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MP NEWS: उद्यमिता विकास केंद्र यानी सेडमैप की तत्कालीन कार्यकारी संचालक ईडी अनुराधा सिंघई को हाईकोर्ट व जिला न्यायालय क्लीन चिट दे चुका है। यही नहीं,राजधानी की एमपी नगर पुलिस ने भी उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को निराधार पाया। इसके बाद,पुलिस की याचिका पर न्यायालय ने सिंघई के विरुद्ध दो साल पहले दर्ज धोखाधड़ी के प्रकरण में खात्मा लगाया।
षड़यंत्र के तहत लगाए गए झूठे आरोप
सिंघई वर्तमान में एक स्वयं सेवी संस्था के जरिए विकासात्मक कार्य कर रही हैं,लेकिन एक षड़यंत्र के तहत उन पर लगाए गए आरोपों से निराश व दुखी भी हैं। अनुराधा ने बताया कि सेडमैप ईडी का दायित्व संभालते ही उन्होंने इसकी बिगड़ी व्यवस्था को पटरी पर लाने का जतन किया।
यही बात,सेडमैप को चारागाह बनाए हुए लोगों को रास नहीं आई। उन पर तरह-तरह के झूठे आरोप लगाए गए। उन्हें एक ऐसे मामले में अचानक निलंबित कर दिया गया,जिसके लिए वह जिम्मेदार ही नहीं थीं। एक परिवाद के आधार पर एमपी नगर थाने में उनके खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कराया गया। तो दूसरी ओर एक अन्य याचिका उनके निलंबन को लेकर हाईकोर्ट में दायर की गई।
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न्यायपालिका पर रहा पूरा भरोसा
अनुराधा ने कहा-मुझे न्यायपालिका पर हमेशा से पूरा भरोसा रहा। दोनों ही स्तर के न्यायलय से उन्हें न्याय मिला। हाईकोर्ट ने जहां उनके निलंबन व लगाए गए आरोपों को गलत ठहराया। वहीं जिला न्यायालय के आदेश पर दर्ज प्रकरण में भी पुलिस ने जांच के दौरान मुझ पर लगाए गए धोखाधड़ी के सभी आरोपों को गलत पाया। इसके बाद पुलिस ने जिला न्यायालय में प्रकरण को लेकर खात्मा रिपोर्ट दायर की। इसके आधार पर जिला न्यायालय ने भी मुझे निर्दोष करार देते हुए प्रकरण को खत्म किया। अनुराधा ने कहा कि इस तरह न्याय की जीत हुई और षड़यंत्र को पराजय का सामना करना पड़ा।
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यह है पूरा मामला
दरअसल,साल 2021 में सेडमैप ने भोपाल निवासी अनुराधा सिंघई को कार्यकारी संचालक पद पर नियुक्ति दी थी। सालभर बाद ही उनके खिलाफ सेडमैप में विरोध के स्वर उभरने लगे। उन पर गलत दस्तावेजों के आधार पर नौकरी हासिल करने के आरोप लगे। बाद में इसी मामले में दायर एक याचिका के आधार पर अनुराधा के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज किया गया।
विभागीय जांच में आवश्यक सहयोग नहीं करने के आरोप में उन्हें अचानक निलंबित कर दिया गया। इसी दौरान एक अन्य यााचिका हाईकोर्ट में भी दायर हुई,लेकिन दोनों ही जगह याचिकाकर्ताओं को करारी हार का सामना करना पड़ा।
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