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Photograph: (THESOOTR)
INDORE. इंदौर के 130 साल पुराने क्रिश्चियन कॉलेज में 500 करोड़ की जमीन को लेकर मामला उलझा हुआ है। इसमें चल रहे नक्शा पास कराने के खेल और कलेक्टर आफिस में चल रही जांच का खुलासा 'द सूत्र' ने किया था। अब इस मामले में एक और खुलासा 'द सूत्र' कर रहा है। इस जमीन को लेकर भले ही सरकारी जमीन माने जाने का विवाद चल रहा है, लेकिन यहां पर करोड़ों के सौदे औपचारिक रूप से हो चुके हैं।
इतने बिल्डरों से हो चुके सौदे
'द सूत्र' को मिली पुख्ता जानकारी के अनुसार कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. अमित डेविड यहां पर कमर्शियल कॉम्पलेक्स (खासकर आफिस, दुकान) को लेकर पहले ही सौदे कर चुके हैं। इंदौर के करीब 6-7 बिल्डरों से यह सौदे छोटे नहीं बल्कि करोड़ों के हुए हैं। हालांकि, नंबर एक में कागज पर यह सौदे कम बताए गए हैं लेकिन बाजार कीमत से इसमें राशि अलग से देय हुई है, जो करोड़ों में है। जबकि जमीन का स्वामित्व ही विवादों में हैं।
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सरकारी जमीन पर सौदे का मामला गंभीर
जिला प्रशासन इसे सरकारी जमीन के रूप में मान्य कर रहा है और इसी के चलते टीएंडसीपी पर भी रोक लगाई गई है। कलेक्टर कोर्ट में केस भी चल रहा है। लेकिन पर्दे के पीछे सरकारी मानी जा रही इस जमीन पर इंदौर के कई बिल्डर के साथ कागजों पर डॉ. डेविड सौदे कर चुके हैं। नियम के अनुसार यह धोखाधड़ी के रूप में आता है, बिल्डर के साथ भी और शासन के साथ भी। क्योंकि शासकीय जमीन का निजी सौदा नहीं हो सकता है।
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कमिश्नर संजय दुबे के समय से चल रहा मामला
'द सूत्र' ने कॉलेज की पूरी फाइल निकाली है। इसके अनुसार यह पूरी कहानी टीएंडसीपी द्वारा 23 दिसंबर 2015 को इसका नक्शा पास करने से शुरू हुई थी। यह जमीन 1 दिसंबर 1887 में अस्पताल और स्कूल काम के लिए होलकर राज्य से मिली थी। यहां 1895 से कॉलेज संचालित है।
क्रिश्चियन कॉलेज इंदौर कस्बा सर्वे नंबर 407/1669/3 कुल 68.303 हेक्टेयर में से 1.702 हेक्टेयर पर बना है। इसका प्लाट नंबर 1 मुराई मोहल्ला है। जो इंडियन कनेडियन प्रेस बिटेरियन मिशन तर्फे प्रिंसीपल क्रिश्चियन कॉलेज इंदौर 1 मुराई मोहल्ला संयोगितागंज के नाम से रिकार्ड में है।
23 दिसंबर 2015 को कमर्शियल काम्पलेक्स का नक्शा टीएंडसीपी में पास हुआ। इसके बाद नक्शा संशोधन के लिए फिर से टीएडंसीप में आवेदन लगा। इसी दौरान सचिव इंडियन कनेडियन प्रेस बिटेरियन मिशन तर्फे सचिव सुधीर एस जान कालिंदी कुंज पिपल्याहाना इंदौर द्वारा शिकायत की गई। हालांकि, बाद में जान और कॉलेज के बीच समझौता हो गया।
मामला तत्कालीन संभागायुक्त संजय दुबे की कोर्ट में गया। यहां पर 20 जनवरी 2017 में संभागायुक्त कोर्ट ने टीएंडसीपी के नक्शा पास को ही गलत बताया और इसमें स्वामित्व का मुद्दा उठाया। साथ ही कलेक्टर इंदौर को इस जमीन के स्वामित्व की जांच के औपचारिक आदेश दिए। साथ ही टीएडंसीपी से पास नक्शा और संशोधन के लिए लगा आवेदन दोनों को निरस्त कर दिया।
संभागायुक्त ने साफ लिखा कि नक्शा स्वामित्व के आधार पर नहीं केवल सीमांकन रिपोर्ट के आधार पर पास कर दिया गया। जबकि जमीन तो दान में मिली थी और इसमें जमीन का उपयोग भी साफ तौर पर अस्पताल व स्कूल लिखा है, व्यावसायिक उपयोग की कहीं भी मंजूरी नहीं है। कलेक्टर इंदौर यदि पाता है कि जमीन का अलग उपयोग हो रहा है तो इस जमीन को शासकीय रूप में दर्ज करें।
मामला हाईकोर्ट गया, जहां अगस्त 2017 को बिना नोटिस दिए आदेश के चलते संभागायुक्त के आदेश को क्वैश किया गया। फिर टीएंडसीपी में नक्शा पास कराने के लिए क्रिश्चियन कॉलेज गया, लेकिन इस मामले में टीएडंसीपी ने जिला प्रशासन कलेक्टर को पत्र लिखकर अभिमत मांगा, इस पर कलेक्टर की ओर से साफ पत्र गया कि इसमें स्वामित्व का विवाद है और इसकी जांच की जा रही है। इसलिए कोई नक्शा पास नहीं किया जाए, लेकिन लगातार कॉलेज प्रबंधन द्वारा टीएंडसीपी और प्रशासन को पत्र लिखे गए। इसमें लगातार प्रशासन ने साफ लिखा कि जमीन के टाइटल को लेकर जांच हो रही है, मंजूरी अभी होल्ड की जाए।
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कलेक्टर जांच में आया शासकीय
इस मामले में इंदौर कलेक्टर शिवम वर्मा ने इसमें कमेटी बनाकर पूरी जांच कराई और इसमें आया कि जमीन शासकीय है, क्योंकि दान में मिली थी और इसमें शर्त थी कि दान/लीज की शर्तों का उल्लंघन करने पर राज्य के उत्तराधिकारी को जमीन जाएगी। यानी कि जिला प्रशासन। इस पर कलेक्टर ने टीएंडसीपी को भी पत्र लिखा और कहा कि मंजूरी नहीं दी जाए।
साथ ही राजस्व संहिता की धारा 182 के तहत कॉलेज प्रबंधन को भी नोटिस गया और जमीन को वापस शासन में निहित करने के लिए कलेक्टर कोर्ट में केस भी शुरू किया गया। इस पर कॉलेज प्रबंधन ने पहले रिट पिटीशन और फिर रिट अपील दायर कर कलेक्टर की कार्रवाई को रोकने की मांग की, इस पर दोनों ही मामलों में आदेश हुआ कि अभी कलेक्टर कोर्ट से नोटिस हुआ है, सुनवाई होना है, इसमें नोटिस का जवाब दें। दोनों याचिका खारिज हो गई।
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डॉ. अमित डेविड से सीधी बात...
जमीन तो सरकारी है, फिर नक्शा पास क्यों करा रहे हैं
डेविड- जमीन दान में मिली है, आफिस, दुकान के लिए नक्शा पहले भी पास हो चुका है, इसमें संशोधन कराना था, इसके बाद यह नोटिस हो गए और प्रशासन ने मंजूरी रोक दी।
बिल्डर को तो पहले ही आप सौदे कर चुके हैं
डेविड- हां सौदे किए हैं, लेकिन इसमें कुछ छिपाने वाली बात नहीं है यह तो औपचारिक सौदे हुए हैं
सरकारी जमीन है तो यह सौदे तो धोखाधड़ी हुई
डेविड- नहीं धोखाधड़ी कैसी, नक्शा पहले पास हुआ था, सौदे किए, नहीं पूरे हुए तो राशि भी लौटा दी है हमने।
अब आगे क्या कर रहे हैं
डेविड- कलेक्टर कोर्ट में केस चल रहा है, वहां हम सारे दस्तावेज के साथ जवाब दे रहे हैं। यह जमीन सरकारी नहीं है, हमे दान में मिली है और कॉलेज की है।
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कलेक्टर के टीएंडसीपी पत्र में यह लिखा है
कलेक्टर ने जांच रिपोर्ट के आधार पर पाया कि दस्तावेज दानपत्र , हिस्ट्री आफ यूएनसीआई आदि में है कि यह भूमि महाराजा होलकर द्वारा 1 दिसंबर 1887 को कुछ शर्तों के साथ बिना रेंट अनुदान के दी गई। शर्तों के तहत भूमि उपयोग केवल विद्यालय व महिला अस्पताल के लिए किए जाने का प्रावधान था। जब तक यह उपयोग होगा मिशन द्वारा उपयोग किया जाता रहेगा और समाप्त होने पर भूमि वापस महारानी या उसके उत्तराधिकारी द्वारा ली जा सकेगी। कलेक्टर की जांच में आया कि यहां महिला अस्पताल नहीं है और कॉलेज भी समाप्ति की ओर है, ऐसे में संस्था का मूल उद्देश्य खत्म हो चुका है।
अब जमीन भी वापस लेंगे
कलेक्टर ने पत्र में ही लिखा है कि महाराज के उत्तराधिकार के तौर पर अब मप्र शासन है ऐसे में जमीन शासन की होकर शासकीय है। इसलिए प्रोफेशनल आफिसेस, उपयोग के लिए किसी प्रकार की नक्शा मंजूरी नहीं दी जाए। साथ ही जमीन वापस लेने के लिए प्रकरण चल रहा है।
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