कलेक्टर-कमिश्नर कान्फ्रेंस: बालाघाट कलेक्टर का इनोवेशन, गूगल अर्थ की मदद से बता रहे कब्जे का सत्यापन

बालाघाट जिले में वन अधिकार पट्टों का वितरण गूगल अर्थ का उपयोग करके किया गया है। इस प्रक्रिया में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कब्जे का सत्यापन किया गया और पात्र आवेदनों को ग्राम सभा के अनुमोदन के बाद वन मित्र पोर्टल पर दर्ज किया गया।

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (THESOOTR)

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भोपाल में कलेक्टर-कमिश्नर कान्फ्रेंसबालाघाट जिले में वन अधिकार प्रमाणपत्र वितरण की एक नई और तकनीकी पहल शुरू की गई है, जिसमें गूगल अर्थ (Google Earth) और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग कर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कब्जे का सत्यापन किया गया है।

बालाघाट कलेक्टर मृणाल मीना के नेतृत्व में जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने मिलकर वन अधिकार पट्टों का वितरण किया। पात्र आवेदनों को ग्राम सभा और ग्राम वन अधिकार समिति से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद वन मित्र पोर्टल पर दर्ज किया गया। इस योजना में 130 व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) और 218 सामुदायिक वन अधिकार (CFR) दावों को मान्यता दी गई।

बालाघाट जिले में वन अधिकार प्रमाणपत्र (Forest Rights Certificate) के वितरण की प्रक्रिया को अत्यधिक व्यवस्थित और तकनीकी रूप से मजबूत किया गया है। इस योजना में कलेक्टर बालाघाट के नेतृत्व में जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने मिलकर नक्सल प्रभावित गांवों में वन अधिकार पट्टों का वितरण किया। यह प्रक्रिया गूगल अर्थ (Google Earth) और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करके की गई, जिससे कब्जे का सत्यापन सटीक और प्रमाणिक रूप से हुआ।

सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग

गूगल अर्थ (Google Earth) का उपयोग और सैटेलाइट इमेजरी (Satellite Imagery) के माध्यम से 1985 से 2015 तक के समय में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के कब्जे का गूगल अर्थ सत्यापन किया गया। यह एक अत्याधुनिक तकनीकी कदम था, जिसमें पिछले वर्षों की उपग्रह तस्वीरों का विश्लेषण करके यह सुनिश्चित किया गया कि जमीन पर कब्जा वैध है या नहीं।

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वन मित्र पोर्टल का उपयोग

वन अधिकार पट्टों के वितरण के लिए पात्र आवेदनों को ग्राम सभा (Gram Sabha) और ग्राम वन अधिकार समिति (Gram Forest Rights Committee) से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद वन मित्र पोर्टल (Van Mitra Portal) पर दर्ज किया गया। इस प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए जिला और उपखंड स्तर पर साप्ताहिक बैठकों का आयोजन किया गया, ताकि सभी दावों की सही जांच हो सके।

वन अधिकारों की मान्यता

इस योजना में कुल 130 व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR - Individual Forest Rights) और 218 सामुदायिक वन अधिकार (CFR - Community Forest Rights) दावों को मान्यता दी गई। यह कदम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जनसामान्य को अपने वन अधिकारों की पहचान दिलाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।

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प्रशासनिक सहयोग

मध्यप्रदेश के बालाघाट कलेक्टर मृणाल मीना के नेतृत्व में जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन का सहयोग इस योजना को सफल बनाने में महत्वपूर्ण रहा। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों के बावजूद, प्रशासन ने मिलकर वन अधिकार पट्टों का वितरण सुनिश्चित किया। कलेक्टर की कार्ययोजना ने एक नई मिसाल कायम की, जिसमें प्रशासन ने तकनीकी और सामाजिक दोनों पहलुओं को संतुलित किया।

स्मार्ट टेक्नोलॉजी और प्रशासन का सहयोग

गूगल अर्थ और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल प्रशासन की स्मार्ट सोच को दर्शाता है। इस तकनीकी सहयोग के माध्यम से सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति को बढ़ाया और क्षेत्रीय अधिकारों का वितरण सही तरीके से सुनिश्चित किया। यह योजना न केवल वन अधिकारों के वितरण में मददगार साबित हुई, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को भी बढ़ावा दिया।

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स्थानीय समुदायों का सहयोग...

ग्राम सभा और वन अधिकार समितियों का रोल

वन अधिकार पट्टों के वितरण में ग्राम सभा और ग्राम वन अधिकार समितियों का अहम योगदान रहा। इन समितियों ने आवेदनों का सही तरीके से अनुमोदन किया और सुनिश्चित किया कि वितरण प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की धांधली न हो। इस प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों ने सक्रिय रूप से भाग लिया, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव आया।

सामुदायिक वन अधिकारों का महत्व

सामुदायिक वन अधिकारों (CFR) की मान्यता ने गांवों में सामूहिक जिम्मेदारी और प्रबंधन को बढ़ावा दिया। इससे स्थानीय समुदायों को वन संसाधनों के संरक्षण और उनके उचित उपयोग का अधिकार मिला, जो पर्यावरणीय संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष: यह पहल न केवल बालाघाट जिले के लिए एक बड़ा कदम है, बल्कि यह पूरे देश में तकनीकी उपयोग और प्रशासनिक दक्षता को एक नई दिशा देने का उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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