बोल हरि बोल : बड़े साहब की पत्नी, छोटे साहब की बदली और वो 187 रुपए अब कौन लौटाएगा?

कुछ अफसर अपने स्वभाव के चलते मात खा जाते हैं। उन्हें याद ही नहीं रहता कि कब क्या करना है और क्या नहीं। इस बार गुस्सैल और बिगड़ैल किस्म के एक आईएएस साहब से भूल हो गई।

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Harish Divekar
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ऋतुराज बसंत की आप सभी को हार्दिक शुभेच्छा। मां सरस्वती से प्रार्थना है कि हुक्मरानों को सद्बुद्धि दें। तो चलिए शुरू करते हैं किस्से अफसरान और सियासतदानों के। जनाब! मध्यप्रदेश की नौकरशाही के गलियारों में इन दिनों अजीबो गरीब मामले सामने आ रहे हैं। कहीं बड़े साहब की पत्नी से पंगा लेना एक गुस्सैल अफसर को भारी पड़ गया, तो कहीं एक जूनियर साहब निगम में मलाई काटने के बाद भी अपनी पिच छोड़ने को तैयार नहीं थे-  नतीजा...दोनों को बाहर कर दिया गया। 

इधर, दिल्ली में डेपुटेशन पर गए आईएएस साहब सरकारी गेस्ट हाउस को ही अपनी जागीर समझ बैठे। जब बंगले में रहने का वक्त आया, तो गेस्ट हाउस छोड़ने की बजाय उल्टा 187 रुपए की रिकवरी निकाल दी। 

खैर, देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।

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काश! बड़े साहब की पत्नी से पंगा न लिया होता

कुछ अफसर अपने स्वभाव के चलते मात खा जाते हैं। उन्हें याद ही नहीं रहता कि कब क्या करना है और क्या नहीं। इस बार गुस्सैल और बिगड़ैल किस्म के एक आईएएस साहब से भूल हो गई। उन्होंने बड़े साहब की पत्नी से पंगा ले लिया। अब बड़े साहब तो बड़े साहब हैं- धैर्यवान और शांत। पहले उन्होंने सोचा, कोई बात नहीं... इनका व्यवहार ही ऐसा है, जाने दो, लेकिन जब साहब की धर्मपत्नी खुद त्रस्त होकर वीआरएस मांगने लगीं तो बड़े साहब के धैर्य का बांध टूट गया।

मामला पारिवारिक था, इसलिए उन्होंने कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई। लेकिन कहते हैं न हर गुनाह की सजा होती है, बस सही वक्त पर। साहब ने धैर्य के साथ वक्त का इंतजार किया और गुस्सैल साहब को पटक दिया लूपलाइन में। अब ये आईएएस कार्मिक विभाग के गलियारों में भटकते फिर रहे हैं। किसी से पूछ रहे हैं, भई, आखिर मुझे हटाया क्यों गया? अब उन्हें कौन बताए कि सीनियर अफसर से पंगा लेना प्रशासनिक आत्महत्या करने जैसा होता है। 

पिच छोड़ने को तैयार नहीं थे ये साहब, फिर...! 

भाई, ऐसे खिलाड़ी रोज-रोज नहीं मिलते। सूबे के मुखिया के लाड़ले जूनियर अफसर को समय से पहले बड़े निगम का कप्तान बना दिया गया था। बस, फिर क्या था? इन्होंने आते ही बैट घुमाना शुरू कर दिया। मलाई कूटने की ऐसी फुर्ती दिखाई कि बड़े-बड़े घाघ भी शरमा जाएं। शिकायतों की झड़ी लग गई, लेकिन हर बार ये साहब पुराने संबंधों के चलते शिकायतें दबवाते रहे। लेकिन जनाब, बड़े साहब तक शिकायत पहुंच गई। फिर क्या था। ट्रांसफर लिस्ट बनी और बल्लेबाज का नाम भी उसमें फिट कर दिया गया। सोचा गया कि अब तो इनका खेल खत्म, लेकिन हाय रे इनका प्रताप। तबादला होने के बावजूद निगम से रिलीव होने का नाम नहीं ले रहे थे। उल्टा जिले के अफसरों से तबादले के नाम पर वसूली का नया मैच खेलने लग गए। फिर दोबारा जब मुखिया को इनकी एक्स्ट्रा इनिंग्स की खबर लगी तो रातों-रात एकतरफा रिलीव कर सीधे निगम की पिच से बाहर भेज दिया गया। 

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चलो लौटाओ मेरे 187 रुपए...

मध्यप्रदेश कैडर के एक आईएएस साहब दिल्ली के गेस्ट हाउस को अपने ही साम्राज्य का हिस्सा समझ बैठे हैं। दरअसल, इन्हें एक आयोग में डेप्यटेशन मिला तो ये सूट-बूट टांगकर दिल्ली पहुंच गए। सरकारी बंगला अभी मिला नहीं था तो गेस्ट हाउस में ठहर गए। अब तक सब सही था। फिर बंगला भी मिल गया, लेकिन साहब को गेस्ट हाउस की चाय-सब्जी इतनी भा गई कि वहां से हटने का मन ही नहीं बना। बंगले की मरम्मत के नाम पर गेस्ट हाउस में ही रुकने का बहाना बनाया, लेकिन जब बंगला चमक उठा, तब भी गेस्ट हाउस छोड़ने का नाम नहीं लिया। ऊपर से रहने का बिल चुकाने की बात आई, तो साहब ने ​रिकवरी निकाल दी। साहब ने गेस्ट हाउस का पूरा बिल देने के बजाय उल्टा 187 रुपए मांग लिए। हां, पूरे 187 रुपए, जो साहब के हिसाब से गेस्ट हाउस वालों ने उनसे ज्यादा ले लिए थे। मध्यप्रदेश में साहब के विभाग को पूरी रिपोर्ट भेजी जा चुकी है। इन 187 रुपए की खूब चर्चा है। 

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हमारा नंबर कब आएगा सर? 

आईएएस अफसरों की आधी-अधूरी ही सही, लेकिन ट्रांसफर लिस्ट आ गई है, मगर बेचारे आईपीएस अफसर पोस्टिंग की अंधेरी सुरंग में फंसे पड़े हैं। एसपी और आईजी साहबान को अपनी नई कुर्सियों का ख्वाब आए इतने महीने हो गए कि अब तो कुर्सी भी शक करने लगी है कि कहीं सपनों में ही बदल न जाए। पीएचक्यू के गलियारों में सुगबुगाहट तो है, लेकिन सूची कब आएगी, कोई पक्का नहीं कह पा रहा। अब नए अफसर पुराने अनुभवी अफसरों से सवाल पूछ रहे हैं कि सर, कोई अपडेट? उन्हें जवाब में बस रहस्यमयी मुस्कान मिलने के साथ सही वक्त आने की गोली दी जा रही है। अंदरखाने की खबर ये है कि सीएम साहब जापान से लौट आए हैं, अब खाकी वाले बड़े साहब किसी दिन मूड बनाएंगे और तब जाकर आईपीएस की किस्मत खुलेगी। तब तक बेचारे अफसर बस यही सोच रहे हैं कि हमारा नंबर कब आएगा? 

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सात महीने में साहब की मंत्रालय में वापसी 

देश में बाबा साहेब को लेकर चल रही सियासत के बीच मध्यप्रदेश में हुआ एक सीनियर आईएएस अफसर का ट्रांसफर चर्चा में बना हुआ है। दरअसल, पहले ये साहब एक संगठन के सबसे बड़े कर्ताधर्ता माने जाते हैं। पिछले सात महीने से वे मंत्रालय से बाहर थे। अब हाल ही में देश में बाबा साहेब पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई। इस बीच सरकार को याद आया कि मंत्रालय में कहीं दलित वर्ग को प्रतिनिधित्व न मिलने का मामला न उछल जाए। बस फिर क्या था, 7 महीने बाद मंत्रालय में सीनियर आईएएस अधिकारी की वापसी कर दी गई, ताकि जब बात उठे तो यह तर्क भी दिया जा सके कि डॉक्टर साहब की सरकार में सबको नेतृत्व और सम्मान दिया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसी साल साहब का रिटायरमेंट भी है। माना जाता है कि मंत्रालय से बाहर किसी अधिकारी का रिटायरमेंट होना, उनके लिए बड़ा तकलीफदेह होता है। इसीलिए अब साहब की मंत्रालय में वापसी की गई है। 

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बिना कप्तान के चल रहा विभाग

परिवहन विभाग इन दिनों सुर्खियों में है, लेकिन वजह कोई उपलब्धि नहीं, बल्कि पूर्व आरटीओ आरक्षक सौरभ शर्मा की काली कमाई की वजह से हो रही बदनामी है। इस मामले ने पूरे महकमे को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सरकार अब इस विभाग को नया प्रशासनिक मुखिया देने की तैयारी में है। अब तक इस विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे अपर मुख्य सचिव एसएन मिश्रा रिटायर हो चुके हैं, लेकिन उनकी जगह कौन लेगा, यह अब भी सवाल बना हुआ है। हाल ही में हुए 42 आईएएस अफसरों के तबादले में मंत्रालय स्तर पर बदलाव की योजना थी, लेकिन परिवहन और गृह विभाग में सीएम और सीएस के पसंदीदा अफसरों पर सहमति नहीं बन सकी। यही वजह है कि गृह विभाग को तो नया एसीएस मिल गया, लेकिन परिवहन विभाग अब भी बिना कप्तान के चल रहा है।

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