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मध्य प्रदेश के दमोह में बीते दिनों अवैध रूप से एक निजी मकान में संचालित किए जा रहे हॉस्टल से चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के द्वारा 12 बच्चों को रिकवर किया गया था। उसके बाद इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में हुई थी। मकान संबंधी कोई भी दस्तावेज न होने के कारण दमोह तहसीलदार ने उक्त संपत्ति को शासकीय भूमि पर अतिक्रमण करके बनाए जाने का नोटिस जारी किया था। साथ ही नगर पालिका दमोह ने भी उक्त मकान को तीन दिन में गिराए जाने के आदेश जारी किए थे। इन दोनों आदेशों के खिलाफ आरोपी प्रवीण कुमार शुक्ला के बेटे के द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। जिसमें सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जवाब दाखिल करने का समय देकर आदेशों पर स्टे का निर्देश दिया है।
आदेशों के खिलाफ दायर की गई याचिका
जबलपुर हाईकोर्ट में दमोह की क्रिश्चियन कॉलोनी में संचालित होने वाले एक अवैध हॉस्टल के संचालक प्रवीण शुक्ला के बेटे प्रणय शुक्ला के द्वारा एक याचिका दायर की गई है, जिसमें उसके द्वारा दमोह तहसीलदार और नगर पालिका दमोह के द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई है। दमोह तहसीलदार के द्वारा आरोपी की संपत्ति प्लॉट नंबर 153/1 जिसका रकबा 5000 वर्ग फीट है, सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया गया है। इसके अलावा दूसरा आदेश जो नगर पालिका परिषद दमोह के द्वारा जारी किया गया था, जिसमें इस जमीन पर बनी इमारत की किसी भी प्रकार की वैध अनुमति न होने के कारण इसे तीन दिनों के अंदर गिराए जाने का नोटिस जारी किया गया था। 6 फरवरी 2025 को जारी किए गए नोटिस में मकान को गिराए जाने की आखिरी तारीख 9 फरवरी 2025 थी। जिसके खिलाफ इस संपत्ति के मालिक और पूरे मामले के आरोपी प्रवीण शुक्ला के बेटे के द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राहत मांगी गई थी।
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संपत्ति संबंधी समस्त दस्तावेज जमा करने के लिए मांगा समय
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के द्वारा कोर्ट में बताया गया कि याचिकाकर्ता के पिता प्रवीण शुक्ला को राज्य सरकार के द्वारा 31 अगस्त 2003 के तहत उक्त जमीन या प्लॉट को पट्टे पर दिया गया था, जिसके आधार पर वह संबंधित जमीन पर काबिज थे। शासन के द्वारा यह पट्टा याचिकाकर्ता के पिता और माता दोनों के पक्ष में दिया गया था। लेकिन उनके पिता को दमोह के कोतवाली थाने में बीएनएस की धारा 143(3), 143(4), 3/5 मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 की धारा 3/5, किशोर न्याय अधिनियम की धारा 42 और 75 के साथ एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत हिरासत में लिया गया है। जिस पर तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के पिता हिरासत में हैं, इसलिए उनके बेटे के द्वारा समस्त नोटिसों को लिया गया है। लेकिन नोटिस संबंधी जवाब प्रस्तुत करने के लिए वैध दस्तावेज जो उनके पिता के पास हैं, वे प्रस्तुत नहीं कर पाए क्योंकि उक्त मामले में अधिकारियों के द्वारा मकान को सील बंद कर दिया गया है। इसलिए मौजूदा स्थिति को देखते हुए दस्तावेजों को इकट्ठा करने में 10 दिन का समय लगेगा। इसके अलावा नगर पालिका परिषद के द्वारा जारी किए गए नोटिस संबंधी किसी भी प्रकार का जवाब देने के लिए भी कोई अवसर नहीं दिया गया है और सीधा निष्कर्ष निकालते हुए तीन दिनों के भीतर मकान को गिराए जाने का नोटिस जारी कर दिया गया है। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता के द्वारा संबंधित दस्तावेजों को पेश करने के लिए कोर्ट से समय की मांग की गई है।
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मामले में शासन की ओर से रखा गया पक्ष
शासकीय महाधिवक्ता की ओर से तर्क दिया गया कि उक्त मकान में विभिन्न प्रकार की संदिग्ध गतिविधियां हो रही थीं, इसलिए इस मकान और संपत्ति के मालिक पर एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की गई है। लेकिन मकान के खिलाफ की गई कार्यवाही इससे संबंधित नहीं है। अधिकारियों के द्वारा यह पता लगाया गया कि यह मकान सरकारी भूमि पर और नगर पालिका की अनुमति के बिना बनाया गया है। इसलिए दो अलग-अलग नोटिस दिए गए, पहला नोटिस राजस्व अधिकारी के द्वारा और दूसरा आदेश नगर पालिका अधिकारी के द्वारा जारी किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का दिया गया हवाला
कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद कोर्ट के द्वारा याचिकाकर्ता के वकील से पूछा गया कि मध्य प्रदेश राजस्व भूमि संहिता की धारा 148 के तहत बेदखली किए जाने के नोटिस का संबंध एक प्रारंभिक आदेश से है। इसका कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं निकलता है और याचिकाकर्ता प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित होकर जवाब दाखिल कर सकता है। इसके बाद प्राधिकरण द्वारा पारित अंतिम आदेश को भी चुनौती दी जा सकती है। याचिकाकर्ता अपने कब्जे के संबंध में वैध दस्तावेजों को प्रस्तुत कर प्राधिकरण को संतुष्ट करने का अवसर प्राप्त कर सकता है।
नगर पालिका परिषद के समक्ष भी जारी किए गए नोटिस में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मकान बिना अनुमति के बनाया गया है। याचिकाकर्ता अपने मकान के निर्माण संबंधी वैधता के दस्तावेज पेश कर प्राधिकारी को संतुष्ट कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार किसी भी संरचना को ध्वस्त करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन जरूरी है।
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कोर्ट के द्वारा जवाब पेश करने तक दिया गया स्टे
इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस विवेक जैन की सिंगल बेंच में हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता को संबंधित नोटिसों के खिलाफ जवाब दाखिल करने एवं दस्तावेजों को प्रस्तुत किए जाने का उचित अवसर नहीं दिया गया है। इसलिए याचिकाकर्ता के द्वारा 10 दिनों का समय मांगा गया है। कोर्ट ने 21 फरवरी 2025 तक तहसीलदार दमोह और नगर पालिका परिषद के प्राधिकारी के समक्ष दस्तावेजों को पेश करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही पेश किए गए जवाब में अपना ईमेल और व्हाट्सएप नंबर भी देने को कहा गया है, ताकि प्राधिकरण अपने निर्णय की सूचना उक्त माध्यमों से दे सके। आदेश को राजस्व न्यायालय पोर्टल पर भी अपलोड किए जाने के निर्देश दिए गए हैं। अन्य शर्तों के साथ याचिका का निपटारा करते हुए जवाब दाखिल किए जाने तक कार्रवाई पर स्टे दिया गया है।
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