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1 फरवरी 2025 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारत का बजट पेश करने जा रही हैं। यह मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट होगा। बजट, जो ब्रिटिशकाल से लेकर अब तक कई बदलावों से गुजर चुका है, आज भी अपनी परंपराओं और रस्मों के साथ एक अहम स्थान रखता है। इस बजट को लेकर न केवल देश, बल्कि पूरी दुनिया की नजरें टिकी होती हैं। इस लेख में, हम भारत के बजट से जुड़े कुछ बड़े बदलावों और परंपराओं पर नज़र डालेंगे।
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हलवा सेरेमनी: Budget के दस्तावेज़ तैयार होने का जश्न
भारत में बजट से पहले 'हलवा सेरेमनी' की परंपरा है, जो बजट की तैयारी का एक अहम हिस्सा होती है। इस साल, 24 जनवरी को हलवा सेरेमनी आयोजित की गई थी। बजट बनाने वाली टीम को इस दौरान हलवा परोसा जाता है, और इसी के साथ उनकी 'लॉक-इन पीरियड' की शुरुआत होती है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य से पहले मुंह मीठा कराने की आदत से जुड़ी है।
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क्या है हलवा सेरेमनी
भारत में किसी भी शुभ कार्य के दौरान मुंह मीठा कराने की परंपरा है। Budget के दस्तावेज तैयार हो जाने की खुशी में हलवा कढ़ाहे में बनाया जाता है और वित्त मंत्री की मौजूदगी में हलवा बजट बनाने वाले अफसरों और कर्मचारियों में बांटा जाता है। इसे हलवा सेरेमनी कहा जाता है।
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बजट से जुड़े अधिकारी क्यों होते हैं 'लॉक-इन'?
Budget बनाने वाली टीम के अधिकारियों को लोकसभा में Budget पेश होने से पहले एक सप्ताह के लिए वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में 'लॉक' किया जाता है। यह उपाय बजट से जुड़े दस्तावेज़ लीक होने से बचाने के लिए किया जाता है। इस अवधि में अधिकारियों के मोबाइल फोन ले लिए जाते हैं, और उन्हें किसी से मिलने की अनुमति नहीं होती है। यह पहले दो सप्ताह तक होता था, लेकिन अब इसे एक सप्ताह तक सीमित कर दिया गया है।
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बजट का समय और तारीख में बदलाव
भारत में पहले बजट हमेशा 28 फरवरी को पेश होता था, लेकिन 2017 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे 1 फरवरी को पेश करने की परंपरा शुरू की। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि बजट पेश होने और लागू होने के बीच का अंतराल कम हो, ताकि बजट को जल्दी लागू किया जा सके। इसके अलावा, रेल बजट को आम बजट में शामिल करने के कारण अब बजट पेश होने के लिए अधिक समय मिल पाता है
बजट पेश करने का समय: ब्रिटिशकाल से आज तक
आमतौर पर, भारतीय बजट ब्रिटिश काल में शाम 5 बजे पेश होता था, क्योंकि तब ब्रिटेन में यह समय दोपहर का होता था। लेकिन 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान इस परंपरा को बदलते हुए बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाने लगा। वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इस बदलाव को 'भारत अब स्वतंत्र है' के तर्क के साथ स्वीकार किया। इसके बाद से हर साल बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाता है।
चमड़े के ब्रीफकेस से लाल कवर तक का सफर
भारत में बजट पेश करने की एक परंपरा रही है, जिसमें वित्त मंत्री चमड़े के ब्रीफकेस में बजट दस्तावेज लेकर संसद में जाते थे। 2019 में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस परंपरा को बदलते हुए लाल रंग के कपड़े में बजट के दस्तावेज पेश किए। यह बदलाव भारत की सांस्कृतिक धरोहर और स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया। 2021 में, वित्त मंत्री ने 'पेपरलेस बजट' पेश किया, जो टैबलेट के जरिए प्रस्तुत किया गया था।
वित्तीय वर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल से क्यों होती है?
भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होता है, जबकि नया कैलेंडर वर्ष 1 जनवरी से शुरू होता है। इसका मुख्य कारण भारत का कृषि चक्र है, जिसमें रबी फसलों की कटाई फरवरी और मार्च में होती है। कृषि क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है, और यही कारण है कि वित्तीय वर्ष की शुरुआत 1 अप्रैल से होती है।
बजट पेश करने का लोकसभा में महत्व
भारत में बजट को लोकसभा में पेश किया जाता है, क्योंकि यह वह सदन है जो सरकार के खजाने में राशि जमा करने और निकालने की अनुमति देती है। राज्यसभा इसमें कुछ सुझाव दे सकती है, लेकिन लोकसभा को अपने निर्णय पर अडिग रहने का अधिकार है। इसके बाद, बजट राष्ट्रपति के पास जाता है, जहां उनकी भूमिका केवल स्वीकृति देने तक सीमित होती है।
रेल बजट का विलय: 92 साल बाद बड़ा बदलाव
भारत में 1924 से रेल बजट और आम बजट अलग-अलग पेश किए जाते थे। लेकिन 2016 में, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे जोड़ने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि रेल बजट अब इतना छोटा हो गया था कि इसे अलग पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके बाद, रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया गया, जिससे सरकारी खर्चों को समग्र रूप से देखना आसान हो गया।
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