भोपाल पर काबिज होने 35 साल से तरस रही कांग्रेस का नया कार्ड, कायस्थ-मुस्लिम वोटर क्या लगाएंगे नैया पार

1989 के बाद से ही कांग्रेस भोपाल लोकसभा सीट पर काबिज नहीं हो पा रही और बीजेपी ने इसे अपना अभेद किला बना लिया है। प्रदेश की राजधानी पर मोदी लहर के बीच क्या कांग्रेस कोई बड़ा उलटफेर कर पाएगी या इस बार फिर उसके लिए भोपाल सपना ही बनकर रह जाएगा।

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Rahul Garhwal
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Congress is now dependent on Kayastha Muslim voters to win Bhopal Lok Sabha seat
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Bhopal Lok Sabha Seat

संजय शर्मा, BHOPAL. लोकसभा चुनाव में वैसे तो प्रदेश की हर सीट पर मुकाबला तगड़ा है। वजह है मोदी की 400 पार की अपील के चलते बीजेपी में सभी 29 सीटें जीतने का जूनून। लेकिन साल 1989 से लगातार जीत रही बीजेपी का गढ़ बन चुकी भोपाल लोकसभा का चुनाव कुछ ज्यादा रोचक होने जा रहा है। इस सीट पर दोनों दलों से खास चर्चित चेहरे तो मैदान में नहीं हैं, फिर भी कांग्रेस ने कायस्थ उम्मीदवार को टिकट देकर बीजेपी के सामने चुनौती पेश कर दी है। आखिर क्या वजह है जिस पर 1989 के बाद से ही कांग्रेस इस सीट पर काबिज नहीं हो पा रही और बीजेपी ने इसे अपना अभेद किला बना लिया है। प्रदेश की राजधानी पर मोदी लहर के बीच क्या कांग्रेस कोई बड़ा उलटफेर कर पाएगी या इस बार फिर उसके लिए भोपाल सपना ही बनकर रह जाएगा।

भोपाल लोकसभा का चुनावी गणित

भोपाल लोकसभा क्षेत्र की तासीर और चुनावी गणित कैसा है। भोपाल की 8 विधानसभाओं में 24 लाख से ज्यादा वोटर हैं। इनमें मुस्लिम, कायस्थ और ब्राह्मण वोटर निर्णायक हैं। यानी मुस्लिम 5 लाख, ब्राह्मण साढ़े 3 लाख और कायस्थ वोटर ढाई लाख से ज्यादा। ओबीसी, सिंधी, एससी-एसटी वोटरों की संख्या 8 लाख से ज्यादा है, लेकिन ये अलग-अलग खेमों में बंटे हैं। इस वजह से चुनावी नतीजों पर इनका खास असर नजर नहीं आता। 

लोकसभा चुनाव में भोपाल का मुकाबला रोचक

बात बीजेपी-कांग्रेस के चुनावी मैनेजमेंट की है, जिसकी वजह से इस लोकसभा चुनाव में भोपाल का मुकाबला रोचक माना जा रहा है। भोपाल लोकसभा से बीजेपी ने हर बार की तरह फिर चेहरा बदला है। यहां से पूर्व महापौर आलोक शर्मा को बीजेपी ने मैदान में उतारा है। आलोक बीजेपी के टिकट पर भोपाल उत्तर विधानसभा सीट पर दो चुनाव हार चुके हैं, जो मुस्लिम बाहुल्य वाली सीट है। लेकिन बीजेपी साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण और आलोक के जाने-पहचाने चेहरे के सहारे चुनाव जीतने की रणनीति बना रही है। उसे ब्राह्मण समाज के साढ़े 3 लाख वोटों के अलावा सिंधी, ओबीसी से थोकबंद वोट मिलने की उम्मीद है। 

क्या ध्रुवीकरण का जाल काटेगा कायस्थ-मुस्लिम कार्ड

कांग्रेस ने इस बार बीजेपी के वोटों के ध्रुवीकरण के जाल को काटने के लिए कायस्थ कार्ड का सहारा लिया है। इस सीट पर कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव को टिकट दिया है। जाने-माने वकील और लम्बे समय संगठन के लिए काम कर रहे अरुण कायस्थ समाज में सीधा प्रभाव रखते हैं। भोपाल में ढाई लाख कायस्थ वोटर हैं। वहीं कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक यानी मुस्लिम कम्युनिटी के वोट 5 लाख से ज्यादा हैं। इसके अलावा कांग्रेस अपने ओबीसी और ब्राह्मण नेताओं के सहारे इन वर्गों से भी बीजेपी के वोटरों में सेंधमारी की कोशिश कर रही है। कांग्रेस युवा वर्ग को भी अपने साथ लाने के लिए जोर लगा रही है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में ऐसा करना कांग्रेस के लिए आसान नजर नहीं आता। 

2019 में बीजेपी के मुकाबले आधा था कांग्रेस का वोट शेयर

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह को उम्मीदवार बनाया था। तब भोपाल में 65.65 फीसदी मतदान हुआ था। इसमें बीजेपी कैंडिडेट प्रज्ञा सिंह को 8 लाख 66 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। वहीं पूर्व सीएम और दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह केवल 5 लाख 1 हजार वोट ही हासिल कर पाए थे। प्रज्ञा सिंह का वोट शेयर 61.54 फीसदी रहा था, जिसके मुकाबले कांग्रेस उम्मीदवार दिग्गी को केवल 35.63% फीसदी वोट ही मिले थे।

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कांग्रेस के लिए इतनी मुश्किल क्यों है भोपाल सीट ?

भोपाल सीट साल 1989 तक कांग्रेस के पास रही और यहां से पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा जैसे नेता दो-दो बार चुनाव जीतकर सांसद बनते रहे। 1984 के कांग्रेस के टिकट पर केएन प्रधान आखिरी बार भोपाल सीट से सांसद बने थे, लेकिन उसके बाद यहां कांग्रेस की हालत पतली होती गई। हार का अंतर भी हर लोकसभा चुनाव में बढ़ता चला गया। साल 1991 में यहां से बीजेपी के सुशीलचन्द्र वर्मा सांसद बने तब बीजेपी की लीड 1 लाख वोट थी। वर्मा बीजेपी के टिकट पर साल 1998 तक लगातार जीतते रहे और जीत का अंतर बढ़ता रहा। 1999 में उमा भारती ने कांग्रेस के बड़े नेता सुरेश पचौरी को हराया। 2004 में पूर्व सीएम और बीजेपी उम्मीदवार कैलाश जोशी 3 लाख वोटों से जीते। जोशी साल 2009 में भी भोपाल से सांसद बने। 2014 और 2019 के चुनाव में भी भोपाल पर बीजेपी का ही कब्जा बना रहा।

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