मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के कृष्ण कुमार द्विवेदी को नहीं पता था कि अमेरिका जाना तो आसान होगा, पर लौटने में उन्हें 13 साल लग जाएंगे। इस लंबे 'अमेरिकी वनवास' के कारण वे न तो अपनी मां के अंतिम संस्कार में शामिल हो सके और न ही अपने भाई-बहन की शादियों में। पीएम मोदी की लोकप्रियता की वजह से उन्हें स्वदेश लौटने का मौका मिला।
अमेरिकी वनवास की शुरुआत
छतरपुर जिले के लवकुश नगर क्षेत्र के रहने वाले कृष्ण कुमार द्विवेदी 2008 में इलाहाबाद स्थित स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती चैरिटेबल ट्रस्ट गए थे। उनके अच्छे काम को देखते हुए 2011 में उन्हें 50 महर्षि वैदिक पंडितों के साथ शिकागो, अमेरिका भेजा गया। नियम के अनुसार, जिनका आचरण अच्छा होता, है उन्हें 2 साल की बजाय 3 साल वैदिक महर्षि आश्रम शिकागो में रहने का मौका मिलता। वहां उन्हें वैदिक महर्षि आश्रम में 3 साल रहने का मौका मिला, लेकिन कुछ पंडितों के साथ कृष्ण कुमार शिकागो सिटी घूमने चले गए। यहीं से उनके लंबे वनवास की कहानी शुरू हुई।
नहीं दे पाया मां की अर्थी को कंधा
शिकागो की सुंदरता से प्रभावित होकर उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी की तलाश शुरू की, पर उन्हें यह नहीं पता था कि उनके वीजा की अवधि समाप्त हो रही है। वीजा खत्म होने के कारण वह अमेरिका में फंस गए और कई बार कोशिशों के बावजूद स्वदेश लौटने में असफल रहे। इस दौरान वह अपनी मां के निधन और भाई-बहन की शादियों में भी शामिल नहीं हो पाए।
पीएम मोदी की लोकप्रियता से मिली मदद
कृष्ण कुमार ने बताया कि जब उन्होंने हार मान ली थी, तब पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने उनकी मदद की। अमेरिका में भारतीय होने के कारण उन्हें वहां के लोगों से सम्मान मिला, और वीजा खत्म होने के बावजूद उन्हें रहने की अनुमति दी गई। आखिरकार, उन्हें आवश्यक मदद मिली और वे 14 साल बाद अपने गांव लौट सके।
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गांव में हुआ भव्य स्वागत
रविवार को जब कृष्ण कुमार अपने गांव पहुंचे, तो गांववालों ने ढोल-नगाड़ों के साथ उनका स्वागत किया। उन्होंने कहा, मैंने बहुत कुछ खोया है, मां की अर्थी को कंधा नहीं दे पाया, भाई-बहन की शादियों में शामिल नहीं हो सका। पर पीएम मोदी की लोकप्रियता के कारण मुझे अमेरिका में सम्मान मिला और मैं स्वदेश लौट पाया।
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