जबलपुर के फंड ऑडिट ऑफिस में करोड़ों रुपए का घोटाला, 4 पर हुई FIR

घोटाले का खुलासा तब हुआ जब जिला कोषालय अधिकारी को लोकल फंड ऑडिट ऑफिस द्वारा प्रस्तुत किए गए दो संदिग्ध देयकों की जांच करने के निर्देश मिले। जब इन बिलों के स्वीकृति आदेशों की पुष्टि की गई,

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश के लोकल फंड ऑडिट ऑफिस, जबलपुर में एक बड़े वित्तीय घोटाले का खुलासा हुआ है। सरकारी फंड में हेरफेर कर फर्जी वेतन निकालनेऔर फर्जी बिलों के माध्यम से करोड़ों रुपए का गबन करने का मामला सामने आया है। इस घोटाले में शामिल चार अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है। इन पर सरकारी धन के गबन, धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार की गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।

फर्जी बिलों और आदेशों पर करोड़ों का भुगतान 

घोटाले का खुलासा तब हुआ जब जिला कोषालय अधिकारी को लोकल फंड ऑडिट ऑफिस द्वारा प्रस्तुत किए गए दो संदिग्ध देयकों की जांच करने के निर्देश मिले। जब इन बिलों के स्वीकृति आदेशों की पुष्टि की गई, तो यह चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई कि इन आदेशों को कभी जारी ही नहीं किया गया था। इससे यह संदेह पुख्ता हो गया कि सरकारी फंड में हेरफेर कर भारी वित्तीय गड़बड़ी की गई है। प्रारंभिक जांच में पता चला कि कार्यालय के कर्मचारियों ने IFMIS (Integrated Financial Management Information System) सॉफ्टवेयर में हेरफेर कर फर्जी बिल तैयार किए और सरकारी धन का दुरुपयोग किया।

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संदीप शर्मा था गिरोह का सरगना 

इस मामले में पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में सहायक ग्रेड-3 के कर्मचारी संदीप शर्मा का नाम प्रमुख रूप से सामने आया है। आरोप है कि संदीप शर्मा ने अपने वेतन में अवैध रूप से 1300 प्रतिशत की वृद्धि कर करीब 53.55 लाख रुपए का गबन किया। जांच में यह भी सामने आया कि उसके इस कृत्य में कार्यालय के अन्य अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल थे। इस गबन में लेखाधिकारी अजय तिवारी, सहायक लेखाधिकारी सुनील दुबे और डेटा एंट्री ऑपरेटर प्रतीक शर्मा की संलिप्तता भी पाई गई है। इन सभी पर मिलीभगत कर सरकारी धन को फर्जी तरीके से आहरित करने का आरोप है।

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IFMIS सॉफ्टवेयर के जरिए हेरफेर को अंजाम 

इस सॉफ्टवेयर का उपयोग सरकारी वेतन और वित्तीय भुगतान की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए किया जाता है, लेकिन इस मामले में इसका दुरुपयोग कर बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता की गई। आरोपियों ने फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन आहरण किया और वास्तविक वेतन की राशि में अनधिकृत बढ़ोतरी कर सरकारी धन का गबन किया। इस गड़बड़ी का सबसे बड़ा उदाहरण संदीप शर्मा का मामला है, जिसने अपनी तनख्वाह में 1300 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि कर ली थी, जिससे हर महीने लाखों रुपए उसके खाते में जमा हो रहे थे। इतना ही नहीं जांच में यह बात भी सामने आई है कि संदीप के द्वारा डिजिटल फर्जी जाति प्रमाण पत्रों सहित हाई कोर्ट के आदेशों का भी फर्जीवाड़ा किया जाता था।

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सिस्टम की जानकारी का उठाया फायदा 

आरोपी संदीप शर्मा को यह पता था कि IFMIS की सभी जानकारियां उसके कार्यालय से ही फीड होती हैं और ट्रेजरी में इसका अलग से सत्यापन नहीं होता । इसी बात का फायदा उठाते हुए आरोपी ने घोटाला किया। इस तरह से संदीप शर्मा ने अपने रिश्तेदारों और अन्य व्यक्तियों के खातों में 5 करोड़ 27 लाख 70 हजार रुपए डलवा दिए। जांच के दौरान यह भी पाया गया कि इस घोटाले में मृत कर्मचारियों और गैर-मौजूद कर्मियों के नाम पर वेतन आहरण किया गया। आरोपियों ने फर्जी एम्प्लाई कोड और PRAN नंबर जनरेट कर इन नामों पर सैलरी ट्रांसफर करवाई। विशेष रूप से प्रतीक शर्मा नामक एक फर्जी कर्मचारी के नाम पर एम्प्लाई कोड और PRAN नंबर बनाकर 10.73 लाख रुपए का वेतन आहरित किया गया। इस पूरी योजना को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह कोई आकस्मिक त्रुटि नहीं थी, बल्कि एक संगठित घोटाला था।

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वेरीफायर से लेकर डाटा एंट्री ऑपरेटर तक शामिल 

घोटाले में इस कार्यालय के और भी कर्मचारी शामिल थे। लेखाधिकारी सीमा अमित तिवारी पर आरोप है कि उन्होंने संदीप शर्मा द्वारा तैयार किए गए फर्जी बिलों और भुगतान आदेशों को बिना किसी सत्यापन के स्वीकृति दी। मनोज बरहैया पर भी यही आरोप है कि उन्होंने बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए, इन फर्जी दस्तावेजों को मंजूरी दी। इसके साथ ही प्रिया विश्नोई पर IFMIS सॉफ्टवेयर में  फर्जी कर्मचारियों के वेतन आहरण में मदद करने का आरोप है।

आरोपियों पर एफआईआर दर्ज

पुलिस ने इस मामले में संदीप शर्मा सहित सीमा अमित तिवारी मनोज बरहैया और प्रिया विश्नोई के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया है। इनमें धारा 316(5), 319(2),318(4), 338, 336(3), 340(2), 61(2) शामिल है।जिससे यह साफ हो जाता है कि घोटाले में शामिल अधिकारियों और कर्मचारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस घोटाले से जुड़े सभी संदिग्ध बैंक खातों को फ्रीज करने की सिफारिश की है। जिला कोषालय अधिकारी ने इस संबंध में वित्त विभाग को भी सूचित कर दिया है ताकि आगे किसी प्रकार की हेराफेरी को रोका जा सके। इसके अलावा, सभी वित्तीय लेनदेन की बारीकी से जांच की जा रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि घोटाले की वास्तविक राशि कितनी है और क्या इसमें और भी अधिकारी-कर्मचारी शामिल हैं।

 

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