ट्रैफिक जाम पर HC का बड़ा आदेश, हाईकोर्ट से रद्दी चौकी तक फ्लाईओवर निर्माण पर सरकार से जवाब तलब

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर में बढ़ती ट्रैफिक समस्याओं को लेकर सरकार से फ्लाईओवर निर्माण पर जबाव मांगा है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला जनसुविधा और सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ा है, और इसमें अब कोई टालमटोल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर में ट्रैफिक समस्या को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा है कि वह तीन सप्ताह के भीतर यह स्पष्ट करे कि हाईकोर्ट चौराहा से लेकर रद्दी चौकी, आधारताल तक फ्लाईओवर बनाने की योजना कब और कैसे क्रियान्वित की जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यह मामला जनसुविधा और सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, और इसमें टालमटोल अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह आदेश चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा दिया गया, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिला है कि कोर्ट अब इस गंभीर मुद्दे को लेकर सरकार को जवाबदेह बनाएगी।

रोज लग रहा जानलेवा ट्रैफिक जाम

यह जनहित याचिका मुनीश सिंह, जो स्वयं एक अधिवक्ता हैं, ने दायर की है। उन्होंने कोर्ट के समक्ष यह मुद्दा रखा कि हाईकोर्ट से लेकर आधारताल तक की सड़क पर प्रतिदिन घंटों लंबा जाम लगता है, जिससे लोगों का जीवन दूभर हो गया है। जाम के कारण गंभीर बीमारियों से जूझते मरीज अस्पताल नहीं पहुंच पाते, स्कूल जाने वाले बच्चों को रोज देर होती है, और अधिवक्ता व शासकीय अधिकारी समय पर न्यायालय व कार्यालय नहीं पहुंच पाते। यह मार्ग न्यायालय, रेलवे स्टेशन, कलेक्ट्रेट सहित शहर के कई महत्वपूर्ण संस्थानों को जोड़ता है, ऐसे में ट्रैफिक जाम सिर्फ असुविधा नहीं बल्कि एक सामाजिक संकट बन चुका है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस विषय में कई बार प्रशासन को लिखित में निवेदन सौंपे गए, लेकिन किसी भी स्तर पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

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वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बताया मौलिक अधिकारों का उल्लंघन

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कोर्ट में विस्तार से बताया कि यह केवल ट्रैफिक का मामला नहीं है, बल्कि यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के हनन का गंभीर उदाहरण है। उन्होंने कोर्ट को समझाया कि नागरिकों को अनुच्छेद 19 के तहत आने-जाने की स्वतंत्रता दी गई है और अनुच्छेद 21 उन्हें जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। लेकिन लगातार जाम की स्थिति इन अधिकारों के व्यवहार में रुकावट डाल रही है। उन्होंने कोर्ट से अपील की कि ऐसे मामलों में अदालत का हस्तक्षेप अनिवार्य हो जाता है क्योंकि सरकार की निष्क्रियता जनता के बुनियादी अधिकारों का गला घोंट रही है।

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मेंडमस रिट जारी कर सरकार को बाध्य करने की मांग

अधिवक्ताओं ने यह भी आग्रह किया कि कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत मेंडमस रिट जारी करे। यह रिट एक वैधानिक आदेश होता है, जिससे सरकार को किसी कानूनी कर्तव्य का पालन करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि प्रशासन जनता की समस्याओं को बार-बार नजरअंदाज कर रहा है, तो न्यायालय का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वह आगे आकर निर्देश जारी करे। अधिवक्ताओं का कहना था कि जब तक न्यायिक आदेश नहीं दिया जाएगा, तब तक सरकार फ्लाईओवर निर्माण जैसे दीर्घकालिक समाधान को गंभीरता से नहीं लेगी।

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एडिशनल एडवोकेट जनरल ने जताई आपत्ति

राज्य सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल भरत सिंह ठाकुर ने याचिका पर आपत्ति जताते हुए इसे “सुनवाई के योग्य नहीं” बताया। उनका तर्क था कि यह एक प्रशासनिक विषय है और इसके लिए सरकार को बाध्य करना न्यायालय का कार्यक्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि जबलपुर से ही लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं, जिनसे जनता संपर्क कर सकती है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि इस याचिका को ‘कष्टकारक’ मानते हुए निरस्त कर दिया जाए। उनका यह भी कहना था कि ऐसे मामलों में अदालत के हस्तक्षेप से सरकार की स्वायत्तता प्रभावित होती है।

मौलिक अधिकारों में बाधा पर चुप नहीं रह सकती न्यायपालिका

सरकारी वकील की आपत्तियों को खारिज करते हुए खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब भी नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उपयोग में कोई बाधा उत्पन्न होती है, तब अदालत को हस्तक्षेप का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ ट्रैफिक का नहीं, बल्कि जन-स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय और जीवन स्तर से सीधा जुड़ा हुआ है। अदालत ने कहा कि सरकार अगर अपने संवैधानिक कर्तव्यों को निभाने में असफल हो रही है, तो न्यायपालिका को अपना दायित्व निभाना ही होगा। कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट जवाब मांगते हुए कहा कि तीन सप्ताह के भीतर यह बताया जाए कि फ्लाईओवर का निर्माण कब तक शुरू होगा और कितने समय में पूर्ण किया जाएगा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 17 मई 2025 को तय की गई है।

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शहरवासियों को राहत की उम्मीद, कोर्ट के आदेश से जागी नई आशा

हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद जबलपुर के नागरिकों को उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दी है। वर्षों से लोग इस रूट पर ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझ रहे हैं, आपको बता दें कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य पीठ जबलपुर के ठीक बाहर मुख्य सड़क पर यह आलम होता है कि अधिवक्ताओं सहित मुवक्किलों के वाहन खड़े करने के लिए भी जगह नहीं है, जिसके कारण लगभग आधी सड़क पार्किंग की तरह इस्तेमाल होती है। लेकिन अब तक इस पर कोई स्थायी समाधान नहीं आया। हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप से अब उम्मीद है कि प्रशासन इस दिशा में ठोस और समयबद्ध कदम उठाएगा। कई सामाजिक संगठनों और स्थानीय निवासियों ने कोर्ट के इस कदम का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि जल्द ही इस फ्लाईओवर का निर्माण कार्य शुरू होगा, जिससे शहर को एक बड़ी समस्या से राहत मिलेगी।

5 मुख्य बिंदुओं से समझें पूरा मामला 

✅ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर में ट्रैफिक समस्या के समाधान के लिए सरकार से तीन सप्ताह में फ्लाईओवर निर्माण की योजना पर जवाब मांगा है।

✅ याचिकाकर्ता ने कोर्ट में बताया कि ट्रैफिक जाम से नागरिकों का जीवन प्रभावित हो रहा है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा पर असर पड़ रहा है।

✅ कोर्ट ने राज्य सरकार की आपत्ति को खारिज करते हुए हस्तक्षेप किया, और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर सख्त कदम उठाया।

✅ फ्लाईओवर निर्माण की योजना को लेकर सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा गया कि इसे कब तक शुरू किया जाएगा।

✅ कोर्ट के आदेश से जबलपुर के नागरिकों को राहत की उम्मीद जगी है, और अब वे जल्द समाधान की उम्मीद कर रहे हैं।

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