाई। बैठक शुरू होते ही अपर मुख्य सचिव जे.एन कंसोटिया ने अपना परिचय देते हुए कहा, मैं गृह विभाग में अपर मुख्य सचिव हो गया हूं। बस, इतना कहना था कि डीजीपी से लेकर हर कलेक्टर-एसपी अचरज में पड़ गए। ब्यूरोक्रेसी में कौन कंसोटिया साहब को नहीं जानता? आखिर उन्होंने परिचय क्यों दिया? क्या ये पद की नई जिम्मेदारी को लेकर कोई औपचारिकता थी या फिर 'बड़े साहब' को एहसास दिलाने का कोई खास तरीका? वीसी खत्म होते ही सरकारी गलियारों में अटकलों का दौर शुरू हो गया। कुछ लोगों का मानना है कि साहब बस अपनी प्रोफाइल अपडेट कर रहे थे तो कुछ का कहना है कि यह उनकी स्टाइल थी– पहचान कर लो, अब मैं और भी ताकतवर हो गया हूं। अब साहब के इस परिचय के कई मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन असली बात तो वही जानें कि यह परिचय जरूरत थी या कोई खास संदेश?
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खाकी के दाग धोने में जुटे साहब
खाकी की साख पर फिर से दाग लग गया है। अब देखिए न, पीएचक्यू के अकाउंट डिपार्टमेंट में घोटाले का जिन्न बाहर आ गया है। तीन करोड़ से ज्यादा की हेराफेरी की खबर है। लंबे समय से ये खेल चल रहा था। मेडिक्लेम के बिलों में इतना गोलमाल किया गया है कि बीमार को दवा मिलने से पहले ही इलाज बिलों में हो चुका था। अब तीन पुलिसकर्मी हिरासत में हैं और बाकी 'खिलाड़ियों' के दिलों की धड़कनें तेज हैं। कहीं अगला नंबर उनका न आ जाए। नए बड़े साहब जीरो टोलरेंस को लेकर बेहद सख्त हैं। उन्होंने कड़ी कार्रवाई के निर्देश देते हुए नए सिरे से जांच बैठा दी है।
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