धीमी गति से पिछड़ा अस्पताल भवनों का निर्माण, पुराने जर्जर भवनों में चल रहे विभाग
मध्य प्रदेश में 2000 से ज्यादा अस्पतालों में पास भवन नहीं है। इनमें से ज्यादातर सीएचसी, पीएचसी और मिनी पीएचसी पुराने जर्जर या दूसरे विभागों के खाली भवनों में चल रहे हैं।
BHOPAL. स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के दावे भले ही सरकार कर रही है लेकिन अब भी प्रदेश में दो हजार से ज्यादा अस्पतालों में पास अपने भवन तक नहीं है। इनमें से ज्यादातर सीएचसी, पीएचसी और मिनी पीएचसी पुराने जर्जर या दूसरे विभागों के खाली भवनों में चल रहे हैं। वहीं सरकार द्वारा स्वीकृत 2037 अस्पताल भवनों में से अब तक केवल 221 ही तैयार हुए हैं जबकि 1600 से ज्यादा का निर्माण अधूरा पड़ा है जबकि समय बीत चुका है।
अस्पताल भवनों के निर्माण को लेकर सरकारी मशीनरी के ढिलमुल रवैए की वजह से 30 बड़े भवनों के निर्माण का काम अब भी टेंडर की प्रक्रिया में ही उलझा है। ये हालात तब हैं जबकि प्रदेश के डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ल इन कामों की समीक्षा के दौरान नाराजगी तक जता चुके हैं। सरकार की चेतावनी और मंत्री की नाराजगी के बाद भी अस्पताल भवनों के निर्माण ने गति नहीं पकड़ी है और अब मानसून सीजन के चलते इन कामों का चार से छह महीने और पिछड़ना तय माना जा रहा है।
मंत्री की नाराजगी का भी नहीं दिखा असर
प्रदेश के स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा स्वास्थ्य विभाग को नए भवनों की स्वीकृति दी गई है। ऐसे करीब 2037 अस्पताल भवनों का निर्माण कराया जाना है जहां अस्पताल दूसरे विभाग या जर्जर भवनों में संचालित हैं। अस्पताल भवनों का निर्माण तय समय में पूरा करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला के निर्देशन में राज्य स्तर पर इनकी प्रगति की पाक्षिक समीक्षा की व्यवस्था भी की गई है।
समय बीतने के बावजूद 1500 भवन अधूरे
अंचल के सीएचसी, पीएचसी और मिनी पीएचसी अस्पतालों के भवनों का काम बेहद धीमी गति से हो रहा है। धीमे निर्माण की वजह से प्रदेश के 1790 भवनहीन अस्पतालों में से केवल 118 के भवन ही तैयार हुए हैं। वहीं अब भी 1500 से ज्यादा भवनों का निर्माण अभी भी अधूरा ही है। निर्माण एजेंसियों पर अधिकारियों की पकड़ मजबूत नहीं होने के कारण ठेकेदार बार_बार निर्माण पूरा करने का समय बढ़ा रहे हैं।
अस्पताल भवनों के निर्माण में हो रही लेटलतीफी पर सरकार और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा कई बार नाराजगी जताई जा चुकी है। प्रदेश में भवनहीन अस्पतालों को संसाधनों से लैस नए भवन उपलब्ध कराने के लिए 15वे वित्त आयोग के जरिए 4600 करोड़ की राशि उपलब्ध कराई गई है। इसमें से अब तक 2540 करोड़ आयोग से प्राप्त हो चुके हैं जिनमें से स्वास्थ्य विभाग निर्माण कार्यों पर 1487 करोड़ खर्च भी कर चुका है।
अस्पताल भवनों के निर्माण की गति वैसे तो पूरे प्रदेश में भी बेहद धीमी है लेकिन सबसे चिंताजनक स्थिति प्रदेश के मुखिया डॉ.मोहन यादव और डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल के क्षेत्र में है। डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल के पास स्वास्थ्य विभाग की भी जिम्मेदारी है इसके बावजूद उनके प्रभाव क्षेत्र रीवा संभाग के जिलों में स्वीकृत 277 भवनों में से अब तक केवल 27 ही बन सके हैं। शेष 245 अस्पताल भवनों का निर्माण अब भी अधूरा पड़ा है। वहीं मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के उज्जैन संभाग में 230 अस्पताल भवन स्वीकृत हुए हैं इनमें से केवल 7 ही फिलहाल बन पाए हैं। अब भी 194 अधूरे पड़े हैं और बाकी भवनों का मामला टेंडर प्रक्रिया में उलझा है।