हरीश दिवेकर @ भोपाल
लो जी होली आई और गर्मी लाई। मौसम भी गर्म हो चला और सियासत भी। देखिए न, 'मफलर' अंदर हो गया है। कूलन में, केलिन में और कछारन में इलेक्टोरल बॉन्ड की गूंज है। विपक्ष के लिए यह बसंत बड़ा दुष्ट साबित हुआ। कुंजन में, क्यारिन में, कलिन में बीजेपी किलकंत है। त्योहार की इस बेला में एक तरफ तो हर दिन खुशी की 'गुल्लकें' फूट रही हैं। दूसरी ओर राजा साहब और उनकी पार्टी 'कंगाल' हो गई है। चुनावी त्योहार में राजनीतिक हुड़दंगी आरोप- प्रत्यारोप के गुब्बारे फेंक रहे हैं। सभाओं, रैलियों और बयानों में जुबानी गुलाल- अबीर की बौछार हो रही है। ( BOL HARI BOL )
भोपाल की बड़ी बिल्डिंग वाली बड़ी मैडम के किस्मत कनेक्शन ने पंडितजी के रंग में भंग कर दिया है। खाकी वाले साहबों को अहं ब्रह्माऽस्मि अच्छा नहीं लग रहा। मौसाजी की महक भी खूब है। आप तो काले, पीले, हरे, नीले रंग में उलझे हैं, एक साहब तो काले- पीले को सफेद करने में जुटे हुए हैं। उनका तरीका भी नायाब है। खैर छाड़िए… आप तो सीधे नीचे उतर आईए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
किस्मत मारे जोर तो घर में रख जाएं चोर
'जब किस्मत जोर मारती है, तब चोर भी चोरी का माल आपके घर छोड़ जाता है...। बड़ी मशहूर ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। अब ऐसा ही कुछ हॉट सीट पर बैठीं मैडम के साथ हो रहा है। सरकार ने मैडम को तीन महीने का एक्सटेंशन देने का प्रस्ताव भेजा और दिल्ली वालों ने छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया। मैडम की किस्मत ने ऐसा जोर मारा कि हॉट सीट पर बैठने का सपना देख रहे पंडितजी को टेंशन हो गई है। उन्हें जोर का झटका वाकई जोर से ही लगा है। दरअसल, मैडम का जब एक्सटेंशन खत्म होगा, तब पंडितजी के रिटायरमेंट में सिर्फ 4 महीने बचेंगे। उधर, दूसरे दावेदार प्रसन्न हैं, क्योंकि उनके लिए सबसे बड़ा रोड़ा पंडितजी ही बन रहे थे।
दुश्मनी जम कर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों।
जनाब! इन दिनों मंत्रालय में दुश्मनी की खूब चर्चा है। दरअसल, मंत्रालय के एक एसीएस साहब से उनका कैबिन खाली कराने के लिए अजीब तरीका अख्तियार किया गया था। हुआ कुछ यूं है कि साहब अंदर बैठे थे और मंत्रालय के कर्मचारी उनके कैबिन की नेमप्लेट निकालकर ले गए। साहब बाहर आए और नेमप्लेट गायब देखी तो वे भड़क गए। उनकी नाराजगी के बाद आनन- फानन नेमप्लेट लगा दी गई, लेकिन दूसरे दिन फिर पट्टिका गायब थी। इसके बाद साहब सामान समेटकर नई बिल्डिंग में शिफ्ट हो गए। बताया जा रहा है कि इन सबके पीछे एक प्रमुख सचिव का हाथ है, जिन्होंने नियम- कायदे का हवाला देते हुए एक एसीएस को खुश करने के लिए दूसरे एसीएस से दुश्मनी मोल ले ली है। तो भैया, बुरा न मानो होली है।
फाइलें देखें वे, पीएचक्यू हम संभाल लेंगे
अहं ब्रह्माऽस्मि… ये तो आपने सुना ही होगा। इस महावाक्य का अर्थ है: 'मैं ब्रह्म हूं।' प्रशासनिक गलियारों में इसकी खूब चर्चा है। असल में क्या है कि जब से घर वाले महकमे की जिम्मेदारी प्रमुख सचिव ने संभाली है, तब से खाकी वाले साहबों की नींद उड़ी हुई है। पीएस साब 'ब्रह्म' की भूमिका में हैं। ऐसा पहली बार हुआ है, जब कोई प्रमुख सचिव खाकी वाले साहब लोगों के काम- काज की पूछताछ कर रहा है। इतना ही नहीं सीधे दफ्तर जाकर काम- काज की पड़ताल की जा रही है और वो भी पूरे स्टाफ के सामने। खाकी वाले मुखिया तो हमेशा की तरह चुप हैं, लेकिन दूसरे नंबर पर आने वाले साहब लोगों ने इस पर खासा ऐतराज जताया है। सोशल मीडिया ग्रुप पर अफसर अपनी भड़ास भी निकाल रहे हैं। उनका कहना है कि प्रमुख सचिव मंत्रालय में बैठकर फाइलें देखें, पीएचक्यू में उनका क्या काम? ये तो हमारा इलाका है, यहां हमारा ही राज चलता है।
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मौसाजी हैं तो काहे का डर
इकबाल सिंह बैंस के कभी खासम खास रहे अफसर इस सरकार में डरे हुए हैं। इन सबके बीच एक कलेक्टर साहब ऐसे भी हैं, जो बिंदास जिला संभाल रहे हैं। इसकी वजह भी बड़ी मौजू है। क्या है कि कलेक्टर साहब के मौसाजी की पहुंच सीधे 'डॉक्टर साहब' तक है। अब ये तो साफ है कि जब ऊपर तक पहुंच है तो नीचे वाले कंपाउंडर क्या कर लेंगे। डॉक्टर साहब के गृह जिले में मौसाजी ने संस्कृति की तान छेड़ रखी है। इतना ही नहीं, उन्होंने अपना डेरा भी वहीं जमा लिया है। ऐसे में कलेक्टर साहब का मानना है कि मौसाजी हैं तो काहे का डर।
ओह्हह....जोगिरा सारा...रारा
काला, पीला और अब सफेद
इन दिनों सरकार में एक प्रमोटी आईएएस खासे चर्चा में हैं। सत्ता साकेत से इन साहब की नजदीकी इतनी ज्यादा हो गई कि बड़े- बड़े कॉरपोरेट घराने के लोग इनसे संपर्क साध रहे हैं। जाहिर है कि काला- पीला भी ज्यादा होने लगा। अब मोदी जी के राज में इतने काले को सफेद करना आसान नहीं है, तो इन साहब ने अपने बेटे को दुबई शिफ्ट कर दिया। पिताजी यहां से काला भेज रहे हैं और बेटा वहां बैठकर सफेद करवा रहा है। कौन, कब, कैसे... अरे भई हमने तो बस रंग में भंग किया है। थोड़ा अपने घोड़े दौड़ाइए...सब रंग पता चल जाएगा।
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रेत से तेल निकाल रहे साहब
मंत्रालय के एक एसीएस ऐसे हैं, जो रेत से तेल निकालना जानते हैं। साहब कितने ही सूखे में रहें, पर हरियाली ढूंढ ही लेते हैं। हाल ही में एसीएस साहब ने इंदौर में एक बड़ा आयोजन करवाया। बताया जा रहा है कि साहब ने सिंगल कंपनी को 2 करोड़ का काम देकर वारे- न्यारे कर लिए। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि साहब इसके पहले असामान्य विभाग में पदस्थ रहकर भी छोटे- छोटे कामों में चौके- छक्के लगाकर रिकॉर्ड बना चुके हैं। इनकी पिचकारियों का रंग बड़ा चोखा होता है। विभाग के अधिकारी कहते हैं कि इसके पहले इतनी बल्लेबाजी किसी ने नहीं की।
जिसकी लाठी, उसी की भैंस
अपर मुख्य सचिव एक निगम मंडल की कार पांच साल से अपने पास रखे हुए हैं। बार- बार कहने के बावजूद साहब कार लौटाने को तैयार नहीं हैं। हालात ये है कि उस कार की लॉग बुक आज भी निगम मंडल में भरी जा रही है। उसका डीजल खर्च भी निगम के खजाने से जा रहा है। ऐसे ही स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा संभाल रहीं मैडम आईएएस ने दो साल से अपने बंगले पर निगम मंडल के चार प्यून रख रखे हैं। निगम चाहकर भी मैडम से प्यून वापस नहीं ले पा रहा है। अब हम तो यहां यही कह सकते हैं कि जिसकी लाठी, उसी की भैंस होती है।
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चंदा जुटाकर चुनाव लड़ेंगे राजा साहब
इस लोकसभा चुनाव में विपक्ष को भले ही सभी सीटों के लिए काबिल उम्मीदवार न मिल रहे हों, लेकिन इनके हौसले की दाद देनी होगी। अब देखिए, राजगढ़ में कुछ बड़े नेता राजा साहब को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। उधर, राजा साहब और उनकी पार्टी है कि 'कंगाल' हो गए हैं। राजा साहब कह रहे हैं कि चुनाव के लिए मैंने कभी किसी से चंदा नहीं मांगा, लेकिन इस बार लग रहा है कि चंदा मांगना पड़ेगा। हम तो यही कहेंगे कि आप तो चंदा जरूर लीजिए, क्योंकि इन दिनों तो हर कोई चंदा ले और दे रहा है। कोई गुल्लकें एकत्रित कर रहा है तो कोई पर्चियां काट रहा है। ये अलग बात है कि हमने होलिका दहन के लिए चंदा दिया था और समिति वालों ने लिया है।