भोपाल। औद्योगिक निवेश की रफ्तार हो या आमजन से जुड़े विकास कार्य, मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेसी का अड़ंगा अब एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। घरेलू पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) का नेटवर्क बिछाने की योजना इसका बड़ा उदाहरण है। यहां अडानी जैसी दिग्गज कंपनी भी अफसरशाही की रफ्तार से मात खा गई है।
गुजरात जैसे राज्य में जहां 35 लाख से अधिक घरों में पीएनजी गैस पहुंच चुकी है। वहीं मध्य प्रदेश अब भी 3 लाख कनेक्शन तक ही सीमित है। यानी गुजरात जहां चंद सालों में रिकॉर्ड बना रहा है, वहां मध्यप्रदेश 16 साल में भी बुनियादी ढांचे से जूझ रहा है।
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प्रकृति की नियामत,सिस्टम ने डुबोया सपना
मजेदार विडंबना यह है कि जिस मध्यप्रदेश की धरती मीथेन जैसी बहुमूल्य गैस से भरपूर है, वहीं के लोग घरों में PNG कनेक्शन के लिए तरस रहे हैं। राज्य के कई जिलों में मीथेन गैस के समृद्ध भंडार मिले हैं, लेकिन उपभोग का आधारभूत ढांचा अफसरशाही की वजह से खड़ा नहीं हो पा रहा।
दमोह: आग उगलते बोरिंग
दमोह के सोन घाटी क्षेत्र के 24 गांवों में बोरिंग से आग निकलने की घटनाओं ने मीथेन गैस की मौजूदगी की पुष्टि की है। ONGC यहां वाणिज्यिक उत्पादन की योजना बना रहा है।
शहडोल: कोल बेड मीथेन का भंडार
शहडोल जिले के सोहागपुर कोलफील्ड में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड दो CBM ब्लॉक संचालित कर रही है। फिलहाल 0.64 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर प्रति दिन गैस का उत्पादन हो रहा है, जिसे तीन वर्षों में 1 mscmd तक बढ़ाया जाएगा।
बैतूल: 37,000 हेक्टेयर में गैस
बैतूल के शाहपुर और घोड़ाडोंगरी क्षेत्रों में 37 हजार हेक्टेयर भूमि में मीथेन गैस के भंडार मिले हैं। यह स्थानीय विकास, ऊर्जा आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन में भूमिका निभा सकता है।
मीथेन गैस का उपयोग: बिजली उत्पादन, घरेलू ईंधन (PNG), CNG वाहनों और उद्योगों में किया जा सकता है।
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काम के बीच खड़ी ‘फाइलों’ की दीवार
राज्य में पीएनजी के विस्तार में दो सबसे बड़ी बाधाएं हैं। इनमें पहली विस्फोटक अधिनियम, 1884 के तहत जरूरी लाइसेंस की जटिल प्रक्रिया। दूसरा स्थानीय निकायों से सड़क खुदाई की अनुमति लेने में महीनों की देरी। लाइसेंस के लिए 6 से अधिक विभागों की मंजूरी लेनी होती है, और अफसरशाही का नकारात्मक रवैया कंपनियों के काम में रोड़ा बन रहा है।
बड़ी-बड़ी कंपनियां, नतीजा ‘शून्य’
- अडानी टोटल गैस लिमिटेड को 13 जिलों में 69,718 कनेक्शन देने की जिम्मेदारी 2019 में मिली थी।
- अब तक एक भी कनेक्शन नहीं!
- सीएनजी की स्थिति: सिर्फ 32 स्टेशन चालू
- अन्य पिछड़ने वाली कंपनियां: मेघा, गेल इंडिया, इंडियन ऑयल, बीपीसीएल, गुजरात गैस लिमिटेड।
कंपनियों ने सुनाई अपनी पीड़ा
हाल ही में हुई समीक्षा बैठक में सरकार ने जब धीमी प्रगति पर सवाल उठाए, तो कंपनियों ने खुलकर कहा कि अफसरशाही उनके लिए सबसे बड़ी बाधा बन गई है। जवाब में सरकार ने अब सिंगल विंडो सिस्टम लागू करने का फैसला लिया है।
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"सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन पॉलिसी 2025" लाने की तैयारी
पीएनजी नेटवर्क कामकाज को आसान बनाने सरकार "सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन पॉलिसी 2025" लाने की तैयारी में भी है। इसके अंतर्गत नेटवर्क के लिए जरूरी औपचारिकताओं की पूर्ति एक तय समय-सीमा में पूरी करनी होगी। खाद्य आयुक्त कर्मवीर शर्मा ने बताया कि लक्ष्य 2030 तक है, लेकिन नई व्यवस्था से इसमें तेजी आने की उम्मीद है।
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अब तक की स्थिति – आंकड़ों की जुबानी
- कुल लक्ष्य (2030 तक): 59.71 लाख पीएनजी कनेक्शन
- अब तक मिले: सिर्फ 3.19 लाख (लगभग 6%)
- सीएनजी स्टेशन स्वीकृत: 1207
- अब तक चालू: 378
सिर्फ 5 साल का समय, दौड़ शुरू नहीं!
2030 तक का लक्ष्य पाने के लिए कंपनियों को अगले दो वर्षों में 90% नेटवर्क तैयार करना होगा। अब देखना ये है कि सिस्टम सुधरता है या फिर योजनाएं फिर कागज़ों में ही दम तोड़ेंगी।