संजय गुप्ता, INDORE. राज्य सेवा परीक्षा 2023 (PSC) के प्री के रिजल्ट पर खतरा मंडरा रहा है। हाईकोर्ट जबलपुर में इसके तीन सवालों पर विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट मुश्किल में आ गई है। गुरुवार को यह रिपोर्ट जब कोर्ट में पेश हुई तो इसमें किसी भी कमेटी मेंबर के कोई क्लियर कमेंट नहीं थे और ना ही कमेटी सदस्यों के नाम थे। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा कि- आयोग कैसे भी कुछ भी करके (by hook amd crook) अपने फैसले सही साबित करना चाहता है। यह भी कहा कि विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट के नाम पर आयोग आंखों में धूल झोंक रहा है।
PSC उम्मीदवार को मेंस फार्म भराने के आदेश
याचिकाकर्ता उम्मीदवार को तो हाईकोर्ट ने तत्काल मेंस के लिए फार्म भराने के आर्डर दे दिए हैं। साथ ही कहा है कि सुनवाई के बाद कोर्ट तारीख बढ़ाने का आदेश दे सकती है। कोर्ट की मंशा यह दिखी कि जो उम्मीदवार इसी तरह से परेशान है और कोर्ट नहीं पहुंच सके हैं, उनके लिए भी आदेश हो सकते हैं।
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इस तरह थी कटऑफ लिस्ट
- मूल रिजल्ट यानि 87 फीसदी पद में- अनारक्षित के लिए 162 अंक, ओबीसी के लिए 158, एसटी के लिए 142 व एससी के लिए 150, ईडब्ल्यूएस के लिए 158 अंक
- प्रोवीजनल रिजल्ट यानि 13 फीसदी पद के लिए- अनारक्षित के लिए 158 और ओबीसी के लिए 156 अंक
क्या होगा प्रश्न की मान्यता पर हाईकोर्ट के फैसले से
हाईकोर्ट यदि तीन प्रश्नों पर कोई फैसला लेता है तो फिर कटऑफ लिस्ट में भी बदलाव होगा और फिर इसी आधार पर मेंस के लिए पास होने वाले और बाहर होने वाले उम्मीदवारों की सूची में भी बदलाव हो सकता है। या फिर एक रास्ता है कि रिजल्ट में बार्डर पर अटके उम्मीदवार इन्हीं तीन प्रश्नों को लेकर हाईकोर्ट जाएं और वह भी अंतरिम राहत की मांग करें।
सचिव को व्यक्तिगत पेश होने के आदेश
दरअसल हाईकोर्ट ने भोपाल के उम्मीदवार की अधिवक्ता अंशुल तिवारी द्वार लगाई गई याचिका पर पहले बुधवार को सुनवाई की और इसमें राज्य सेवा प्री 2023 के तीन सवालों पर आयोग द्वारा लिए गए फैसले पर आपत्ति ली गई। इसमें दो प्रश्नों के उत्तर बदलने और एक को डिलीट करने की मांग थी। उम्मीदवार दो नंबर से प्रोवीजनल रिजल्ट और चार अंक से मूल रिजल्ट में आने से इसी गलती से चूक गया। हाईकोर्ट इस मामले में आयोग के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ और विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए। गुरुवार को जब कमेटी की रिपोर्ट पेश हुई तो हाईकोर्ट नाराज हो गया, कमेटी के सदस्यों के नाम भी नहीं थे और ना ही रिपोर्ट में कोई कमेंट थे, फिर कैसे आयोग ने इस पर फैसला लिया, इस पर हाईकोर्ट ने सचिव को 12 मार्च को व्यक्गित कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि आयोग आंखों में धूल झोंक रहा है।
अब समस्या यह कि बाकी उम्मीदवारों का क्या होगा
हाईकोर्ट ने इस मामले में फिलहाल एक ही आदेश जारी किया है जिसमें याचिकाकर्ता को तत्काल राहत दी है। लेकिन इसमें बाकी उम्मीदवारों का क्या होगा? यह अभी असमंजस में हैं, क्योंकि यदि तीनों सवालों की बात करें और हाईकोर्ट आदेश से इसे कंसीडर किया जाता है तो फिर रिजल्ट ही बदल जाएगा और कई उम्मीदवार इसमें अंदर और कुछ बाहर हो सकते हैं। ऐसे में पीएससी को फिर रिजल्ट जारी करना पड़ जाएगा। लेकिन समस्या यह है कि अभी हाईकोर्ट ने विस्तृत आर्डर जारी नहीं किया है, अगली सुनवाई तारीख 12 मार्च को लगी है, जबकि मेंस 11 मार्च से है। ऐसे में यदि इसके बाद फैसला आता तो फिर समस्या यही आएगी जो उम्मीदवार हाईकोर्ट से राहत लेकर आएंगे या रिजल्ट में बदलाव होता है तो फिर स्पेशल मेंस करानी पड़ जाएगी।
इन तीन सवालों पर उठा विवाद...
- एक सवाल था कि ग्रीन मफलर शब्द किससे जुड़ा है, जिसमें सहीं उत्तर नॉइज पाल्यूशन था लेकिन आयोग ने बाद में इसमें नॉइज के साथ एयर पाल्यूशन को भी सही मान लिया यानि दो विकल्प को सही माना, जबकि एक ही विकल्प सही था।
- दूसरा सवाल था कि कबड्डी महासंघ का हैडऑफिस कहां है, आयोग ने इसका पहले सही जवाब जयपुर माना था, लेकिन बाद में आपत्ति के बाद दिल्ली सही माना। लेकिन हाईकोर्ट में तर्क पेश किए गए कि सही जवाब जयपुर ही है। हाईकोर्ट ने भी आयोग से मांगा कि किस आधार पर यह बदलाव किया तो वह जवाब नहीं दे सके। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यह नहीं होता है कि जिस राज्य का महासंघ में प्रेसीडेंट बने वहां हैडआफिस हो जाए।
- तीसरा सवाल था कि किस साल में लार्ड विलियम बैंटिंग द्वारा प्रेस को फ्रीडम दी। इसमें सही आंसर आयोग ने 1835 दिया। लेकिन इस प्रश्न की फ्रेमिंग ही गलत थी, इसमें बैंटिंक की जगह मैटकाफ है। आयोग ने इस प्रश्न को गलत नहीं माना और साल के आधार पर कि साल 1835 सही विकल्प है, उसे सही विकल्प माना। जबकि प्रश्न फ्रेमिंग गलत होने से प्रश्न को डिलीट होना था। इस पर हाईकोर्ट ने बेहद कड़ी टिप्पणी की और उनके द्वारा पेश बुक्स आदि पर नाराजगी जाहिर की और कहा कि कैसे भी करके आयोग अपने फैसले को सहीं साबित करना चाहता है। इस पर ही हाईकोर्ट ने विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें फिर हाईकोर्ट ने उपयुक्त नहीं पाया और सचिव को पेश होने के आदेश दिए।