हरीश दिवेकर, BHOPAL. बस आपको चंद घंटे का इंतजार और करना है। इसके बाद मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में कांग्रेस (Congress) दावेदारों की सूची भी सामने होगी। राहुल गांधी की यात्रा मध्य प्रदेश से गुजरेगी और उधर, कांग्रेस बड़ी तैयारियों में जुट जाएगी। इस बार दावेदारों को लेकर कांग्रेस की चुनावी लैबोरेटरी में भी कई नए प्रयोग होने जा रहे हैं। ये बात और है कि इस प्रयोग का मूल कैमिकल बीजेपी की चुनावी लैब से लिया गया है। इस उम्मीद के साथ की जो प्रयोग बीजेपी में सफल रहा वो कांग्रेस को भी कामयाबी देगा, क्योंकि अब कांग्रेस का दिल भी मांग रहा है कुछ मोर। इसे आप पार्टी का कॉन्फिडेंस कहें या ओवर कॉन्फिडेंस, लेकिन कांग्रेस की कोशिश है वो छिंदवाड़ा भी अपने पास रखे साथ ही दो से तीन सीटें भी बीजेपी से झटक ले। ये कोशिश सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ में भी है। ये बात और है कि छत्तीसगढ़ के कुछ कांग्रेसी दिग्गज ही इस मामले में पीछे हो रहे हैं।
बीजेपी के पास 28 सीटें, जबकि कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा में काबिज
एक नजर लोकसभा चुनाव के नतीजों पर पहले डाल लेते हैं। मध्यप्रदेश में बीजेपी के पास 28 सीटें हैं और कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर काबिज है, वो है छिंदवाड़ा। इस सीट पर बीजेपी की एकमात्र उम्मीद हैं कमलनाथ। जो जीत दिला सके तो सीट कांग्रेस की होगी वर्ना ये भी बीजेपी के खाते में ही चली जाएगी। कांग्रेस के लिए छिंदवाड़ा बचाए रखना ही एक टेढ़ी खीर साबित हो रहा है और उसकी नजर भिंड, धार और झाबुआ की सीटों पर भी जमी है। कांग्रेस को उम्मीद है कि थोड़ी बहुत सोशल इंजीनियरिंग और थोड़े बहुत ठीक ठाक चेहरे के भरोसे वो ये सीट जीत सकती है।
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छत्तीसगढ़ में भी प्रत्याशी चयन में बीजेपी ने बाजी मारी
छत्तीसगढ़ में भी उम्मीदें यही हैं। यहां कि 11 में से दो सीटें कांग्रेस के खाते में है। बीजेपी छत्तीसगढ़ की सभी सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर चुकी है। प्रत्याशी डिक्लेयर करने के मामले में बीजेपी ने इस बार भी बाजी मार ली है। और, कांग्रेस पर प्रत्याशी चयन का दबाव बढ़ गया है। हालांकि, ये काम इतना आसान नहीं है। खासतौर से मध्य प्रदेश में जहां जीतू पटवारी कार्यकर्ता और नेताओं के बीच इतनी दमदार छवि नहीं बना सके हैं कि बड़े चेहरों को जीत के लिए आश्वस्त कर मैदान में उतार सकें।
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बीजेपी को फॉलो करेगी कांग्रेस
फिलहाल, कुछ बेहतर करने की चाह में कांग्रेस पूरी तरह से बीजेपी को फॉलो करने पर अमादा हो चुकी है। लिहाजा इस बार दांव लगाने की तैयारी है ऐसे बड़े चेहरों पर जो भले ही विधानसभा चुनाव हार चुके हों, लेकिन क्षेत्र में जाने पहचाने हों और जीत के करीब ले जा सकते हों। इसके लिए मंथन तो वैसे चल ही रहा है कुछ देर में मंथन से कलश भी निकलेगा ही। उस कलश में कांग्रेस के लिए क्या होगा विष या अमृत ये देखने वाली बात होगी। फिलहाल आपको बताता हूं कि वो कौन से हारे हुए चेहरे हैं, जिन पर कांग्रेस बड़ा दांव लगा सकती है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों ही जगहों पर।
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दिग्विजय सिंह को राजगढ़ से चुनाव में उतार सकती है कांग्रेस
अगर कांग्रेस की बैठक में इस बात पर सब एकमत हो जाते हैं कि दिग्गजों को ही चुनावी कमान सौंपी जाए तो एक नाम दिग्विजय सिंह का हो सकता है। जिन्हें कांग्रेस राजगढ़ से चुनाव लड़वा सकती है। इसके अलावा कमलनाथ के खासमखास सज्जन सिंह वर्मा देवास का जिम्मा संभाल सकते हैं। उज्जैन से कांग्रेस के पास दो चेहरे हैं विधायक महेश परमार और पूर्व विधायक रामलाल मालवीय। जिनमें से किसी एक को चुनावी मैदान की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। हारे हुए चेहरों में तरूण भनोट का नाम भी शामिल है। उन्हें जबलपुर की सीट से टिकट दिया जा सकता है। इसके अलावा सतना में सेफ चेहरा चुनते हुए अजय सिंह को ही मैदान में उतारने की संभावनाएं हैं। सीधी से कमलेश्वर पटेल, खंडवा से अरूण यादव और रतलाम झाबुआ की सीट पर कांतिलाल भूरिया को ही मौका मिल सकता है। खरगोन में दो नाम आगे चल रहे हैं- एक झूमा सोलंकी और दूसरा बाला बच्चन।
गोविंद सिंह मुरैना में मैदान संभाल सकते हैं
चंबल के दिग्गज और दिग्विजय सिंह के करीबी गोविंद सिंह मुरैना सीट से टिकट हासिल कर सकते हैं। हालांकि यहां से कांग्रेस को ऐसे चेहरे की तलाश है जो बीजेपी के ठाकुर चेहरे को टक्कर दे सके। नाथ परिवार पर भी कांग्रेस बड़ा दांव खेल सकती है। मुमकिन है कि नकुलनाथ छिंदवाड़ा से लड़ें और कमलनाथ को बालाघाट का टिकट दे दिया जाए।
छत्तीसगढ़ में भूपेश और सिंहदेव समेत दिग्गज चुनाव लड़ने के मूड में नहीं
छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव जैसे चेहरों को टिकट देना चाहिए, लेकिन खबरों का बाजार वहां कुछ और अटकलों से भरा पड़ा है। खबर है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता भी लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है। कांग्रेस पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव सीट से चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है, लेकिन उन्होंने खुलकर प्रदेश की राजनीति में रहने की बात कही है। पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव को बिलासपुर या कोरबा से चुनाव लड़ाने पर चर्चा हुई थी। लेकिन बताया जाता है कि टीएस सिंह देव चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है। इसके अलावा, कांग्रेस विधायक पूर्व मंत्री अनिला भेड़िया को कांकेर से चुनाव लड़ाने की सोच रही है, लेकिन वो भी इंटरेस्टेड नहीं है। पूर्व मंत्री शिव डहरिया को भी पार्टी जांजगीर सीट से चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है। ये मौका भूपेश बघेल कैबिनेट में मंत्री रहे नेताओं को भी दिया जा सकता है। हालांकि वो भी इससे इंकार कर चुके हैं। इस इंकार की दो वजह मानी जा रही है। एक तो ये कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस कभी भी बंपर सीटें नहीं जीत सकी। लिहाजा नेता एक हार का दाग और नहीं लेना चाहते हैं। दूसरी वजह है ईडी, सीबीआई के छापों का डर। सबको डर है कि सत्ता में आते ही कहीं उन पर भी छापेमारी की कार्रवाई शुरू ना हो जाए।
गुना में सिंधिया के सामने कांग्रेस को यादव कैंडिडेट की तलाश
हारे चेहरों को तलाश कर दांव खेलने के साथ ही कांग्रेस जातिगत समीकरणों पर भी ध्यान देने की कोशिश में है। जिसके तहत गुना सीट से किसी यादव को आगे बढ़ाने की कोशिश है। यहां से बीजेपी ने केपी यादव का टिकट काटकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट दिया है। अब अगर दमदार यादव कैंडिडेट होता है तो कांग्रेस के पक्ष में कुछ बात बन सकती है। दमोह सीट से कांग्रेस किसी लोधी उम्मीदवार को ही चुन सकती है। बीजेपी की तरह कांग्रेस की भी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा ओबीसी चेहरे मैदान में उतारे जा सकें। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि बीजेपी को बीजेपी की ही रणनीति से मात देना कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित होता है या इस चाल से भी वो मुंह की खाती है।