भोपाल।
मध्य प्रदेश में करीब 16 सौ करोड़ का ठेका पाने गुजरात की दो कंपनियों ने करीब 311करोड़ की फर्जी बैंक गारंटी थमा दी। ठेका भी मिल गया,लेकिन इनकी चालाकी ज्यादा दिन छिप नहीं सकी। बैंक की एक चिट्ठी ने कंपनियों की कारिस्तानी को उजागर कर दिया। बचाव में कंपनी हाईकोर्ट पहुंची तो न्यायालय ने सोमवार को यह जांच सीबीआई को सौंप दी।
मामला जल जीवन मिशन से जुड़ा है। मिशन को धरातल पर उतारने मप्र जल निगम ने बीते साल निविदाएं बुलाईं। इसके तहत,अहमदाबाद गुजरात की तीर्थ गोपीकॉन लिमिटेड को प्रदेश के 973 गांवो में नल से जल पहुंचाने का काम सौंपा गया।
कपंनी को तीन अलग-अलग प्रोजेक्टस के लिए 973 करोड़ का ठेका मिला। निविदा शर्तों के मुताबिक फर्म ने जल निगम के पक्ष में करीब 173 करोड़ की बैंक गारंटी दी। जो पंजाब नेशनल बैंक द्वारा जारी की गईं।
इसी तरह,सूरत गुजरात की ही एक अन्य फर्म एमपी बाबरिया को 418 गांव में पानी पहुंचाने के लिए करीब 625 करोड़ का ठेका मिला। बाबरिया फर्म ने बदले में स्टेट बैंक आफ इंडिया कोलकाता के नाम की 129 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी के दस्तावेज दिए।
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बैंक की चिट्ठी ने खोल कलई
बीते माह जल निगम को स्टेट बैंक आफ इंडिया की ओर से एक पत्र मिला कि एमपी बाबरिया फर्म की ओर से दी गई बैंक गारंटी फर्जी है। वास्तव में इस फर्म ने बैंक गारंटी बनवाने कभी आवेदन ही नहीं किया।
बैंक ने यह भी बताया कि उनकी एक शाखा के प्रबंधक व कर्मचारी से मिलीभगत कर संबंधित गारंटी की फर्जी दस्तावेज तैयार कराए गए। इस मामले में बैंक प्रबंधक व लिपिक की सेवाएं समाप्त कर उनके खिलाफ एफआईआर भी कराई गई है।
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एक फर्म ने खुलवाई दूसरी की भी पोल
स्टेट बैंक की ओर से मिले इस पत्र को पढ़ निगम के जिम्मेदार अफसरों के पैरों तले जमीन खिसक गई। इतना बड़ा धोखा!बहरहाल,फर्म से पूछताछ में उसने अपनी गल्ती स्वीकार करते हुए हाल ही में 14 करोड़ की ओरिजनल बैंक गारंटी निगम को दी। साथ ही बकाया राशि की गारंटी भी जल्द देने का वादा किया।
इसी दौरान,निगम की ओर से दूसरी फर्म तीर्थ गोपीकॉन की बैंक गारंटियों की जांच कराई तो ये भी फर्जी पाई गईं। इनमें तीन बैंक गारंटी पंजाब नेशनल बैंक व एक अन्य बैंक आफ बड़ौदा की बताई जाती हैं।
जल निगम ने मामला ईओडब्ल्यू को सौंपा
पूछताछ तीर्थ गोपीकॉन के जिम्मेदार लोगों से भी हुई लेकिन वे स्वयं को बेकसूर बताते रहे। इसके बाद निगम ने पांच दिन पहले यह मामला राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो को सौंप दिया।
बताया जाता है कि दोनों ही फर्म्स की ओर से काम तेज गति से काम किया जा रहा है। वे अब तब करीब 30 से 40 फीसद काम कर चुकी हैं। इसी आधार पर उन्हें निगम की ओर से भुगतान भी किया जाता रहा।
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हाईकोर्ट ने दिए सीबीआई जांच के आदेश
ब्यूरो इसकी जांच शुरू करता,इसी बीच तीर्थ गोपीकॉन ने अपने बचाव में मप्र हाईकोर्ट में याचिका दायर की। प्रकरण में सोमवार को पहली सुनवाई हुई। इसमें फर्म के अधिवक्ता ने वादी को बेकसूर बताते हुए उसे बैंक की जालसाजी का शिकार होना बताया।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने व फर्म को बैंक गारंटी की समूची राशि तीस दिनों के भीतर निगम को अदा करने के आदेश दिए। मामला न्यायालयीन होने से निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने इस मामले में कोई कमेंट करने से इंकार कर दिया
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