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Photograph: (THESOOTR)
मध्यप्रदेश के खंडवा जिला न्यायालय में पदस्थ एक महिला मजिस्ट्रेट से अभद्रता कर उन्हें "चपरासी" कहने वाले अधिवक्ता हृदेश वाजपेई अब हाईकोर्ट की सख्ती के घेरे में हैं।
सोमवार को वे जबलपुर स्थित मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच के सामने पेश हुए। अदालत ने उनसे इस गंभीर आरोप पर जवाब मांगा, लेकिन अधिवक्ता ने न तो माफी मांगी और न ही आरोप स्वीकार किए।
वकील ने अपनी पारिवारिक परिस्थितियों का हवाला देते हुए समय मांगा, जिस पर बेंच ने उन्हें चार सप्ताह का वक्त दिया है। अब मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी।
खंडवा जिला कोर्ट से हाईकोर्ट तक पहुंचा मामला
पूरा विवाद 22 अप्रैल 2025 का है, जब खंडवा जिला न्यायालय की एक महिला मजिस्ट्रेट की अदालत में चेक बाउंस के मामले की सुनवाई चल रही थी।
पहले राउंड में पुकार लगवाने के बावजूद अधिवक्ता हृदेश वाजपेई अदालत में उपस्थित नहीं हुए। जब दोबारा पुकार पर वे पहुंचे तो महिला मजिस्ट्रेट ने उनसे तलवाना पेश करने को कहा। इस पर वाजपेई नाराज हो गए और महिला मजिस्ट्रेट को चपरासी कहा।
इस अभद्र व्यवहार की जानकारी खंडवा के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने हाईकोर्ट को भेजे रेफ्रेंस में दी थी। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अधिवक्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना केस दर्ज कर लिया।
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कोर्ट में पेश होकर भी नहीं मांगी माफी
23 सितंबर की सुनवाई पर वाजपेई जैसे ही हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के सामने पहुंचे, उन्होंने 90 डिग्री झुककर अभिवादन किया। उस समय लगा कि वे अपने ऊपर लगे आरोपों के लिए खेद व्यक्त करेंगे और माफी मांगेंगे, लेकिन कोर्ट के सामने उनका रुख बिल्कुल अलग रहा।
अधिवक्ता वाजपेई ने कहा कि उन पर लगे सभी आरोप झूठे और निराधार हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी दादी का निधन हो गया है, फिर भी वे अंतिम संस्कार में शामिल न होकर कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए जबलपुर पहुंचे हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि यदि वे ऐसी स्थिति में आवेदन देकर स्थगन का अनुरोध करते, तो अदालत इसे स्वीकार करती।
वकील ने जवाब देने मांगा हाईकोर्ट से समय
बेंच ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि जिला न्यायाधीश की ओर से भेजा गया रेफ्रेंस सीधे तौर पर अदालत की अवमानना है और इसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या अधिवक्ता ने अपने ऊपर लगे आरोपों पर अब तक कोई लिखित जवाब दाखिल किया है। इस पर वाजपेई ने अपनी मां की तबीयत का हवाला देते हुए अतिरिक्त समय की मांग की। उनकी मांग पर बेंच ने उन्हें चार सप्ताह का समय दिया।
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अब अगली सुनवाई पर टिकी निगाहें
हाईकोर्ट ने साफ किया है कि यह मामला केवल आरोपों तक सीमित नहीं है, बल्कि न्यायिक गरिमा और अदालत के सम्मान से जुड़ा हुआ है। अब देखना यह होगा कि आगामी 10 नवंबर की सुनवाई में अधिवक्ता लिखित जवाब के साथ अदालत के सामने क्या रुख अपनाते हैं। क्या वे इन आरोपों का खंडन करते हुए जवाब देते हैं या फिर माफी मांगते हैं या उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है।
इस मामले ने पूरे न्यायिक वर्ग का ध्यान खींचा है, क्योंकि किसी जज को "चपरासी" कहकर अपमानित करना न केवल पेशेवर आचार संहिता का उल्लंघन है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा पर भी सीधा प्रहार है।