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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की युगलपीठ ने हाल ही में एक अत्यंत संवेदनशील और चर्चा में रही जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उस हस्तक्षेप याचिका को स्पष्ट शब्दों में खारिज कर दिया है, जिसमें राज्य के महाधिवक्ता और अन्य विधि अधिकारियों पर ‘अत्यधिक पेशेवर शुल्क’ लेने के आरोप लगाए गए थे। जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसे आरोप आधारहीन हैं और केवल कार्यवाही को भटकाने का प्रयास प्रतीत होते हैं।
अदालत ने इस प्रकार की याचिकाओं को न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का उदाहरण बताया और यह साफ कर दिया कि न्यायालय ऐसे तुच्छ आरोपों में समय नहीं गंवाएगा। यह मामला नर्सिंग घोटाले से जुड़ी हुई जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया, हालांकि आपको बता दे की हाईकोर्ट में महाधिवक्ता के खिलाफ कार्यवाही की मांग को लेकर एक और जनहित याचिका दायर की गई है। जिसकी सुनवाई अभी होना बाकी है।
आवेदन में की गई थी जांच और कार्रवाई की मांग
इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा आईए क्रमांक 5308/2025 के माध्यम से राहत की मांग की गई थी कि इस पूरे वित्तीय लेन-देन और पेशेवर शुल्क भुगतान की जांच की जाए और यदि कोई अनियमितता सामने आती है तो दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए, हालांकि कोर्ट ने ऐसे केवल आरोपों का पुलिंदा मानकर आवेदक को निरस्त कर दिया।
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मीडिया रिपोर्ट और विधानसभा में उठे सवाल बने आधार
याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलीलों में कहा कि यह पूरा मामला 20 मार्च 2025 को विधि और विधायी विभाग द्वारा प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य विभाग को भेजे गए एक पत्र और 19 मार्च 2025 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के बाद प्रकाश में आया। रिपोर्ट में बताया गया कि विधानसभा सत्र के दौरान यह प्रश्न उठा कि महाधिवक्ता को नर्सिंग कॉलेजों से संबंधित एक जनहित याचिका में अत्यधिक पेशेवर शुल्क दिया गया है। इतना ही नहीं, यह भी आरोप लगाया गया कि मध्य प्रदेश नर्सेज रजिस्ट्रेशन काउंसिल (MPNRC) और राज्य सरकार के अन्य संगठन भी, बिना किसी वैधानिक औचित्य के, विधि अधिकारियों को स्वतंत्र रूप से भारी-भरकम फीस दे रहे हैं।
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MPNRC स्वायत्त संस्था, इसका नहीं है सरकार से संबंध
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से जो आरोप लगाए गए हैं, वे न केवल भ्रामक हैं बल्कि अप्रासंगिक भी हैं क्योंकि महाधिवक्ता और विधि अधिकारियों को जो भी भुगतान किया गया है, वह MPNRC जैसे स्वायत्त निकायों द्वारा किया गया है, जिनका राज्य सरकार से प्रशासनिक संबंध नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि स्वायत्त निकायों को यह अधिकार है कि वे अपनी आंतरिक वित्तीय व्यवस्था के अनुसार किसी भी वकील को नियुक्त करें और उन्हें उनकी सेवाओं के बदले शुल्क दें। इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह सिद्ध हो सके कि महाधिवक्ता या अन्य विधि अधिकारियों को अनियमित या अत्यधिक भुगतान किया गया है।
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संवैधानिक प्रावधान और अन्य फैसलों के उदाहरणों का हवाला
कोर्ट ने अपने आदेश में भारत के संविधान के अनुच्छेद 165 का उल्लेख करते हुए बताया कि महाधिवक्ता राज्यपाल की इच्छा पर नियुक्त होते हैं और उन्हें वही पारिश्रमिक मिलता है जो राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसके अतिरिक्त, अदालत ने महाराष्ट्र हाईकोर्ट के 2021 के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कंगना रनौत के मुंबई स्थित कार्यालय के विध्वंस मामले में वकीलों को दी गई फीस को लेकर एक जनहित याचिका खारिज की गई थी। उस मामले में भी कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ऐसे आरोप दुर्भावना से प्रेरित होते हैं और इन्हें किसी भी मानक से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
तथ्यविहीन आरोप न्याय को प्रभावित नहीं कर सकते
हाइकोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा कि इस प्रकार के तथ्यविहीन और अटकलबाजी पर आधारित आरोप इस न्यायालय की निष्पक्ष सोच को प्रभावित नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि न तो ऐसी याचिकाएं जनहित के अनुरूप हैं, न ही ये न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा के अनुकूल। न्यायालय ने इन आरोपों को “अंधेरे में तीर चलाने” जैसा करार देते हुए कहा कि इससे सिर्फ न्यायिक समय का दुरुपयोग होता है और कार्यवाही को पटरी से उतारने का प्रयास किया जाता है।
जनहित के नाम पर न्यायालय के समय का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं
इस निर्णय ने यह साफ संदेश दिया है कि हाईकोर्ट जनहित याचिकाओं की आड़ में किए जा रहे व्यक्तिगत दुर्भावनापूर्ण प्रयासों को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। यह फैसला न केवल विधि अधिकारियों की गरिमा की रक्षा करता है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि स्वायत्त संस्थाओं को अपने संचालन में स्वतंत्रता प्राप्त है और उन्हें राज्य सरकार की हर नीति से बाध्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस आदेश के माध्यम से यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह केवल ठोस तथ्यों पर आधारित याचिकाओं को ही गंभीरता से लेगा और अन्यथा मामलों को सख्ती से खारिज करता रहेगा।
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5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला
✅ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने महाधिवक्ता और विधि अधिकारियों पर लगाए गए अत्यधिक पेशेवर शुल्क के आरोपों को खारिज किया।
✅ कोर्ट ने कहा कि यह आरोप तथ्यों से रहित हैं और केवल कार्यवाही को भटकाने का प्रयास प्रतीत होते हैं।
✅ MPNRC जैसे स्वायत्त निकायों द्वारा शुल्क का भुगतान किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
✅ कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 का हवाला देते हुए महाधिवक्ता की नियुक्ति और पारिश्रमिक की प्रक्रिया को स्पष्ट किया।
✅ यह आदेश एक सख्त संदेश था कि हाईकोर्ट जनहित की आड़ में दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं को खारिज करेगा और केवल ठोस तथ्यों पर आधारित मामलों पर विचार करेगा।
: जबलपुर न्यूज | Jabalpur News