मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के चरण पादुका सिंहपुर को बुंदेलखंड का जलियांवाला बाग कहा जाता है। 14 जनवरी 1931 को यहां अंग्रेजों ने निहत्थे ग्रामीणों पर गोलीबारी कर नरसंहार किया था। यह स्थान आज भी वीरता और बलिदान की याद दिलाता है। जानें, उर्मिल नदी के किनारे हुए इस ऐतिहासिक संघर्ष की पूरी कहानी।
क्या हुआ था चरण पादुका में?
14 जनवरी 1931 को छतरपुर के 'चरण पादुका सिंहपुर' में उर्मिल नदी के किनारे ग्रामीण अंग्रेजों द्वारा लगाए गए अत्यधिक करों और अत्याचारों के खिलाफ सभा कर रहे थे। नौगांव छावनी से आए कर्नल लार्ड फिशर ने फौज के साथ ग्रामीणों पर गोलियां चलवा दीं, जिसमें सैकड़ों लोग शहीद हो गए।
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अंग्रेजों का अमानवीय चेहरा
यह घटना अंग्रेजी शासन के दमन का प्रतीक बन गई। निहत्थे ग्रामीण केवल अपनी आजीविका और अधिकारों की रक्षा के लिए विरोध कर रहे थे। गोलियों की बौछार ने उर्मिल नदी के पानी को लाल कर दिया और यह स्थान स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक प्रतीक बन गया।
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उर्मिल नदी का लाल हुआ पानी
गोलियों की बौछार के बाद, उर्मिल नदी का पानी लाल हो गया। पेड़ों की पत्तियां गोलियों की गूंज से झड़ गईं। इस भयावह घटना ने छतरपुर के चरण पादुका को अमर बना दिया और इसे बुंदेलखंड का जलियांवाला बाग का दर्जा दिया गया।
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कवियों ने लिखीं लोक कविताएं
इस घटना के बाद, स्थानीय कवियों ने शहीदों की वीरता को अमर बनाने के लिए कविताएं रचीं। शहीदों की स्मृति में रची गई इस कविताओं में वीर रस सुनाया। यह कविताएं आज भी उस बलिदान को जीवंत करती हैं।
चरण पादुका का ऐतिहासिक महत्व
यह स्थान उन ग्रामीण नायकों की याद दिलाता है जिन्होंने अंग्रेजों के अत्याचारों का विरोध करते हुए अपनी जान दी। चरण पादुका सिंहपुर स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वीरता और बलिदान का प्रतीक है।
बुंदेलखंड जलियांवाला बाग की प्रेरणा
चरण पादुका सिंहपुर का इतिहास आज भी नई पीढ़ियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है। यह घटना हमें अपनी स्वतंत्रता की कीमत याद दिलाती है।
स्थानीय लोगों की स्मृतियां और सम्मान
चरण पादुका के आसपास के लोग आज भी शहीदों के बलिदान की कहानियां सुनाते हैं। हर साल यहां बलिदानी शहीदों की याद में विशेष आयोजन किए जाते हैं, जो वीरता और संघर्ष को जीवित रखते हैं।
आज का चरण पादुका: बलिदान का स्मारक
आज चरण पादुका सिंहपुर सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि बलिदान और संघर्ष का प्रतीक है। यह जगह न केवल बुंदेलखंड बल्कि पूरे भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा है, जिसे पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। छतरपुर का चरण पादुका सिंहपुर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह अध्याय है जो हमें वीरता और बलिदान का महत्व सिखाता है। अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए इन नायकों की कहानी अमर है, जो हमें हर अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने की प्रेरणा देती है।
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