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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने डालमिया सीमेंट भारत लिमिटेड की उस याचिका को खारिज कर दिया है। इसमें कंपनी ने छिंदवाड़ा के कलेक्टर ऑफ स्टाम्प्स द्वारा लगाए गए लगभग 20.89 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी को चुनौती दी थी। जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने साफ कहा कि जब कानून में स्पष्ट अपील का प्रावधान मौजूद है, तब सीधे हाईकोर्ट आना सही नहीं है। कोड नहीं अभी कहा कि डालमिया सीमेंट कंपनी अपील में इसलिए नहीं गई क्योंकि अपील करने के पहले उन्हें 25% स्टैंप ड्यूटी जमा करनी पड़ती है। इस तरह सीधे रिट याचिका लगाने की डालमिया सीमेंट की चालाकी हाईकोर्ट में नहीं चल पाई।
मंडला नॉर्थ कोल माइन से जुड़ा मामला
डालमिया सीमेंट को केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा Mandla North Coal Mine का वेस्टिंग ऑर्डर (08 जून 2023) जारी किया गया था। इस आधार पर छिंदवाड़ा के कलेक्टर ऑफ स्टाम्प्स ने कंपनी पर 20,89,47,750 रुपए की स्टांप ड्यूटी तय कर दी। कंपनी का तर्क था कि सिर्फ म्यूटेशन (नामांतरण) की कार्यवाही पर स्टांप ड्यूटी नहीं लगती और इस पर उचित जांच या सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया गया।
वकील ने पकड़ी डालमिया सीमेंट की चालाकी
याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकारी वकील अर्णव तिवारी ने भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 40 का हवाला देते हुए कहा कि कलेक्टर के आदेश के खिलाफ पहले राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अधिकारी के पास अपील की जा सकती है।
उसके बाद मुख्य नियंत्रक राजस्व प्राधिकरण (Chief Controlling Revenue Authority) के सामने दूसरी अपील का भी विकल्प उपलब्ध है। लेकिन अपील दर्ज करने से पहले आदेशित डेफिसिट स्टांप ड्यूटी की 25% राशि जमा करना अनिवार्य है और यही कारण है कि इस 25% राशि को जमा करने से बचने के लिए याचिकाकर्ता सीधे हाईकोर्ट पहुंचे है।
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कोर्ट ने निराधार बता कर खारिज की याचिका
MP हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि कंपनी के पास वैकल्पिक और प्रभावी उपाय मौजूद है, इसलिए writ petition (रिट याचिका) को सुनवाई योग्य नहीं माना जा सकता। आदेश में लिखा गया कि "याचिका निराधार है और इसे खारिज किया जाता है। हालांकि, याचिकाकर्ता को अपील अथवा द्वितीय अपील दायर करने की स्वतंत्रता रहेगी।"
औद्योगिक घरानों के लिए सबक है फैसला
यह फैसला सिर्फ डालमिया सीमेंट के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी औद्योगिक घरानों और कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण सबक है जो खनन और जमीन संबंधी सौदों में स्टांप ड्यूटी विवादों का सामना करते हैं।
हाईकोर्ट ने एक तरह से यह स्पष्ट कर दिया कि पहले कानून द्वारा उपलब्ध अपीलीय प्रक्रिया पूरी करनी होगी, तभी हाइकोर्ट के दरवाजे खटखटाए जा सकते हैं। इस मामले में यह भी साफ कर दिया है की बड़े-बड़े औद्योगिक घराने महंगे वकीलों को हायर कर न्यायपालिका को गुमराह नहीं कर सकते।
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