13 फीसदी पद होल्ड मामले में AG प्रशांत सिंह को हटाने की मांग, OBC एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने लगाए गंभीर आरोप

मध्‍य प्रदेश में दो साल से सभी भर्तियों में 13 फीसदी पद होल्ड हैं और 87-13 फीसदी फार्मूले ने हजारों पद और लाखों उम्मीदवारों को उलझा कर रख दिया है।

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Sanjay gupta
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मप्र में दो साल से सभी भर्तियों में 13 फीसदी पद होल्ड हैं और 87-13 फीसदी फार्मूले ने हजारों पद और लाखों उम्मीदवारों को उलझा कर रख दिया है। अब इस मामले को लेकर पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन मप्र ने सीधे तौर पर एजी (महाधिवक्ता) प्रशांत सिंह को ही जिम्मेदार बताते हुए सीएम मोहन यादव को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग कर दी है। साथ ही पत्र में नियुक्तियों को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं।

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ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग के अधिवक्ता भी नियुक्त नहीं किए

पत्र में लिखा गया है कि एजी अपनी नियुक्ति दिनांक से ही आरक्षित वर्ग के साथ भेदभाव रवैया अपना कर अन्याय कर रहे हैं।

  • महाधिवक्ता कार्यालय में शासकीय अधिवक्ताओं की सभी वर्गों की संख्या के अनुपात में नियुक्ति नहीं की गई।
  • ओबीसी में 13 फीसदी होल्ड पदों को अनहोल्ड कर नियुक्ति दिए जाने के लिए कई बार अवगत कराया गया, ओबीसी आरक्षण केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर होने के चलते यह केस में पारित अंतरिम आर्डर प्रभावहीन हो चुके हैं, इस केस की स्टेटस रिपोर्ट डिस्पोज हो चुकी है। 
  • महाधिवक्ता के अवैध विधिक अभिमत के आधार पर सौ फीसदी भर्ती नहीं करने व 13 फीसदी ओबीसी पद होल्ड करने सामान्य प्रशासन विभाग से कानून के विरुद्ध नोटिफिकेशन जारी कराया गया।
  • महाधिवक्ता द्वारा इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर व नई दिल्ली में दो सैंकड़ा से अधिक शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति की अनुशंसा करके मप्र शासन के नियम विरुद्ध नियुक्तियां करवाई गई।
  • महाधिवक्ता ने कार्यालय में शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति कराई इसमें जाति, रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी गई। ऐसे नियुक्ति हुए जिन्हें अनुभव भी नहीं है।
  • आरक्षित वर्ग के प्रति द्वेष रखते हुए उन्होंने अनुसुचित जाति वर्ग के केवल दो व ओबीसी वर्ग के मात्र 6 अधिवक्ता नियुक्ति किया, एसटी वर्ग का तो एक भी अधिवक्ता नियुक्त नहीं किया।

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साथ में उनके कामों की जांच की मांग

इतना ही नहीं एसोसिएशन ने यह भी मांग की है कि सरकार के कानून के विरुद्ध अभिमत देकर ओबीसी वर्ग के साथ भेदभाव किया गया है। उन्हें पद से हटाया जाए साथ ही उनके विरूद्ध जांच गठित कर कार्रवाई की जाए। साथ ही उनके द्वारा की गई अनुशंसा, अभिमत के आधार पर हुई सभी शासकीय अधिवक्ताओं की नियुक्ति को निरस्त कर ओबीसी, एसटी, एससी वर्ग के अधिवक्ताओं को समान अनुपात में नियुक्तियां की जाएं।

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यह है 87-13 फीसदी का बड़ा विवाद

मप्र में कमलनाथ सरकार के समय ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी करने का आदेश हुआ। इसके बाद आरक्षण की सीमा 50 फीसदी को पार कर गई। इसे लेकर कोर्ट में केस गए। बाद में कमलनाथ सररकार गिरने के बाद मप्र में बीजेपी सरकार आई। इस दौरान नियुक्ति, भर्ती की प्रक्रिया में स्टे होने पर शासन ने सितंबर 2022 में एक आदेश निकाला और कहा कि केवल 87 फीसदी पद पर पूरी भर्ती होगी और इसमें ओबीसी को अभी 14 फीसदी आरक्षण मिलता रहेगा। बाकी 13 फीसदी पद पर अभी अनारक्षित और ओबीसी दोनों ही चुने जाएंगे लेकिन इनका अंतिम रिजल्ट और भर्ती नहीं होगी। जब आरक्षण पर अंतिम फैसला होगा तब जिसके पक्ष में फैसला आएगा यह 13 फीसदी पद उन्हें दे देंगे, यानी यदि ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी मान्य होता है तो यह होल्ड 13 फीसदी पद ओबीसी के खाते में नहीं तो अनारक्षित के खाते में चले जाएंगे। वहीं मामला हाईकोर्ट से ट्रासंफर होकर सुप्रीम कोर्ट चला गया, जिसमें 15 अक्टूबर को सुनवाई संभावित है। 

उधर हाईकोर्ट से ट्रांसफर होने के बाद इनका हाईकोर्ट की साइट पर स्टेटस डिस्पोजल में आ गया, इस पर ओबीसी पक्ष द्वारा मांग की जा रही है कि जब याचिका डिस्पोज हो गई तो फिर अंतरिम आर्डर जिसमें 27 फीसदी आरक्षण पर रोक थी, वह भी खत्म हो गया, तो फिर मप्र शासन का आरक्षण नियम जिसमें भर्ती में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण है, उसके मुताबिक 13 फीसदी रुके पद ओबीसी को दिए जाने चाहिए। उधर मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

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