मध्य प्रदेश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ राज्य सरकार काफी सख्त है। हालांकि, इसके बाद भी महिलाओं से दुष्कर्म की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। विडंबना यह है कि दुष्कर्म पीड़ितों को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है, जबकि सरकार जल्द से जल्द न्याय दिलाने की बात कर रही है। न्याय में देरी की वजह डीएनए लैब में फंस रहे सैंपल हैं। इस समय प्रदेश में करीब तीन हजार 700 डीएनए सैंपल जांच के इंतजार में फंसे हुए हैं, जिनमें से करीब दो हजार सैंपल नाबालिगों से दुष्कर्म के हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में डीएनए जांच करने वाली चार लैब हैं। गौरतलब है कि इन चारों लैब में संसाधन कम होने की वजह से जांच पूरी तरह नहीं हो पाती है। कुछ तो 2020 के सैंपल भी बिना जांचे हुए हैं। बता दें कि प्रदेश में भोपाल, सागर, इंदौर और ग्वालियर में चार लैब हैं। इनमें ही डीएनए सैंपल की जांच की जाती है। सबसे अधिक सैंपलों की जांच भोपाल लैब में अटकी है।
8 हजार से घटकर करीब चार हजार तक पहुंचा मामला
ऐसा इसलिए भी क्योंकि पॉक्सो के तहत सबसे ज्यादा डीएनए सैंपल भोपाल लैब में आते हैं। हालांकि पिछले दो साल में लंबित जांचों की संख्या आठ हजार से घटकर तीन हजार 700 सैंपल पर आ गई है। मौजूदा लैब की क्षमता बढ़ाने के साथ ही नई लैब भी बनाई जा रही हैं। नवंबर से जबलपुर में डीएनए लैब काम करना शुरू कर देगी। इस संबंध में फोरेंसिक साइंस लैब भोपाल के डायरेक्टर शशिकांत शुक्ला का कहना है कि आधे से ज्यादा डीएनए सैंपल पॉक्सो के होते हैं। अगर कोर्ट ट्रायल शुरू करने के निर्देश देता है तो उस सैंपल की रिपोर्ट एक-दो दिन में उपलब्ध करा दी जाती है। अगले तीन महीने में भोपाल में सैंपलों की लंबित जांच को शून्य करने की कार्ययोजना बनाई गई है।
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संसाधन जुटाने के लिए पांच साल का समय
जानकारी के मुताबिक, एक जुलाई से देशभर में नए स्वरूप में लागू हुए तीनों कानूनों का मकसद पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय दिलाना है। नए कानूनों में सात साल की सजा वाले सभी अपराधों में फोरेंसिक जांच टीम का मौके पर जाना अनिवार्य किया गया है। प्रदेश में पहले से ही फोरेंसिक अफसरों की कमी है। यही वजह है कि सभी राज्यों को संसाधन जुटाने के लिए पांच साल का समय दिया गया है।
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20 हजार सैंपलों की विसरा जांच अटकी
मध्य प्रदेश में करीब 20 हजार सैंपलों की विसरा जांच अटकी हुई है। जांच क्षमता बढ़ाने के लिए सरकार जबलपुर में डीएनए और फोरेंसिक जांच और रीवा, रतलाम में फोरेंसिक जांच शुरू करने जा रही है। डीएनए जांच की जरूरत इसलिए पड़ती है, क्योंकि डीएनए व्यक्ति की कोशिकाओं में पाया जाने वाला उत्पाद होता है। इसमें बच्चे के साथ जैविक संबंध का पता लगाया जा सकता है और दुष्कर्म के मामलों में संदिग्ध की पहचान के लिए डीएनए जांच की जाती है। हालांकि कई बार पुख्ता सबूत मिलने या आरोपी के अपराध स्वीकार करने के बाद डीएनए जांच की जरूरत नहीं पड़ती है।
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