बोल हरि बोल : कारोबारी का भौकाल डाउन, इधर... साहब नहीं समझते स्त्रीलिंग-पुल्लिंग

मध्यप्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में फिर हलचल है। खबर है कि डॉक्टर साहब ने प्रशासनिक सर्जरी की तैयारी कर ली है। इससे कई बड़े अफसरों की धड़कनें बढ़ गई हैं... नीचे पढ़िए 'बोल हरि बोल' के रोचक किस्से..

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Harish Divekar
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चलो भैया...हो गया महाकुंभ! उत्तरप्रदेश में प्रयागराज वाला भी और मध्यप्रदेश में भोपाल वाला भी। अब आप सोच रहे होंगे कि मध्यप्रदेश में कौन सा महाकुंभ हो गया। ...तो जनाब, इसका जवाब है भोपाल में दो दिन हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट। अब इवेंट बड़े होते हैं तो सुर्खियां भी निकलती हैं। ऐसे ही मध्यप्रदेश की सुर्खियों में कुछ ग्लोबल है तो कुछ लोकल। वहीं, ढेर सारा है फोकल। जीआईएस में निवेश के कई करार हुए हैं। सरकार इससे गदगद है, पर एक दाग ने मजा किरकिरा कर दिया है।

 नेतानगरी से और भी खबरें हैं। इसी में से एक है 'आप की विदाई...।' देश की राजधानी से आम आदमी पार्टी के सत्ता से जाने के बाद इनके भोपाल के दफ्तर में भी ताले डल गए हैं। उधर, विपक्ष के नए साहब की कॉफी के चर्चे चाय के ठेलों पर भी हो रहे हैं। 
खैर, इसी तरह देश-प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आइए और 'बोल हरि बोल' के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए। 

नामचीन कारोबारी का भौकाल डाउन हुआ क्या?

मध्यप्रदेश के एक नामी कारोबारी का जलवा फीका सा पड़ गया है। पिछली सरकार में इनकी तूती बोलती थी। जो कह दिया, वो पत्थर की लकीर होता था। अब आलम ये है कि बड़े नेता और अफसर इनसे कन्नी काट रहे हैं। ताजा मामला इनके बेटे की शादी से जुड़ा है। न्योते खूब बांटे गए, पर जब शादी में मेहमान गिनने की बारी आई, तो बड़े चेहरे नहीं दिखे। चुनिंदा लोग पहुंचे और वो भी रस्म-अदायगी करने। कारोबारी गलियारों में यही चर्चा है कि भाईसाहब का नेटवर्क कमजोर हो गया क्या? वैसे, खुद ये कह चुके हैं कि बेटे की शादी में बाप का जलवा दिखता है और बाप की मय्यत में बेटे का। बेटे की शादी में बाप का जलवा दिखा नहीं। अब देखने वाली बात ये होगी कि आगे उनकी चमक लौटती है या भौकाल का ग्राफ और नीचे जाएगा।

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लो जी! डॉक्टर साहब फिर करेंगे सर्जरी!

मध्यप्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में फिर हलचल है। खबर है कि डॉक्टर साहब ने प्रशासनिक सर्जरी की तैयारी कर ली है। इससे कई बड़े अफसरों की धड़कनें बढ़ गई हैं। यह तीसरी बार है जब सफाई अभियान की चर्चा जोरों पर है। अब सवाल ये है कि इस बार किसका नंबर लगेगा? फिलहाल तो खबर सुनते ही कई दिग्गजों ने पुराने संपर्कों की फाइलें खोल दी हैं। वहीं, कुछ साहब के दरवाजे पर हाजिरी लगा रहे हैं। अब स्थिति ऐसी है कि इन बड़े लोगों के पास आने वालों की भीड़ कम होने लगी है। दरअसल, इन्हें डर है कि कहीं एडवांस डूब ना जाए, इसलिए नए निजाम के साथ नई सेटिंग बैठाकर ही काम जमाएंगे। 

हाय राम! 'आप' गई काम से...

दिल्ली की सत्ता क्या छूटी, आम आदमी पार्टी का मध्यप्रदेश से नाता भी ऐसा टूटा कि अब दफ्तर तक वीरान हो गया। भोपाल में कभी जिस ऑफिस में झाड़ू लहराने वाले दिन-रात चहल-पहल मचाए रहते थे, वहां अब ताला लटक रहा है। बीजेपी वाले भी मजे लेने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। नेता कह रहे हैं कि अब झाड़ू से धूल साफ करने वाले ही नहीं बचे। एक समय था, जब आप पार्टी को तीसरे मोर्चे की ताकत माना जाने लगा था। बड़े-बड़े दावे, नए-नए चेहरे और दिल्ली मॉडल की दुहाई देकर लोग जुड़ रहे थे। लेकिन अब हाल यह है कि नेता गायब, कार्यकर्ता लापता और दफ्तर पर ताला पड़ गया है। अब देखना ये है कि पार्टी दफ्तर फिर खुलेगा या पूरी तरह गुल हो जाएगा। 

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आखिर कहां अटक गई लिस्ट?

राज्य पुलिस सेवा के गलियारों में इन दिनों एक सवाल गूंज रहा है। और वह प्रश्न यह है कि आखिर ईओडब्ल्यू-लोकायुक्त की लिस्ट अटका कौन गया? महीनों के गणित, जोड़-घटाव और विभागीय कसरत के बाद पीएचक्यू ने लिस्ट गृह विभाग को भेजी थी। वहां से छंटाई कर इसे सीएम के ओएसडी राकेश गुप्ता तक पहुंचाया गया। सबको लगा कि अब लिस्ट आने ही वाली है, पर हाय रे किस्मत! महीना बीत गया, लिस्ट का अता-पता नहीं। अब अटकलों का बाजार गर्म है कि कहीं नाम जुड़ने-कटने का नया खेल तो नहीं चल रहा? जो अफसर ईओडब्ल्यू या लोकायुक्त में एसपी-एडिशनल एसपी बनने की आस में थे, वे गणित समझने में जुट गए हैं। कौन किसके करीब है? किसका जुगाड़ मजबूत है?  

स्त्रीलिंग पुल्लिंग भी नहीं समझते ये तो...

मंत्रालय में इन दिनों एक सेक्रेटरी साहब की खूब चर्चा है। चर्चा इसलिए नहीं कि इन्होंने कोई तीर मार दिया, बल्कि इसलिए कि साहब को काम का सम्पट ही नहीं बैठ रहा। दरअसल, दिल्ली से लौटने के बाद ये साहब छोटी-मोटी पोस्टिंग में रहे। फिर बड़े साहब की मेहरबानी हुई तो बड़ी जिम्मेदारी मिल गई। अब साहब की स्थिति देखने लायक है। उन्हें न फाइलें समझ आ रही हैं, ना फैसले। आलम यह है कि इनका जनप्रतिनिधियों से भी तालमेल नहीं बैठ पा रहा। हालात इतने गंभीर हैं कि लोग मजाक में कहने लगे हैं कि जब इन्हें स्त्रीलिंग-पुल्लिंग तक ठीक से नहीं पता तो प्रशासन की बारीकियां कैसे समझेंगे? वैसे, साहब की विचारधारा पर भी खूब चर्चा हो रही है। दिल्ली में डेपुटेशन से पहले एक कम्युनिस्ट नेता के समर्थन में किए गए ट्वीट से पहले ही ये बवाल मचा चुके हैं।

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महंगी कॉफी कब तक चलेगी प्रभारी जी! 

ऐसा लगता है कि विपक्ष के नए सर्वेसर्वा जी के आते ही नया नियम लागू हो गया है। आप नहीं समझे ना। चलिए तफ्सील से बताते हैं। दरअसल, मामला महंगी कॉफी से जुड़ा है। अंदरखाने की खबर यह है कि नए साहब स्टारबक्स की स्पेशल कॉफी के बिना काम ही नहीं कर पाते। और हां, मजे की बात यह है कि साहब अकेले कॉफी नहीं पीते, दो सहयोगियों के लिए भी स्टारबक्स कॉफी आती है। अब बेचारे बाकी नेता कैंटीन की सरकारी कॉफी से काम चला रहे हैं। पार्टी मीटिंग में आते तो सब हैं, लेकिन जब टेबल पर एक तरफ स्टारबक्स की सुगंध और दूसरी तरफ साधारण पीसीसी कॉफी की भाप उठती है तो नेताओं के चेहरे के भाव सब बयां कर देते हैं। इधर, चीफ साहब की टेंशन सातवें आसमान पर है। उन्हें संगठन की तो अलग चिंता है और इस पर प्रभारी जी के महंगे शौक अलग।  

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खाने के ये दाग धुलेंगे क्या? 

बहुप्रतीक्षित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट धूमधाम से निपट गई। रिकॉर्ड भी बने निवेश के, उद्योगपतियों के आने के, और...भोपाल की खातिरदारी के। मध्यप्रदेश की उड़ान दुनिया ने देखी, डॉक्टर साहब की विजनरी लीडरशिप की वाहवाही हुई, लेकिन पूरी समिट में सिर्फ 10 सेकंड का एक वीडियो सरकार के गले की हड्डी बन गया। वीडियो में क्या था? बस, समिट के बाद लोग खाने पर ऐसे टूटे कि बुफे नहीं, मानो मुफ्त राशन बंट रहा हो। अब डॉक्टर साहब का नाराज होना तो बनता था। इस पर बात संभालने के लिए अफसरों ने पुरानी रणनीति अपनाई और एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ दिया। पुलिस बोली, विभाग ने ज्यादा लोगों को बुला लिया। आयोजन करने वाला विभाग बोला पुलिस ने इंतजाम नहीं किए। खैर, समिट से निवेश कितना आएगा, यह बाद में पता चलेगा, लेकिन खाने का ये दाग लंबे समय तक नहीं धुलने वाले नहीं हैं।

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