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राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा से होकर बहने वाली चंबल नदी इन दिनों एक नए जीवन की हलचल से गूंज उठी है। नदी के किनारे मादा घड़ियालों द्वारा दिए गए अंडों से बड़ी संख्या में नन्हे घड़ियाल बाहर निकलने लगे हैं, जो पर्यावरण की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं। गर्मियों के इस मौसम में चंबल के रेतीले किनारों पर घड़ियालों की ये नन्ही-नन्ही प्रजातियां अब एक बार फिर से जीवन का अहसास करवा रही हैं।
1500 से ज्यादा घड़ियाल ले चुके जन्म
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य और वन विभाग के अधिकारियों की सतर्क निगरानी में अब तक करीब 1500 से ज्यादा नन्हे घड़ियालों का जन्म हो चुका है। इस पहल से चंबल नदी के घाटों की वीरानी अब समाप्त हो चुकी है, और इन शिशु घड़ियालों की उपस्थिति ने पर्यावरण को जीवंत बना दिया है। यह देखा जा सकता है कि मादा घड़ियालें अपने बच्चों की देखभाल करती हैं और सुरक्षाकर्मी उनकी सतत निगरानी कर रहे हैं ताकि इन नन्हे जीवों को किसी प्रकार का खतरा न हो। यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि चंबल नदी के इस प्राकृतिक संरक्षण प्रयास ने जलजीवों के लिए एक सुरक्षित आवास तैयार किया है। इसके अलावा, चंबल में अब 1000 से ज्यादा मगरमच्छ, 95 डॉल्फ़िन, सैकड़ों कछुए और अन्य जलजीव बसे हुए हैं। यह सफर उतना आसान नहीं था, जितना इसे देखा जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, चंबल की तेज धाराएं, मानसून में बढ़ता जलस्तर, शिकारी पक्षी और मगरमच्छ जैसे अन्य जीव इन शिशु घड़ियालों के लिए खतरा पैदा करते हैं।
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चंबल की स्वच्छता और जैवविविधता बना सुरक्षित आवास
विशेषज्ञ बताते हैं कि प्राकृतिक परिस्थितियों में केवल 1 से 2 प्रतिशत शिशु घड़ियाल ही जीवित रहते हैं, लेकिन चंबल की स्वच्छता और जैव विविधता की सुरक्षा ने इसे इन जलजीवों के लिए सुरक्षित आवास बना दिया है। इस सफलता का बड़ा कारण स्थानीय अधिकारियों की सतर्कता, वन विभाग की कड़ी निगरानी और स्थानीय समुदाय का सक्रिय सहयोग है।यहां तक कि 1975 में जब घड़ियालों की संख्या केवल 46 थी, वहीं आज चंबल नदी के किनारे सैकड़ों घड़ियालों का जन्म स्वाभाविक रूप से हो रहा है। यह तथ्य संरक्षण, समर्पण और संतुलन की कहानी को पूरी दुनिया में साझा करता है। यह प्रगति दर्शाती है कि किस प्रकार इंसान और प्रकृति के बीच का संतुलन बनाकर जीवन को सुरक्षित रखा जा सकता है।
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प्रकृति की रक्षा और समर्पण की कहानी
आज के इस युग में, जहां पर्यावरणीय संकट गंभीर हो चुका है, चंबल नदी की यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि अगर प्रकृति के संरक्षण की दिशा में सही कदम उठाए जाएं, तो जीवन का पुनः उत्थान संभव है। चंबल के किनारे बढ़ती घड़ियालों की संख्या इस बात का प्रमाण है कि अगर संरक्षण प्रयासों को सही तरीके से लागू किया जाए, तो न केवल जलजीवों बल्कि समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी यह फायदेमंद साबित हो सकता है। यह कहानी प्रकृति की रक्षा और समर्पण की है, जहां इंसान ने अपने कार्यों से यह सिद्ध कर दिया कि हम भी प्रकृति के संरक्षक बन सकते हैं। अब चंबल नदी के किनारे घड़ियालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, और यह उस दिशा में एक मजबूत कदम है, जहां इंसान और प्रकृति के बीच की दीवार को तोड़ा गया है, और एक नया संतुलन स्थापित किया गया है।
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घड़ियाल चंबल नदी | चंबल नदी में घड़ियाल