BHOPAL. कृषि प्रधान राज्य में किसानों के सहयोग के लिए बनाई गई कृषि सहकारी समितियां कुप्रबंधन की चपेट में हैं। हिसाब-किताब गड़बड़ाने से ज्यादातर समितियां घाटे के बोझ तले दबती जा रही हैं और किसान भी कर्ज न चुकाने के दागी हो रहे हैं। समितियों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने की वजह से उनके द्वारा संचालित खाद-बीज वितरण, कृषि उपज की खरीदी और अल्पावधि ऋण जैसी सुविधाओं से भी किसान वंचित हो रहे हैं। समितियों की इस बदहाली को दूर करने के अपने प्रयासों में विफल रही सरकार अब निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ मिलकर योजना तैयार कर रही है।
मध्यप्रदेश में 4539 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां यानी पैक्स हैं। इनमें से ज्यादातर में वित्तीय प्रबंधन ठीक न होने से घाटे में जा रही हैं। सहकारिता विभाग के मुताबिक इन समितियों में से करीब 50 फीसदी नुकसान में चल रही हैं। इनकी संख्या दो हजार से कहीं ज्यादा है। घाटे से इन कृषि सहकारी समितियों को उबारने के लिए सरकार कई बार आर्थिक मदद कर चुकी है। समितियों में सरकारी अंशपूंजी भी लगातार बढ़ाई जा रही है और कई नवाचार भी लागू किए जा रहे हैं। इसके बावजूद समितियां ढांचागत सुधार से कहीं दूर हैं।
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किसान सुविधा और कर्मचारी वेतन से वंचित
सहकारिता विभाग के अधीन प्रदेश में साढ़े चार हजार से ज्यादा कृषि साख सहकारी समितियां कार्यरत हैं। इन समितियों से लाखों किसान जुड़े हुए हैं। समितियों द्वारा इन किसानों को अनुदान पर खाद, बीज, कृषि संबंधित दूसरी जरूरी सामग्री उपलब्ध कराई जाती है। कृषि सीजन के दौरान खाद_बीज के लिए इन समितियों से किसानों को अल्पावधि ऋण भी उपलब्ध हो जाता है। इन समितियों के जरिए उचित मूल्य की राशन दुकानों का संचालन भी किया जाता है। समितियों को वितरण के बदले कमीशन मिलता है लेकिन इससे ज्यादा कमाई नहीं होती। बीते सालों में किसानों से वसूली में पिछड़ने से समितियों की आय में न केवल गिरावट आई है बल्कि घाटा भी उठाना पड़ा है। इस वजह से कई समितियों का काम ठप हो गया है और अब वे किसानों को सुविधाएं भी मुहैया नहीं करा पा रही हैं। वहीं घाटे के कारण समितियों के कर्मचारियों को भी नियमित वेतन नहीं मिल रहा।
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वित्तीय प्रबंधन सुधारने कंपनियों से अनुबंध
गौरतलब है कि प्रदेश में सहकारी समितियां खाद-बीज बांटने, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपार्जन के साथ किसानों को अल्पावधि कृषि ऋण देने का काम करती हैं। कुछ समितियां उचित मूल्य की राशन दुकानों का संचालन भी करती हैं। इन गतिविधियों के संचालन से जो कमीशन मिलता है उससे न केवल इनका खर्च ही चल पा रहा है। सरकार की अस्थिर नीति और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण अल्पावधि ऋण की वसूली में भी समितियां काफी पिछड़ चुकी हैं। घाटे ने समितियों का बुनियादी ढांचा हिला दिया है। समितियों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार के स्तर पर कई बार आर्थिक मदद की जा चुकी है। समितियों का वित्तीय प्रबंधन सुधारने अब सरकार निजी क्षेत्र की कंपनियों से अनुबंध कर रही है। इन कंपनियों की मदद से समितियों को मजबूत करने कार्ययोजना तैयार की जा रही है लेकिन ये कितनी कारगर साबित होगी ये तय नहीं है।
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