कोविड-19 ड्यूटी में जान गंवाने वाले कर्मचारियों का मुआवजा, अब नहीं रोकेगी पॉजिटिव रिपोर्ट की शर्त

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कोविड-19 ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले कर्मचारियों के मुआवजे में कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। अब सेवा को असली प्रमाण माना जाएगा, जिससे प्रभावित परिवारों को राहत मिलेगी।

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Neel Tiwari
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कोविड-19 महामारी के दौरान जब अस्पतालों के बाहर लंबी कतारें थीं, लोग ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब सरकारी कर्मचारी अपने कर्तव्यों में लगे रहे। वे पूरे जोखिम के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना सेवा में जुटे रहे।  

इनमें से कई अपनी ड्यूटी निभाते हुए असमय मौत के शिकार हो गए। लेकिन उनके परिवारों को सरकारी मुआवजे से वंचित रहना पड़ा, क्योंकि सरकार ने कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट को अनिवार्य बना दिया था। अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस कठोर शर्त को खत्म कर दिया है और साफ कहा है कि सेवा ही असली प्रमाण है।

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कोरोना ड्यूटी में हुई थी राजीव उपाध्याय की मौत

यह मामला जबलपुर कलेक्टरेट के असिस्टेंट ग्रेड-3 राजीव उपाध्याय से जुड़ा है। जून 2020 में लॉकडाउन के दौरान वे लगातार प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की ड्यूटी में लगे थे। अत्यधिक तनाव और थकान के बीच अचानक उन्हें हार्टअटैक हुआ और उनकी मौत हो गई थी।

पत्नी अंजू मूर्ति उपाध्याय ने मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत मुआवजे का आवेदन किया, लेकिन यह कहते हुए ठुकरा दिया गया कि कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं है। मजबूरी में उन्हें हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा, और पांच साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार न्याय मिला। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजय वर्मा ने पैरवी की।

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सेवा ही सबसे बड़ा प्रमाण- HC 

जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस विशाल मिश्रा की सिंगल बेंच के दिए आदेश में सरकार के उस पुराने निर्देश को रद्द कर दिया, जिसमें मुआवजे के लिए पॉजिटिव रिपोर्ट की अनिवार्यता थी। कोर्ट ने कहा कि राजीव उपाध्याय जैसे कर्मचारी जब कोविड नियंत्रण की ड्यूटी निभा रहे थे, तो उनकी मौत ड्यूटी से जुड़ी मानी जाएगी। महामारी के दौरान का कार्य ही उनके ‘कोविड योद्धा’ होने का सबूत है, न कि कोई लैब रिपोर्ट। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि अंजू मूर्ति उपाध्याय को 90 दिनों के भीतर अनुदान राशि और अन्य लाभ उपलब्ध कराए जाएं।

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कोविड ड्यूटी में जान गवाने वाले योद्धाओं के लिए थी योजना

मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना साल 2020 में शुरू हुई थी, जिसके तहत ड्यूटी के दौरान मौत होने पर परिजनों को आर्थिक सहायता और अन्य सुविधाएं मिलनी थीं। लेकिन तकनीकी कारणों से कई परिवार वंचित रह गए। हाईकोर्ट का यह फैसला अब उन सभी मामलों में मिसाल बनेगा। अनुमान है कि महामारी में कई सैकड़ा सरकारी कर्मचारियों की जान गई थी, जिनमें से कई के परिवार आज भी मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं।

3 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी

👉जबलपुर कलेक्टरेट के असिस्टेंट ग्रेड-3 कर्मचारी राजीव उपाध्याय कोविड-19 नियंत्रण के तहत प्रवासी मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की ड्यूटी पर थे। अत्यधिक थकान के कारण उन्हें हार्टअटैक हुआ और उनकी मौत हो गई थी।

👉मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार के इस निर्देश को रद्द कर दिया, जिसमें मुआवजे के लिए कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट अनिवार्य थी। कोर्ट ने कहा कि ड्यूटी के दौरान कर्मचारियों की मौत को उनकी सेवाओं से जोड़ा जाएगा, न कि रिपोर्ट से।

👉उनके परिवार ने मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना के तहत मुआवजे के लिए आवेदन किया, लेकिन कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट न होने के कारण उनका आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया।

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कई प्रभावित परिवारों के लिए राहत

इस आदेश के बाद वे सभी परिवार जिनके प्रियजन ने कोविड ड्यूटी निभाते हुए जान गंवाई, अब पॉजिटिव रिपोर्ट न होने पर भी योजना का लाभ ले सकेंगे। उन्हें केवल यह साबित करना होगा कि मौत ड्यूटी से जुड़ी परिस्थितियों में हुई। आवेदन जिला प्रशासन में किया जा सकता है, और जरूरत पड़ने पर इस आदेश का हवाला देते हुए कानूनी मदद ली जा सकती है।

यह फैसला सिर्फ एक याचिकाकर्ता की जीत नहीं, बल्कि उन सभी परिवारों के लिए उम्मीद है जिन्होंने महामारी में अपने सगे खोए। हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि शहीद हुए कर्मचारियों के बलिदान को किसी तकनीकी औपचारिकता के नाम पर अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह न्यायपालिका की मानवीय संवेदना का प्रतीक है और उन सभी ‘कोविड योद्धाओं’ को सच्ची श्रद्धांजलि है।

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