बीजेपी में कलह... छतरपुर में केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक की घेराबंदी, रायसेन में मंत्री-सांसद आए आमने-सामने

बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर देश में सदस्यता अभियान चला रही है। मध्य प्रदेश में भी इसका आगाज हो चुका है। लेकिन प्रदेश में बीजेपी नेताओं के आपसी कलह ने ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मध्य प्रदेश बीजेपी में सब कुछ सही चल रहा है?

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Sourabh Bhatnagar
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 मध्य प्रदेश BJP में कलह
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भले ही बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर सदस्यता अभियान चला रही हो, लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में कुछ और ही खेल चल रहा है। प्रदेश में बीजेपी नेताओं के बीच मतभेद अब खुलकर सामने आ गए हैं। बीते कुछ दिनों में पार्टी के अंदर नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई ने सभी को चौंका दिया है। छतरपुर में बीजेपी नेता व पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। छतरपुर विधायक ललिता यादव ने कहा कि केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेस के एजेंट को अपना प्रतिनिधि बनाया है। 

वहीं दूसरी ओर, नर्मदापुरम से बीजेपी सांसद दर्शन सिंह चौधरी और प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल के बीच वर्चस्व की लड़ाई जारी है। इतना ही नहीं, रीवा में भी बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा और बीजेपी विधायक सिद्धार्थ तिवारी एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींचे हुए हैं। तो क्या मध्यप्रदेश बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है? आइए, इन विवादों की गहराई से पड़ताल करते हैं।

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मामला 1: केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक बनाम पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह

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बीजेपी के पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक पर गंभीर आरोप लगाए हैं। मानवेंद्र सिंह का आरोप है कि खटीक आपराधिक तत्वों के साथ मिलकर खनन माफिया को संरक्षण दे रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खटीक की बर्खास्तगी की मांग तक कर डाली है। 

केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक ने इस पर पलटवार करते हुए कहा, "मुझ पर आरोप लगाकर बर्रैया के छत्ते में हाथ डाला है, अब तैयार रहें।" खटीक ने सिंह के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा, "अगर कोई एक भी आरोप सिद्ध कर दे, तो मैं सजा भुगतने के लिए तैयार हूं।" खटीक का मानना है कि अवैध कारोबार रोकने के लिए प्रशासन को दिए गए उनके आदेश के कारण मानवेंद्र सिंह उनसे नाराज हैं।

वहीं, छतरपुर विधायक व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष ललिता यादव ने केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार पर कांग्रेसियों का पक्ष लेने और विधायकों के काम में हस्तक्षेप के आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि मंत्री ने कांग्रेस के एजेंट को सांसद प्रतिनिधि बगया। मंत्री वीरेंद्र ने कहा, कथरी ओढ़कर घी पीने वालों को शब्दों का नापतौल कर प्रयोग करना चाहिए। 

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मामला 2: राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल बनाम सांसद दर्शन सिंह चौधरी

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यह विवाद नर्मदापुरम के उदयपुरा विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा है। शिक्षक दिवस के मौके पर एक स्कूल के कार्यक्रम में राज्यमंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल का नाम सांसद दर्शन सिंह चौधरी के बाद छापा गया, इससे मंत्री नाराज हो गए। उनके समर्थकों ने इसे अपमान बताया। स्कूल प्रशासन को शिकायत की। इसके बाद रायसेन डीईओ ने स्कूल को मान्यता खत्म करने का नोटिस तक जारी कर दिया।

हालांकि, स्कूल संचालक ने माफी मांग ली थी, लेकिन इसके बावजूद नोटिस जारी किया गया। इस वर्चस्व की लड़ाई ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी। मंत्री ने फेसबुक पोस्ट में नोटिस साझा करते हुए प्रोटोकॉल का ध्यान रखने की अपील की। कांग्रेस ने भी इस मामले पर चुटकी ली। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा, "एक राज्य मंत्री का अपने ही पार्टी के सांसद से इतनी खुन्नस होना वाकई आश्चर्यजनक है।"

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मामला 3: बीजेपी सांसद जनार्दन मिश्रा बनाम विधायक सिद्धार्थ तिवारी

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रीवा का यह विवाद भी बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है। यहां सांसद जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के दिवंगत नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी पर लूट, भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी का आरोप लगाया। इससे बीजेपी विधायक और श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी भड़क उठे। उन्होंने सांसद मिश्रा को खुली चुनौती देते हुए कहा, "अगर सांसद को मुझसे कोई दिक्कत है, तो मुझसे बात करें, मेरे दादा को टारगेट करना बंद करें।"

सिद्धार्थ ने सांसद के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा, "किसी दिवंगत व्यक्ति के बारे में अभद्र टिप्पणी करना सही नहीं है।" दिलचस्प बात यह है कि सिद्धार्थ तिवारी 2023 में ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे।

बीजेपी की अंदरूनी कलह पर कांग्रेस की चुटकी

इन विवादों को देखकर कांग्रेस कैसे पीछे रह सकती थी। विपक्ष ने बीजेपी की इस अंदरूनी कलह पर तीखा तंज कसा है। उमंग सिंघार ने कहा, "बीजेपी के नेताओं की यह आपसी लड़ाई दर्शाती है कि पार्टी में किस तरह का माहौल चल रहा है।"

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क्या वाकई सब कुछ ठीक है?

अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाली बीजेपी के अंदर चल रही इन वर्चस्व की लड़ाइयों से यह साफ है सब कुछ ठीक नहीं है। नेताओं के बीच चल रही इन तकरारों ने न सिर्फ प्रदेश की राजनीति में हलचल मचाई है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बीजेपी के अंदर अनुशासन और एकजुटता वाकई कायम है? अब देखना यह है कि इन विवादों का पार्टी पर क्या असर पड़ता है और क्या इन मुद्दों का हल निकाला जा सकेगा, या फिर यह आपसी लड़ाई और तेज होती जाएगी।

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