OBC आरक्षण मामले में हाईकोर्ट सख्त, कहा- 2 हफ्ते में जवाब दे सरकार नहीं तो लगेगा जुर्माना

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ओबीसी आरक्षण देने के मुद्दे पर जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार दो सप्ताह में जवाब नहीं देती, तो उसे 15 हजार रुपए का जुर्माना भरना होगा।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ओबीसी वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के मुद्दे पर जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम चेतावनी जारी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर सरकार दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल नहीं करती, तो उसे 15 हजार रूपए का जुर्माना देना होगा। यह आदेश बुधवार को चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिविजनल बेंच ने दिया। यह निर्देश उस जनहित याचिका पर दिया गया जिसे एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस नामक संस्था द्वारा याचिका क्रमांक WP/8967/2024 के तहत दाखिल किया गया था। इस याचिका में मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण देने की मांग की गई थी।

जनसंख्या से अनुपात में नहीं मिल रहा आरक्षण का लाभ

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने अदालत को बताया कि मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की हिस्सेदारी 50.9% है, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें केवल 14% आरक्षण (जिसमें 13% विवादित है) ही प्रदान किया है।इसके विपरीत, अनुसूचित जाति (एससी) को 16% आरक्षण और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को 20% आरक्षण दिया गया है। सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण मिला है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब राज्य सरकार अन्य वर्गों को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण दे सकती है, तो ओबीसी वर्ग के साथ यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है?

याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि ओबीसी की इतनी बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद, सरकार जानबूझकर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रही है। यह न केवल संविधान में निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की अवधारणा के भी खिलाफ है।

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सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी का आरोप

याचिका में यह भी कहा गया कि "इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ" मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि सभी राज्य सरकारों को ओबीसी वर्ग की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का नियमित परीक्षण करने के लिए एक स्थायी आयोग का गठन करना चाहिए। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने इस आदेश की पूरी तरह अनदेखी की है।

किराए के भवन में संचालित ओबीसी आयोग

ओबीसी आयोग के पास अपना कोई स्थायी कार्यालय नहीं है, वह किराए के भवन में संचालित हो रहा है। आयोग को पर्याप्त शक्तियां नहीं दी गई हैं, जिससे वह ओबीसी वर्ग की समस्याओं का समाधान कर सके। याचिका में कहा गया कि तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने ओबीसी वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 50% आरक्षण दिया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की गलत व्याख्या करके ओबीसी आरक्षण के खिलाफ काम कर रही है।

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11 सुनवाई के बावजूद सरकार का टालमटोल, हाईकोर्ट नाराज

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में यह भी बताया कि इस मामले की अब तक 11 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया। इतना ही नहीं, सरकार ने इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने के लिए भी कोई याचिका दाखिल नहीं की। इससे यह साफ संकेत मिलता है कि सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाना चाहती। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि सरकार को डर है कि अगर वह जवाब दाखिल करेगी, तो उसका "ओबीसी विरोधी रवैया" जनता के सामने आ जाएगा। इस पर हाईकोर्ट ने गंभीर नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार को अब और मोहलत नहीं दी जाएगी। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करे। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो सरकार को 15 हजार रूपए का जुर्माना भरना होगा।

ओबीसी युवाओं के लिए आरक्षण का सवाल है महत्वपूर्ण

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में यह भी तर्क दिया कि ओबीसी वर्ग के लाखों युवा इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण बेरोजगारी का शिकार हो रहे हैं।सरकारी नौकरियों में अन्य वर्गों को उनकी संख्या से अधिक आरक्षण दिया गया है, लेकिन ओबीसी को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है। ओबीसी युवाओं को शिक्षा और सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ न मिलने के कारण उनका सामाजिक-आर्थिक विकास बाधित हो रहा है। अन्य राज्यों में ओबीसी आरक्षण का विस्तार किया जा रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। याचिका में कहा गया कि यदि सरकार को वास्तव में सामाजिक न्याय की परवाह है, तो उसे ओबीसी वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना चाहिए।

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समय पर नहीं दिया जवाब तो लगेगी 15 हजार की कॉस्ट

हाईकोर्ट के इस सख्त रुख के बाद अब सरकार के पास केवल दो ही विकल्प हैं या तो वह अगले दो सप्ताह में जवाब दाखिल करे या फिर 15 हजार का जुर्माना भरकर जवाब देने के लिए कुछ और वक्त ले, हालांकि जवाब तो फिर भी देना ही होगा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 जून 2025 को तय की गई है।

5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला 

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को ओबीसी आरक्षण पर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।

✅ सरकार को जवाब न देने पर 15 हजार रुपए का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी गई है।

✅ याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि ओबीसी को उनकी जनसंख्या अनुपात में आरक्षण नहीं मिल रहा है।

✅ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी का आरोप भी राज्य सरकार पर लगाया गया है।

✅ अगली सुनवाई 16 जून 2025 को होगी, जिसमें सरकार को अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा।

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